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मासूम को मां मिली, ममता नहीं

अस्पताल में छोड़ गयी थी मां, शिशु कल्याण गृह बना स्थायी घर छह महीनों तक अस्पताल में नर्स व अतिथियों के दुलार में पली मां का पता लगने पर उसने बच्ची को अपनाने से कर दिया इनकार कोलकाता : छह महीने की मासूम रूपसा मां के जीवित रहते हुए भी उसकी ममता से दूर रहने […]

अस्पताल में छोड़ गयी थी मां, शिशु कल्याण गृह बना स्थायी घर

छह महीनों तक अस्पताल में नर्स व अतिथियों के दुलार में पली
मां का पता लगने पर उसने बच्ची को अपनाने से कर दिया इनकार
कोलकाता : छह महीने की मासूम रूपसा मां के जीवित रहते हुए भी उसकी ममता से दूर रहने को मजबूर है. उसकी मां उसे जन्म देने के बाद अस्पताल में छोड़ कर चली गयी थी. छह महीने तक अस्पताल की नर्स व अन्य लोगों के हाथों पली बढ़ी. काफी मशक्कत के बाद जब उसकी मां और परिवार को खोज निकाला गया तो उन्होंने सीधे तौर पर मासूम बच्ची को अपनाने से इनकार कर दिया.
अब रूपसा को पश्चिम बंगाल रेडियो क्लब के सचिव अंबरिश नाग विश्वास व इंडियन एकैडमी ऑफ कम्युनिकेशन एंड डिजास्टर मैनेजमेंट की टीम के सहयोग से स्थायी ठिकाना मिला है. अब वह शिशु कल्याण गृह के कर्मचारियों की देखरेख में बड़ी होगी.
बच्ची को जन्म देते ही अस्पताल से लापता हो गयी मां
19 दिसंबर 2018 को एक महिला ने डायमंड हार्बर सरकारी अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया. उसके स्वास्थ्य की जांच के दो दिन बाद जब डॉक्टर बच्ची को मां के पास ले गये तो मां के साथ पूरा परिवार वहां से लापता था. अस्पताल में दिये गये पते की जांच की गयी तो वह पता गलत निकला. काफी छानबीन के बावजूद जब परिवार के सदस्यों का पता नहीं चला तो पश्चिम बंगाल रेडियो क्लब के सदस्यों को इसकी जानकारी दी गयी.
परिवार के सदस्य तो मिले, लेकिन अपनाने को नहीं हुए तैयार
काफी छानबीन के बाद पता चला कि बच्ची का परिवार हावड़ा के श्यामपुर में रहता है. उसकी मां लिलुफा बीबी और पिता अतिउर रहमान ने इस बच्ची को अपनाने में असमर्थता जाहिर की. पिता ने बताया कि उसके घर में पहले से दो बेटी है, अब तीसरी बेटी का भरन पोषण वह नहीं कर सकते, इसे किसी भी व्यक्ति या सरकार के हवाले कर दिया जाये. वह इसे नहीं अपनायेंगे. लिलुफा ने भी पति की बातों में असमर्थता जाहिर की.
अस्पताल में ही नर्स व अतिथियों के प्यार में पलती रही रूपसा
पश्चिम बंगाल रेडियो क्लब के सचिव अंबरिश नाग विश्वास ने बताया कि बच्ची के परिवार ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया. इसके बाद प्रशासन को इस बारे में जानकारी देकर उसके बचपन को सुनिश्चित करने के लिए स्थायी घर की मांग की गयी. कागजी कार्रवाई होती रही और इस बीच मासूम रूपसा अस्पताल में नर्स, मेडिकल स्टाफ और वहां भर्ती अन्य मरीजों के परिजनों की गोद में खेलते हुए छह महीने की हो गयी.
शिशु कल्याण गृह ले जाया गया
काफी कोशिश के बाद अंबरिश विश्वास व उनकी टीम की मेहनत रंग लायी और दक्षिण 24 परगना के अतिरिक्त जिलाधिकारी के निर्देश पर डिस्ट्रिक्ट सोशल वेलफेयर ऑफिसर को बच्ची को कोलकाता के शिशु कल्याण गृह में भेजने का निर्देश दिया गया. अस्पताल में छह महीने से पल रही वह मासूम नर्स व अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों की लाडली हो चुकी थी. एक तरफ रूपसा जहां अपनी मां की ममता से महरूम हो गयी, वहीं अस्पताल से शिशु कल्याण गृह ले जाते समय वहां मौजूद दर्जनों मां की आंखों से आंसू नहीं थम रहे थे.

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