हालांकि, बीएड के लिए प्रथम चरण में 12,871 छात्रों ने दाखिला लिया है, द्वितीय चरण में और 5200 छात्रों की भर्ती हुई थी. इसके बाद भी रिक्त सीटों पर भर्ती पूरी नहीं हुई तो यूनिवर्सिटी ने दाखिले के लिए तीसरे चरण की भी घोषणा कर दी. तीसरे चरण के लिए दाखिले की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन अब तक यूनिवर्सिटी ने इसका आंकड़ा पेश नहीं किया है. इस संबंध में यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सभी कॉलेजों द्वारा समय पर आंकड़ा नहीं मिलने की वजह से अब तक दाखिला लेनेवाले छात्रों की सही संख्या की जानकारी उपलब्ध नहीं है.
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अब ”मास्टर मोशाय” नहीं बनना चाहते बंगालवासी
कोलकाता: पश्चिम बंगाल के बारे में हमेशा से ही कहा जाता रहा है कि ‘बंगाल जो आज सोचता है, देश उसे कल सोचेगा.’ गहरी सोच रखनेवाले इस बंगाल में ‘मास्टर मोशाय’ अर्थात् शिक्षक बनने की चाहत लोगों में कम होती जा रही है. केंद्र सरकार के नियम के अनुसार, कक्षा पांच से 12 तक के […]
कोलकाता: पश्चिम बंगाल के बारे में हमेशा से ही कहा जाता रहा है कि ‘बंगाल जो आज सोचता है, देश उसे कल सोचेगा.’ गहरी सोच रखनेवाले इस बंगाल में ‘मास्टर मोशाय’ अर्थात् शिक्षक बनने की चाहत लोगों में कम होती जा रही है. केंद्र सरकार के नियम के अनुसार, कक्षा पांच से 12 तक के स्कूलों में शिक्षक की नौकरी के लिए अब बीएड अनिवार्य है. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि बंगाल में बीएड की पढ़ाई करने के लिए आवेदनों की संख्या में लगातार कमी आ रही है.
इस वर्ष तो कम हो रहे आंकड़ों ने राज्य सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है. अब तक राज्य के सभी बीएड कॉलेजों के लिए आवंटित सीटों के लिए 40 प्रतिशत से भी कम आवेदन जमा हुए हैं. गौरतलब है कि राज्य में द वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, एजुकेशन, प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के माध्यम से बीएड की शिक्षा प्रदान की जाती है. इस यूनिवर्सिटी के अंतर्गत कुल 389 कॉलेज हैं, जिनमें 18 सरकारी व 371 निजी कॉलेज शामिल है. इन 389 कॉलेजों में बीएड पाठ्यक्रम की पढ़ाई के लिए कुल 33,250 सीटें हैं, इनमें सरकारी कॉलेजों में 1250 व निजी कॉलेजों में लगभग 32 हजार सीटें उपलब्ध हैं. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इस वर्ष दाखिले के लिए अब तक सिर्फ 18 हजार सीटों के लिए आवेदन जमा हुए हैं.
कानूनी अड़चनों से नियुक्ति प्रक्रिया होती है प्रभावित
शिक्षक बनने की चाहत कम होने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण है कानूनी लड़ाई. जब भी शिक्षकों की नियुक्ति की बात सामने आती है तो बनाये गये पैनल पर सवाल खड़े हो जाते हैं और फिर उसके खिलाफ कोर्ट में मामला हो जाता है. फिर मामले की सुनवाई पूरी होने में वर्षों लग जाते हैं. गौरतलब है कि वर्ष 2011 के बाद पिछले छह साल में सिर्फ एक बार स्कूल सर्विस कमीशन शिक्षकों की नियुक्ति कर पाया है. हालांकि, शिक्षकों की नियुक्ति के लिए एसएससी द्वारा कई परीक्षाएं ली गयी हैं और विषय के आधार पर रिजल्ट भी प्रकाशित किये गये हैं, लेकिन कानूनी जटिलताओं के कारण नियुक्ति प्रक्रिया स्थगित है. वहीं, कक्षा 11 व 12वीं में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए परीक्षा हो चुकी है, लेकिन हाइकोर्ट में मामला होने के कारण इसके रिजल्ट की घोषणा नहीं हो पा रही. सफल परीक्षार्थियों की लिस्ट में नाम आने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने में कम से कम पांच-छह वर्ष का समय लग रहा है, जिसकी वजह से बंगाल के छात्रों में शिक्षक बनने की चाहत कम होती जा रही है.
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