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पुरानी विरासत की तलाश में कॉलेज स्ट्रीट

कोलकाता: यदि आप भारत में रहते हैं और कोई पुरानी पुस्तक आपको कहीं नहीं मिल रही, तो यकीन मानिये आपको कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट में उसे तलाशने की सलाह जरूर मिल जायेगी. मध्य कोलकाता में करीब 1.5 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला कॉलेज स्ट्रीट, पुरानी किताबों की दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है. भारत का […]

कोलकाता: यदि आप भारत में रहते हैं और कोई पुरानी पुस्तक आपको कहीं नहीं मिल रही, तो यकीन मानिये आपको कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट में उसे तलाशने की सलाह जरूर मिल जायेगी.
मध्य कोलकाता में करीब 1.5 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला कॉलेज स्ट्रीट, पुरानी किताबों की दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है. भारत का सबसे बड़ा पुस्तक बाजार होने का सेहरा भी इसी के माथे पर है. देश के कई विशिष्ट प्रकाशकों का कार्यालय यहां मौजूद है. लेकिन ‘बोई पाड़ा’ के तौर पर विख्यात कॉलेज स्ट्रीट को पुरानी किताबों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है. छोटे-छोटे स्टॉल की शक्ल लिए पुरानी किताबों को समेटे इन दुकानों को देखकर आपको यह हरगिज पता नहीं चल सकता कि किताबों के कैसे नायाब खजाने इनमें छिपे हुए हैं. चाहें 50 के दशक में छपी दुर्लभ गणित की किताब हो या फिर आउट ऑफ प्रिंट हो चुका कोई दुर्लभ उपन्यास.
करीब 30 वर्षों से पुरानी किताब के स्टॉल पर बैठ रहे एन दास ने बताया कि यह व्यवसाय उन्हें अपने पिता से विरासत से मिली है. किताबों का शौक उन्हें भी है, लेकिन पढ़ने का वक्त अब कम ही मिल पाता है. वह कहते हैं कि कभी वक्त था, जब कॉलेज स्ट्रीट में पूरे वर्ष भारी भीड़ रहती थी. लेकिन अब उन्हें स्कूली सीजन की राह देखनी पड़ती है. उस दौरान वर्ष भर का 60-70 फीसदी व्यवसाय वह कर लेते हैं. स्कूली सीजन के दौरान स्कूल की किताबों के लिए अभिभावकों से लेकर विद्यार्थियों का हुजूम यहां उमड़ता है. इतने वर्षों तक इस कारोबार के साथ जुड़े रहने के कारण उन्हें पता रहता है कि कौन-सी किताब कहां मिल सकती है. इसके लिए आमतौर पर वह किसी भी ग्राहक को ना नहीं कहते. उसकी जरूरत की किताब वह ढूंढ़ के ला देते हैं. बदले में उन्हें कमीशन मिल जाता है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर पुरानी किताबें उन्हें मिलती कहां से हैं. श्री दास कहते हैं कि पुरानी किताबें उन्हें लोगों से ही मिलती है, जो उन्हें बेच देना चाहते हैं. कई बार तो दुर्लभ किताबें उन लोगों के पास रहती हैं, जिन्हें उसका मोल नहीं मालूम होता. किताबें खरीदने की बात करें, तो सामान्य नियम यह है कि जब दुकानदार किताब खरीदते हैं, तो किताब की कीमत का एक चौथाई वह अदा करते हैं. ग्राहक को बेचते वक्त सामान्य किताब होने पर 60-70 फीसदी कीमत लेते हैं और किताब यदि दुर्लभ हो तो मूल्य कीमत की कई गुणा वह ले लेते हैं. किताबों का खूब मोल-भाव यहां होता है. यदि कोई इस कला में निपुण है, तो वह यहां सफल हो सकता है. लेकिन सबकुछ निर्भर करता है किताब की उपलब्धता पर. दुकानदार को पता रहता है कि कौन-सी किताब बाजार में कम है और कौन बहुतायत में. मोलभाव का काफी कुछ दारोमदार इसपर निर्भर करता है. लेकिन टेक्नोलॉजी के इस युग में कॉलेज स्ट्रीट का बोई पाड़ा पुराने दिनों को याद करते हुए लुप्त हो रही विरासत को वापस पाने की बाट जोह रहा है.
दुकानदारों के मुताबिक कई पुरानी किताबों के रिप्रिंट आजकल मिल जाते हैं. कई ऐसी कंपनियां हैं, जो घर बैठे किताब पहुंचा देती हैं. ऐसे में कॉलेज स्ट्रीट की पुरानी किताबों की दुकानों की कद्र लगातार कम होती जा रही है. बावजूद इसके इन दुकानदारों की नजर हमेशा ही दुर्लभ पुस्तकों को तलाशती और उन किताबों के लिए जरूरतमंद पुस्तकप्रेमी को ढूंढ़ती रहती हैं.

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