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मारवाड़ी सम्मेलन महापंचायत का गठन

बिड़ला, खेतान व मोदी होंगे सलाहकार डॉ हरिप्रसाद कानोड़िया होंगे पंचायत के अध्यक्ष प्रह्लाद राय अगरवाला, सीताराम शर्मा, डाॅ जुगलकिशोर सराफ, महेंद्र कुमार जालान, बालकिशन डालमिया व बालकृष्ण झंवर होंगे महापंचायत के सम्मानित सदस्य कोलकाता. अखिल भारतर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा मारवाड़ी समाज में सामाजिक व नैतिक मूल्यों में गिरावट, भौतिकवादी एवं भोगवादी अप-संस्कृति को लेकर […]

बिड़ला, खेतान व मोदी होंगे सलाहकार

डॉ हरिप्रसाद कानोड़िया होंगे पंचायत के अध्यक्ष

प्रह्लाद राय अगरवाला, सीताराम शर्मा, डाॅ जुगलकिशोर सराफ, महेंद्र कुमार जालान, बालकिशन डालमिया व बालकृष्ण झंवर होंगे महापंचायत के सम्मानित सदस्य

कोलकाता. अखिल भारतर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा मारवाड़ी समाज में सामाजिक व नैतिक मूल्यों में गिरावट, भौतिकवादी एवं भोगवादी अप-संस्कृति को लेकर व्यापक विचार-विमर्श के उपरांत एक ‘मारवाड़ी सम्मेलन महापंचायत’ के गठन का निर्णय लिया गया है. पंचायत के सलाहकार के रूप में समाज के वरिष्ठ एवं लब्धप्रतिष्ठित सुदर्शन कुमार बिड़ला, बृजमोहन खेतान एवं रघुनंदन मोदी ने स्वीकृति प्रदान की है.

पांच-छः दशकों के अंतराल के बाद सम्मेलन के संविधान के प्रावधानों के अनुरुप गठित इस पंचायत के अध्यक्ष डाॅ हरिप्रसाद कानोड़िया होंगे तथा प्रह्लाद राय अगरवाला, सीताराम शर्मा, डाॅ जुगलकिशोर सराफ, महेंद्र कुमार जालान, बालकिशन डालमिया एवं बालकृष्ण झंवर सम्मानित सदस्य होंगे.

इनके अतिरिक्त विशिष्ट आमंत्रित सदस्यों में नंदलाल रुंगटा, रामअवतार पोद्दार, संतोष सराफ एवं सांसद विवेक गुप्ता को मनोनीत किया गया है. रघुनंदन मोदी समन्वय हेतु संयोजक का भार संभालेंगे. इस महापंचायत के अंतर्गत सम्मेलन की सभी 14 प्रादेशिक शाखाओं में राज्य स्तर पर पंचायतों का गठन किया जायेगा.

सम्मेलन की समाज सुधार उपसमिति ने डाॅ जुगल किशोर सराफ की अध्यक्षता में वर्तमान में मुख्यतः वैवाहिक कार्यक्रमों में मद्यपान एवं विवाहों में बढ़ते दिखावे, आडंबर एवं फिजूलखर्ची पर चिंता व्यक्त करते हुए सम्मेलन द्वारा इन सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिये समाज सुधार के कार्यक्रम हाथ में लेने का आह्वान किया है. सम्मेलन के सभापति प्रह्लाद राय अगरवाला ने सम्मेलन सदस्यों से विवाह के दिन आयोजित काॅकटेल पार्टियों में नहीं जाने की अपील करते हुए समाज से वैवाहिक कार्यक्रमों में सादगी बरतने पर जोर दिया है.

अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा हाल ही में आयोजित एक परिचर्चा में समाजचिंतक सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष सीताराम शर्मा ने कहा : सामाजिक-नैतिक मूल्यों की गिरावट के इस दौर में एक भौतिकवादी एवं भोगवादी अप-संस्कृति का जन्म हो रहा है, जिसने मनुष्य को स्व-केंद्रीय बना दिया है. वह स्वतंत्र, स्वच्छंद एवं मनमर्जी का जीवन केवल अपने सुख के लिये जीना चाहता है, उसे पारिवारिक बंधनों, संयुक्त परिवार, समाज की परवाह नहीं है.

श्री शर्मा ने कहा मारवाड़ी समाज में एक समय पंचायत की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. ऐसे कई उदाहरण हैं. 1912 के आसपास की बात है- कालीप्रसाद खेतान (केपी) को उच्च शिक्षा के लिये लंदन भेजने का प्रस्ताव घनश्यामदास बिड़ला एवं जमुनालाल बजाज ने दिया.

रूढ़िवादियों ने इसका विरोध किया. समाज की पंचायत बुलायी गयी. तीन शर्तों पर- विशुद्ध शाकाहारी रहेंगे, अपने साथ रसोइया लेकर जायेंगे एवं महिलाओं के संपर्क में नहीं आयेंगे. केपी को अनुमति मिली. बैरिस्टर बन कर वापस लौटने पर भव्य स्वागत हुआ, लेकिन समाज के ही रूढ़िवादी दल ने केपी को जाति-बिरादरी से बाहर निकालने का प्रस्ताव दिया. मारवाड़ी पंचायत के हस्तक्षेप से प्रायश्चित के लिये तीर्थयात्रा करने के उपरांत केपी को समाज द्वारा स्वीकार किया गया. एक समय था जब समाज का संपन्न वर्ग समाज सुधार के कार्यों में सक्रिय दिलचस्पी लेता था. यह हर्ष का विषय है यह वर्ग अब पुनः सम्मेलन के साथ जुड़ रहा है.

अतीत में पंचायत की बड़ी शक्ति रही है. एक दिलचस्प घटना 1917 की है. कलकत्ता में बड़ी चर्चा थी कि घी में चर्बी मिलाई जाती है. मारवाड़ी एसोसिएशन ने घी व्यवसायियों को बुलाकर पूछताछ की लेकिन सबने मना कर दिया.

एक दिन प्रातः सर्वश्री सर हरिराम गोयनका, रायबहादुर शिवप्रसाद झुनझुनवाला, रायबहादुर विशेसरलाल हलवासिया, रंगलाल पोद्दार, जयनारायण पोद्दार, दौलतराम चोखानी, रामदेव चोखानी दल बांध कर घी के व्यवसायियों के यहां पहुंचे एवं प्रत्येक दुकान से एक-एक पीपे नमूने के लिये. जांच से पता चला उसमें चर्बी या मूंगफली के तेल की मिलावट थी.

महापंचायत बुलायी और सबके खातों की जांच हुई. जुर्माने किये, जाति बहिष्कृत किया गया. 75000 रुपये जुर्माने स्वरुप प्राप्त हुए. इन रुपयों से वृंदावन में गोचर भूमि खरीद ली गयी. पंचायत की शक्ति का संभवतः यह सबसे पुराना एवं अद्भुत नमूना है, जिसमे समाज के उस समय के सबसे संपन्न व्यक्ति समाज सुधार एवं पंचायती से जुड़े हुए थे. आज पुनः सम्पन्न वर्ग समाज सुधार से जुड़ रहा है, यह एक शुभ लक्षण है.

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