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प्रभात खबर के जन संवाद कार्यक्रम में बोले वक्ता, बच्चों का बचपन मोबाइल पर सिमटने ना दें

आदर्श माध्यमिक विद्यालय में किया गया कार्यक्रम का आयोजन कोलकाता. मौजूदा समय में भागदौड़ व व्यस्त जीवन में जहां तकनीक का विकास हो रहा है, वहीं कुछ ऐसे जरूरी पल हैं जो खोते जा रहे हैं. जी हां, बचपन की बात हो रही है जो बच्चों से जैसे खोता जा रहा है. बच्चों को अब […]

आदर्श माध्यमिक विद्यालय में किया गया कार्यक्रम का आयोजन
कोलकाता. मौजूदा समय में भागदौड़ व व्यस्त जीवन में जहां तकनीक का विकास हो रहा है, वहीं कुछ ऐसे जरूरी पल हैं जो खोते जा रहे हैं. जी हां, बचपन की बात हो रही है जो बच्चों से जैसे खोता जा रहा है.
बच्चों को अब न ही कोई कहानियां सुनाता है और न ही मेले में अब खिलौने के लिये बच्चे जिद करते हैं. उनमें वो पहले जैसा चंचलपन भी नहीं रह गया. क्या इसका कसूर अभिभावकों का नहीं है? उनके पास संभवत: अपने बच्चों के लिये समय नहीं है. अपने काम के निबटाने के लिये वे बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं. और बच्चा घर की चहारदीवारी के बाहर की दुनिया को समझ ही नहीं पाता और धीरे-धीरे उसका बचपन जैसे मोबाइल में सिमटता चला जाता है.
अभिभावकों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों के बचपन को मोबाइल में सिमटने ना दें. ये बातें प्रभात खबर ‘जन संवाद’ परिचर्चा में मौजूद विशिष्टजनों ने कही. इस बार प्रभात खबर जन संवाद का आयोजन महानगर के आदर्श माध्यमिक विद्यालय में हुआ. परिचर्चा का विषय ‘मोबाइल में सिमटता बचपन’ था. परिचर्चा के दौरान काफी संख्या मेें विद्यार्थियों की उपस्थिति रही. परिचर्चा का संचालन स्कूल के शिक्षक जेपी पांडेय ने किया जबकि परिचर्चा के अंत धन्यवाद ज्ञापन स्कूल के प्रधानाध्यापक डॉ एपी राय ने किया. आइये जानते हैं परिचर्चा में विशिष्टजनों की बातें :
अभिषेक हंस (मनोचिकित्सक) : सर्वप्रथम अभिभावकों को बच्चों के आचरण व व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए. हर चीज के दो पहलू होते हैं. अच्छा और खराब. मोबाइल जरूरी है लेकिन उसके कुछ खराब पक्ष भी हैं. बच्चों को मोबाइल फोन दें लेकिन उनके बचपन को मोबाइल में ही सिमटने ना दें. बच्चे अब आउटडोर गेम्स से दूर हो रहे हैं.
जैसे उन्हें मोबाइल की लत लग गयी हो. मोबाइल के ब्लू व्हेल, मोमोे चैलेंज जैसे खतरनाक गेम्स के कारण कई बच्चों को जान गंवानी पड़ी. ऐसे खतरनाक खेल में उलझे बच्चे हमेशा अलग रहना चाहते हैं. उनके स्वाभाव में अचानक परिवर्तन आ जाता है. ऐसे गेम्स के चंगुल में फंसे बच्चे देर रात तक जागते हैं, खाना कम खाते हैं और किसी से ज्यादा बातें करना पसंद नहीं करते हैं. अभिभावकों को बच्चों से बेहतर संवाद कायम रखना चाहिए. दोस्त जैसा व्यवहार करें, ताकि बच्चे अपनी बात साझा कर सकें. अत्यधिक अनुशासन भी नुकसानदेह हो सकता है.
रणधीर जायसवाल (आइटी एक्सपर्ट) :तकनीकी युग में गैजेट्स हमें और भी संबल बनाता है. लेकिन इसका इस्तेमाल सूझबूझ के साथ करना चाहिए. पर बच्चों में इसका अभाव देखा गया है. वह अपने बालसुलभ मनोवृत्ति के कारण कभी रोमांच तो कभी स्कोर के लालच में आॅनलाइन गेम्स के चंगुल में फंस जाते हैं. परिणाम मोमो जैसे खतरनाक खेल के रूप में सामने आता है. ऐसे खेलों का मकसद होता है फोन के डेटा की चोरी करना और लोगों के बीच इंटरनेट पर दहशत फैलाना है.
बच्चों को यह बात समझना होगा. वह किसी भी अंजान नंबर से व्हाट्सप पर भेजे गये किसी किस्म के गेम्स रिक्वेस्ट या लिंक को एक्सेस नहीं करें. बल्कि वैसे नंबर को ब्लॉक करें. अगर गलती से एक्सेस करते हैं तो तुरंत बड़ों को बतायें जरूरत पड़े तो आईटी एक्सपर्ट से भी सलाह लें. क्योंकि सावधानी ही इन खतरनाक खेलों से बचाव का एकमात्र उपाय है. मोबाइल फोन का सही तरीके से इस्तेमाल करना जरूरी है.अभिभावकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों का बचपन उनके मोबाइल फोन की वजह से नहीं छीन जाये.
डॉ एपी राय (प्रधानाध्यापक) : मोबाइल जरूरी है लेकिन उसका इस्तेमाल कब और कैसे करें, यह जानना भी जरूरी है. बच्चे मोबाइल के एडिक्ट नहीं हों. इसके लिये सबसे पहले अभिभावकों को सतर्क होने की काफी जरूरत है. यह समझने की जरूरत है मोबाइल का इस्तेमाल सही ज्ञान के लिये हो. मोबाइल फोन पर कई गेम्स ऐसे भी आये जिससे कई बच्चों ने अपनी जान गंवायी. ऐसे गेम्स के खिलाफ अभियान चलाना जरूरी है. अभिभावक अपने बच्चों के बचपन को बेहतर बना सकते हैं, इसलिये बच्चों पर ध्यान देना जरूरी है.
सुनील राय (राजनीतिज्ञ): बच्चों का बचपन जैसे मोबाइल में सिमटता जा रहा है. इसके लिये अभिभावक सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. कम उम्र में ही बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं. भला तीन से पांच साल का बच्चा मोबाइल पर क्या सीख पायेगा, हां उसे इसकी लत जरूर लगेगी. कई अभिभावक अपनी परेशानियों व झंझट से बचने के मोबाइल का सहारा लेते हैं और उसे बच्चों के हाथ में थमा देते हैं.
पहले बच्चे स्कूल से लौटने के बाद मैदान की ओर दौड़ते थे लेकिन आज के समय में स्कूल से लौटने के बाद मोबाइल ढूंढते हैं. आउट़डोर गेस्म मोबाइल में सिमट गया है. किताब पढ़ने की रुचि और कॉमिक्स का दौर खत्म हो गया है.
प्रभाकर तिवारी (राजनीतिज्ञ) : मोबाइल एडुकेशन का जरिया है. मोबाइल का उपयोग सही दिशा में किया जाये तो यह ज्ञान प्राप्ति का अहम जरिया है. लेकिन सोचने वाली बात है कि हम इस पर निर्भर करने लगे हैं. मोबाइल का इस्तेमाल बच्चे सही तरीके से कर रहे हैं या नहीं इसके लिये अभिभा‍वकों को ध्यान रखने की जरूरत है. वरना बच्चे ब्लू व्हेल और मोमो चैलेंज जैसे खतरनाक गेम्स के चंगुल में भी फंस सकते हैं. मोबाइल का सही सही इस्तेमाल लाभप्रद है.
जन संवाद के दौरान श्याम बिहारी पांडेय, अनिल कुमार राय, आलोक चाकी, राम भजन राम, एसएच मुर्मू, बी घोष, मोहम्मद अफसर, डीएन ओझा, डी झा, बीके हरिजन समेत अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे.
परिचर्चा के दौरान कई विद्यार्थियों ने मोबाइल के उपयोग और दुरुपयोग को लेकर विशिष्टजनों से कुछ सवाल भी पूछे. इन विद्यार्थियों में प्रशांत कुमार मंडल (कक्षा-11), प्रतिक सिंह (कक्षा-12), चंद्रदेव पासवान (कक्षा-12), प्रकाश मिश्रा (कक्षा-12), जीतेश चौबे (कक्षा-12) शामिल हैं.

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