नवीन कुमार राय : कोलकाता. लोकसभा चुनाव में इस बार वामपंथियों को सूपड़ा साफ हो गया है. इस पराजय का विश्लेषण करते हुए दिग्गज वामपंथी नेता क्षिति गोस्वामी चाहते हैं कि वर्ष 2021 में होनेवाले राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से ही वृहत्तर प्लेटफाॅर्म बनना चाहिए. इसमें कांग्रेस के साथ वामपंथियों का समझौता हो, लेकिन इस समझौते में सीटों का बंटवारा सहमति के आधार पर होना चाहिए. चुनाव के दो हफ्ते पहले समझौता करने का कोई तुक नहीं है, बल्कि इससे तनाव ही बढ़ता है.
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राज्य में सहमति के आधार पर वामपंथियों के साथ कांग्रेस का समझौता चाहती है आरएसपी
नवीन कुमार राय : कोलकाता. लोकसभा चुनाव में इस बार वामपंथियों को सूपड़ा साफ हो गया है. इस पराजय का विश्लेषण करते हुए दिग्गज वामपंथी नेता क्षिति गोस्वामी चाहते हैं कि वर्ष 2021 में होनेवाले राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से ही वृहत्तर प्लेटफाॅर्म बनना चाहिए. इसमें कांग्रेस के साथ वामपंथियों का समझौता […]
क्षिति गोस्वामी के इस विचार से ज्यादातर वामपंथी और कांग्रेसी नेता सहमत हैं. वे यह मान भी रहे हैं कि अगर समझौता अभी हुआ, तो सरकार विरोधी आंदोलन करते हुए लोगों में गठबंधन के प्रति एक भरोसा पैदा होगा.
इस बार लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस और वामपंथियों को पीछे छोड़, भाजपा दूसरे नंबर पर पहुंच गयी है. उसके मतों में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है. तृणमूल को 45 फीसदी वोट मिले, जबकि 40 फीसदी मत हासिल भाजपा भी ज्यादा पीछे नहीं है. वहीं, वाममोर्चा को 7.25 प्रतिशत वोट से ही संतोष करना पड़ा है.
पश्चिम बंगाल में जिस तरह से परिवारवाद की शुरुआत हुई है, उसे राज्य की जनता स्वीकार नहीं कर रही है, इसलिए इसमें कमी आयेगी. ज्यादातर नेता मानते हैं कि परिवारवाद और भ्रष्टाचार के साथ राज्य की गिरती कानून व्यवस्था से लोग निजात पाना चाहते हैं.
ऐसे में लोग एक धर्मनिरपेक्ष व स्वच्छ राजनीति की चाहत रखते हैं. इसे कांग्रेस व वामपंथियों का गठबंधन ही पूरा कर सकता है. इसलिए अभी से पहल करने की जरूरत है. यह बात क्षिति गोस्वामी खुलकर कह रहे हैं.
हालांकि कुछ दिनों पहले माकपा के सचिव सीताराम येचुरी ने साफ कहा था कि तृणमूल के अत्याचार से बचने के लिए लोग तीसरी शक्ति के रूप में भाजपा पर भरोसा किये. कांग्रेस व वामपंथियों के बीच 2016 में समझौता हुआ था. लोगों को एक विकल्प मिला था, जिससे भाजपा का वोट काफी कम हुआ था.
लेकिन 2019 में ऐसा नहीं हुआ. 2009 से इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा 6.14 प्रतिशत वोट से बढ़कर 40 फीसदी पर पहुंच गयी. साल 2009 में ममता बनर्जी का उत्थान शुरू हुआ. तृणमूल कांग्रेस कई जिला परिषद पर कब्जा करने में सफल रही.
साल 2011 में वामपंथियों के हाथ से सत्ता निकल गयी. उस दौर में भाजपा का वोट बहुत नहीं बढ़ा. उसे महज 10.02 फीसदी वोट से ही संतोष करना पड़ा. लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 17.02 प्रतिशत वोट पाते हुए भाजपा ने दो सीट भी हासिल कर ली थी. मोदी लहर में भाजपा का वोट प्रतिशत तो बढ़ा, लेकिन तृणमूल कांग्रेस अकेले 34 सीट जीतने में कामयाब रही. कांग्रेस को चार व वाममोर्चा को दो सीट पर संतोष करना पड़ा था.
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