विभिन्न राज्यों में आरटीआइ की स्थिति पर हुई ज्वाइंट स्टडी में हुआ खुलासा
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बंगाल में आरटीआइ का जवाब पाने में लग सकते हैं 43 साल
विभिन्न राज्यों में आरटीआइ की स्थिति पर हुई ज्वाइंट स्टडी में हुआ खुलासा कोलकाता : पश्चिम बंगाल में राइट टू इन्फॉर्मेशन (आरटीआई) के तहत रांगफल डिनायल के लिए कम से कम 43 साल का इंतजार करना पड़ेगा. इसके बाद ही शायद समस्या का निपटारा हो सके. इसका मतलब यह है कि अगर आप पश्चिम बंगाल […]
कोलकाता : पश्चिम बंगाल में राइट टू इन्फॉर्मेशन (आरटीआई) के तहत रांगफल डिनायल के लिए कम से कम 43 साल का इंतजार करना पड़ेगा. इसके बाद ही शायद समस्या का निपटारा हो सके. इसका मतलब यह है कि अगर आप पश्चिम बंगाल में आज कोई आरटीआइ लगाते हैं तो उसका निपटारा 2061 से पहले होने की उम्मीद नहीं है. एक स्टडी में ऐसे ही कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये है, जो देश में आरटीआई की दयनीय स्थिति और सरकारों की उदासीनता को दर्शाता है.
जानकारी के मुताबिक, सतर्क नागरिक संगठन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज की तरफ से देश के विभिन्न राज्यों में आरटीआइ की स्थिति को लेकर एक संयुक्त स्टडी की गयी. इस स्टडी के मुताबिक बंगाल में फिलहाल सिर्फ दो सूचना आयुक्त हैं. पिछले वर्षों में सिर्फ एक सूचना आयुक्त होने के कारण करीब 12 महीने किसी आरटीआइ पर कोई सुनवाई ही नहीं हुई. ऐसे में सूचना आयुक्तों की कमी से मामलों की सुनवाई पूरी करने में कितने साल लग जायेंगे. इसी तरह से बंगाल की तरह ही कई प्रदेशों में भी सूचना आयुक्तों की संख्या काफी कम है.
जवाब मिले कम, आवेदन वापस हुए अधिक
आम आदमी को मजबूत करने के लिए बने आरटीआइ के इस कानून की स्थिति राज्यों में इतनी कमजोर कर दी गई है कि ज्यादातर मामले विचाराधीन पड़े हैं. सूचना का जवाब मिलना तो दूर आवेदन की वापसी के आंकड़े ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं. सबसे अधिक मामले तो केंद्रीय सूचना आयोग की तरफ से लौटाये गय हैं. इसके बाद गुजरात, असम और उत्तराखंड हैं, जहां मामलों को निपटाने की जगह लौटाने की संख्या अधिक है.
बंगाल में हैं सिर्फ दो सूचना आयुक्त
क्या है सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकारी यानी आरटीआइ एक्ट 2005 के तहत वे अधिकार हैं जो आम लोगों को शक्तिशाली बनाते हैं. इस एक्ट के तहत कोई भी आम नागरिक किसी भी सरकारी दफ्तर से सरकारी जानकारी, किसी भी तरह की सूचना मांग सकता है. हालांकि कुछ सरकारी व अधिकारिक मामलों में अधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के प्रावधानों के तहत कुछ जानकारियों को आरटीआइ कानून के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है.
क्या है सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकारी यानी आरटीआइ एक्ट 2005 के तहत वे अधिकार हैं जो आम लोगों को शक्तिशाली बनाते हैं. इस एक्ट के तहत कोई भी आम नागरिक किसी भी सरकारी दफ्तर से सरकारी जानकारी, किसी भी तरह की सूचना मांग सकता है. हालांकि कुछ सरकारी व अधिकारिक मामलों में अधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के प्रावधानों के तहत कुछ जानकारियों को आरटीआइ कानून के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है.
इन राज्यों की भी दयनीय स्थिति
स्टडी के मुताबिक बंगाल की तरह ही केरल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की भी स्थिति है. केरल में आरटीआइ के तहत कोई सूचना मांगते हैं तो करीब छह साल एवं ओडिशा में आरटीआई के तहत जवाब मिलने में पांच साल से अधिक का इंतजार करना पड़ जायेगा. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में आरटीआइ की स्थिति और भी दयनीय है. यहां का सूचना आयोग दोनों राज्यों के लिए काम करता है. मई 2017 में मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त के सेवानिवृत्त होने के बाद से ही यहां का सूचना आयोग मृतप्राय स्थिति में है.
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