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क्या अब अकेले पड़ गये हैं मुकुल राय?

कोलकाता: मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस की कार्यकारिणी से इस्तीफा देने के बाद क्या बिल्कुल अलग-थलग पड़ गये हैं. या फिर उनके साथ कौन-कौन लोग हैं. यह सवाल अहम हो गया है. इस सवाल का जवाब हर कोई तलाश रहा है. राजनीतिक हलके में इस बात को लेकर चर्चा तेज है. इस चर्चा को हवा दी […]

कोलकाता: मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस की कार्यकारिणी से इस्तीफा देने के बाद क्या बिल्कुल अलग-थलग पड़ गये हैं. या फिर उनके साथ कौन-कौन लोग हैं. यह सवाल अहम हो गया है. इस सवाल का जवाब हर कोई तलाश रहा है. राजनीतिक हलके में इस बात को लेकर चर्चा तेज है.

इस चर्चा को हवा दी है तृणमूल कांग्रेस के बहिष्कृत नेता और सांसद कुणाल घोष के फेसबुक पोस्ट ने. क्योंकि कुणाल घोष की पूजा के उदघाटन में जाकर मुकुल राय ने ममता बनर्जी पर इशारों ही इशारों में निशाना साधा था. जिस पर त्वरित प्रतिक्रिया के तहत तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें सोमवार को पार्टी से सस्पेंड कर दिया. लेकिन उसके पहले ही मुकुल राय ने पार्टी की कार्यकारिणी के सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया. लोगों को लग रहा था कि उनके साथ कोई और हो या न हो, कुणाल घोष रहेंगे. मगर मंगलवार को कुणाल घोष ने जिस तरह से अपने फेसबुक पोस्ट में सवाल उठाया उसके कई राजनैतिक मायने निकाले जा रहे हैं.

कुणाल घोष ने साफ लिखा है कि अगर वर्ष 2013 में मुकुल को यह भान होता, तो शायद आज उन्हें लेकर यह साजिश नहीं होती और न ही उन्हें पार्टी से बहिष्कृत होना पड़ता. इसके अलावा, उन्होंने पार्थ चटर्जी के बारे कहा कि वे लोगों का बहिष्कार करना जानते हैं, लेकिन बहिष्कृत को बहिष्कार का पत्र देना नहीं जानते हैं.
अपने पोस्ट में कुणाल लिखते हैं कि पार्टी के असमय में साथ निभानेवाले मुकुल दा पार्टी छोड़ने का निर्णय लिये हैं. इसलिए वह अपनी पार्टी की सदस्यता और सांसद पद भी छोड़ेंगे. जबकि मैं खुद पार्टी की मुसीबत का साथी हूं. आज भी मैं पार्टी को अपना नियमित चंदा देता हूं. पार्टी में मुझे लेकर विरोध हैं. मैं साजिश का शिकार हूं. लिहाजा मैं अपने स्तर पर अपनी लड़ाई लड़ रहा हूं. पार्टी छोड़ने की बात मैंने कभी नहीं की है. आज भी उसी निर्णय पर अडिग हूं, क्योंकि मैं तृणमूल कांग्रेस का सदस्य हूं. किसी मुद्दे पर उत्तेजित होकर अप्रिय बात बोल जरूर देता हूं. लेकिन पार्टी छोड़ने या किसी और पार्टी में जाने की बात आज भी मेरे मन में नहीं है. इसलिए पार्टी को चंदा देना बंद करना या फिर सांसद पद से इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता. क्योंकि मैं तृणमूल में हूं.

कुणाल के इस पोस्ट के बाद मुकुल राय के सहयोगी रहे विधायक शील भद्र और सिऊली साहा जो कभी मुकुल के साथ पार्टी छोड़ने के लिए तैयार थे, को तृणमूल कांग्रेस की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था. वे भी आज मुकुल पर यकीन करने को तैयार नहीं हैं. खुद कभी बागी रहे दोनों विधायक साफ शब्दों में कह रहे हैं कि हम तृणमूल कांग्रेस में ही रहेंगे और ममता बनर्जी के नेतृत्व में ही काम करेंगे. सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने साफ कहा कि मुकुल राय की विश्वसनीयता खत्म हो गयी है. उन पर अब यकीन करना मुश्किल है.

और तो और मुकुल के विधायक बेटे शुभ्रांशु राय भी ममता बनर्जी को आज भी अपना नेता मान रहे हैं. पिता के साथ जाने के सवाल पर वह कहते हैं वह अपनी राह, मैं अपनी राह. एक ही घर में पिता-पुत्र कैसे रहेंगे, के सवाल पर उनका तर्क है कि जब तमाम विरोध के बावजूद मुलायम सिंह, अखिलेश के साथ रह सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं? आखिर वह मेरे पिता हैं. लेकिन विचारधारा में अंतर तो हो ही सकता है. उनकी राजनीति अलग और मेरी अलग. ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब दुर्दिन के साथी विधायक मुकुल पर यकीन नहीं कर रहे हैं और खुद उनका बेटा उनके साथ नहीं जा रहा है. जिसके पूजा पंड़ाल में जाने की वजह से पार्टी से मुकुल को बहिष्कृत होना पड़ा और खुद पार्टी छोड़नी पड़ी. वही, सांसद कुणाल घोष भी खुद को तृणमूल का सदस्य बताते हुए पार्टी में ही रहने की बात कर रहे हैं. ऐसे में मुकुल राय क्या पूरी तरह अलग-थलग पड़ गये? क्या वह बिल्कुल अकेले रह गये हैं. यह सवाल राज्य की राजनीति में अहम हो गया है.

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