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जहां 100 विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं एक शिक्षक, समस्याओं से घिरा है काटाडांगा नार्थ जनता आर्य विद्यालय

कोलकाता : पश्चिम बंगाल के अधिकतर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, जिसका असर बच्चों के शैक्षणिक विकास की रफ्तार पर पड़ता है. विकास की गाड़ी रुक-रुक कर धीमी पड़ जाती है. महानगर से कोसों दूर उत्तर 24 परगना के भाटपाड़ा नगर पालिका के कांकीनाड़ा इलाके में स्थित काटाडांगा नार्थ जनता आर्य विद्यालय […]

कोलकाता : पश्चिम बंगाल के अधिकतर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, जिसका असर बच्चों के शैक्षणिक विकास की रफ्तार पर पड़ता है. विकास की गाड़ी रुक-रुक कर धीमी पड़ जाती है. महानगर से कोसों दूर उत्तर 24 परगना के भाटपाड़ा नगर पालिका के कांकीनाड़ा इलाके में स्थित काटाडांगा नार्थ जनता आर्य विद्यालय की स्थिति भी कुछ ऐसी ही दयनीय है. स्कूल में लगभग 14 सौ विद्यार्थी पढ़ते हैं, लेकिन सरकार अनुमोदित शिक्षकों की संख्या मात्र 13 ही है.
ऐसे में सरकारी नियमानुसार 40 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिये, लेकिन इस स्कूल में एक शिक्षक पर 100 से अधिक बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा है. नतीजा यह हुआ कि 2013 में शुरू हुआ साइंस विभाग दो साल बाद 2015 में शिक्षकों की कमी के कारण बंद हो गया. अब स्कूल में सिर्फ आर्ट्स की कक्षाएं ही होती हैं. इस तरह से स्कूल की समस्याओं के कारण स्कूल के विकास की रफ्तार धीमी पड़ गयी है.
स्कूल का सफर : 1968 में काटाडांगा नॉर्थ जनता आर्य विद्यालय की स्थापना हुई. प्रारम्भ में स्कूल के कुछ हिस्सों में टाली, टीना लकड़ी से घिरी कक्षाएं थीं. न बिजली और न ही पानी के बेहतर साधन थे. धीरे-धीरे स्कूल दसवीं से बारहवीं और 900 विद्यार्थियों से 1400 तक पहुंच गयी. 2011 के जुलाई में स्कूल के हेडमास्टर सूरज श्रीवास्तव ने स्कूल में कदम रखा. 2013 में 11वीं और 12वीं की मान्यता मिली. स्कूल तीन तल्ला बन गया. अब इस स्कूल में कुल 22 रूम हैं. 16 कक्षाएं, एक लेबोरेटरी, एक टीचर्स रूम, एक कम्प्यूटर रूम, एक हेडमास्टर रूम, एक साइंस और एक जियोग्राफी का लैब रूम है.
एकलौता स्कूल पर बढ़ता बोझ : उत्तर 24 परगना के नैहाटी, जगदल, नारायणपुर समेत कई इलाकों के जूट मिल व श्रमिक वर्ग के बच्चे इसी स्कूल पर उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए आश्रित हैं. इलाके का एकलौता बेहतर उच्च माध्यमिक स्कूल भी कहा जाता है. होनहारों की उड़ान में संसाधन की कमी है रोड़ा : शिक्षकों का मानना है कि जिला स्तर पर स्कूल की एक अलग ही पहचान है. यहां खेल-कूद, साइंस एग्जीबिशन, ड्राइंग, कराटे समेत कई अतिरिक्त गतिविधि में स्कूल के होनहार विद्यार्थियों ने जिला स्तर पर परचम लहराया है, लेकिन इन दिनों स्कूल में प्लेग्राउंड का न होना, शिक्षकों की कमी जैसे कई संसाधनों की कमी होनहारों की उड़ान में रोड़ा बनी है.
ये हैं समस्याएं : शिक्षकों की कमी, प्लेग्राउंड का नहीं होना, स्कूल परिसर में ऊपर शेड न होना प्रमुख समस्याएं हैं. शेड नहीं होने से बरसात में जलजमाव हो जाता है. बरसात के समय मिड डे मील खिलाने में दिक्कतें आती हैं, स्कूल में बेंच, लाइट और पंखें की कमी, पर्याप्त बाथरूम न होना और साथ ही आवेदन के बावजूद तीन साल से स्कूल को कैपिटल ग्रांड न मिलना ये सारी समस्याओं से स्कूल घिरा हुआ है. एक ही रूम में लगभग सौ के करीब बच्चे बैठते हैं.

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