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ज्ञानी विज्ञानी हो गये केवट की भक्ति से : मैथिलीशरण

कोलकाता : प्रेम भक्ति की कक्षा का विज्ञान है, जिसको पढ़े बगैर कोई धर्म और कोई ज्ञान परिपूर्ण नहीं हो सकता है. भगवान को केवल प्रेम प्यारा है. यही विज्ञान को जानना भक्ति है. उसमें कपट छल छिद्र मिला देने से खटास आ जाती है, जो भगवान को प्रिय नहीं है. दोष, दु:ख और दरिद्रता […]

कोलकाता : प्रेम भक्ति की कक्षा का विज्ञान है, जिसको पढ़े बगैर कोई धर्म और कोई ज्ञान परिपूर्ण नहीं हो सकता है. भगवान को केवल प्रेम प्यारा है. यही विज्ञान को जानना भक्ति है. उसमें कपट छल छिद्र मिला देने से खटास आ जाती है, जो भगवान को प्रिय नहीं है. दोष, दु:ख और दरिद्रता का मिट जाना ही राम राज्य का प्रथम घाट है. केवट के जिस घाट पर राम आये. जब दोष कैकेयी में दिखना बंद होकर केवट को वर्तमान में प्रभु श्रीराम के रुप सौंदर्य का आनंद आने लगा.

दुख इसलिए नहीं रहा कि “ नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं” “ संत मिलन सम सुख जग नाहीं” लक्ष्मण जैसे संत का साथ रात भर भर मिला. अब भला दुख कहां? दरिद्रता कहां रही? जब भगवान ने अपना बना लिया. जैसे विवाह होकर कन्या का गोत्र पति का गोत्र हो जाता है, वैसे ही भक्त का भगवान से संबंध हो जाने पर भक्त का गोत्र भगवान का गोत्र हो जाता है.
दु:ख, दरिद्रता, दोष, भय व लोभ सब तभी तक हैं, जब तक हमने अपने को संसारी बनाया हुआ है. केवट कहता है : ‘राम कीन्ह आपन जबहीं ते, भयऊ भुवन भूषण तबहीं ते.’अब त मैं सारे चौदह भुवन का आभूषण बन गया. अब तो जहां-जहां राम कथा होगी, वहां-वहां मेरा नाम बोला जायेगा. मैं राम की कथा से जुड़ गया, अब मेरे जीवन में व्यथा कहां रही.
संगीतकला मंदिर ट्रस्ट द्वारा आयोजित केवट प्रसंग पर प्रवचन का समापन करते हुए श्रीरामकिंकर विचार मिशन के अध्यक्ष संत मैथिलीशरण ने कलामंदिर के कलाकुंज सभागार में कहीं. श्रद्धालुओं का स्वागत संजय सिन्हा तथा धन्यवाद ज्ञापन गगेंद्र झा ने किया. इस अवसर पर लक्ष्मीकांत तिवारी, मंगत राम अग्रवाल, ज्योति गुप्ता, रविशंकर गुप्ता सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे.

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