कथित तौर पर मुख्यमंत्री ने मौजूदा समय में देश की स्थिति को लेकर भाजपा नीत केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की है. आरोप के अनुसार देश में ऐसी स्थिति गत तीन वर्षों से है लेकिन पश्चिम बंगाल में पिछले छह वर्षों से आपातकाल जैसी स्थिति है. विपक्षी दलों को दबाया जा रहा है. विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर झूठे आरोप लगा कर मामले किये जाते हैं. लोकतंत्र पर हमले हो रहे हैं. किसानों और श्रमिकों की स्थिति के दयनीय होती जा रही है.
युवा वर्ग बेरोजगारी से जूझ रहा है. महिलाओं की सुरक्षा पर संशय की स्थिति है. राज्य में सांप्रदायिक शक्तियां पैर पसार रही हैं. रैली व सभा के दौरान मीडिया कर्मियों पर भी हमले होते हैं. ऐसे में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की नीति में क्या कोई फर्क है? मिश्रा ने कहा कि भाषण के दौरान सुश्री बनर्जी ने देश के बड़े-बड़े घोटालों का जिक्र किया. साथ ही उसकी जांच प्रक्रिया की भी आलोचना की. वामपंथी तो पहले से ही कहते आ रहे हैं कि सारधा चिटफंड कांड और नारद कांड की भी सटीक जांच हो. चिटफंड कांड के पीड़ितों को मुआवजा दिया जाये. राज्य की स्थिति भी भिन्न नहीं है.
सभा के दौरान देश में किसानों के आत्महत्या किये जाने की बात कही गयी. समानता यह है कि इसे केंद्र सरकार नहीं करती और यदि पश्चिम बंगाल के बारे में ऐसा कहा जाये तो राज्य सरकार भी नहीं स्वीकार करती. तो फिर फर्क क्या है? फर्क इतना है कि पश्चिम बंगाल की स्थिति तीन वर्ष नहीं बल्कि गत छह वर्षों से बिगड़ी है. मिश्र ने सभा के दौरान दक्षिण 24 परगना जिला के रहनेवाले एक युवक द्वारा पेट्रोल पीने की घटना को लेकर भी तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि युवक के इस कृत्य की सही वजह सामने आनी चाहिए.