कोलकाता से गये फरमान में साफ कहा गया है कि फिलहाल अलीपुरद्वार के तृणमूल कार्यकर्ता जिला स्तर पर ही शहीद दिवस मनायें और विपक्ष को एक इंच भी जमीन नहीं छोड़े.
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21 जुलाई की सभा: तृणमूल को नहीं चाहिए अलीपुरद्वार की भीड़
कोलकाता : शहीद दिवस की सभा में रिकार्ड संख्या में भीड़ जुटाकर विरोधियों का मुंह बंद करना चाहती है तृणमूल कांग्रेस. इसके लिए छोटे से लेकर बड़े स्तर के सभी नेता जमकर पसीना बहा रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच अलीपुरद्वार की तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को कोलकाता में बैठे तृणमूल आलाकमान ने शहीद दिवस […]
कोलकाता : शहीद दिवस की सभा में रिकार्ड संख्या में भीड़ जुटाकर विरोधियों का मुंह बंद करना चाहती है तृणमूल कांग्रेस. इसके लिए छोटे से लेकर बड़े स्तर के सभी नेता जमकर पसीना बहा रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच अलीपुरद्वार की तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को कोलकाता में बैठे तृणमूल आलाकमान ने शहीद दिवस की सभा में नहीं आने का फरमान सुना दिया है.
आलाकमान के इस फैसले से पार्टी के अंदरखाने में चर्चाओं का बाजार गर्म है. आलाकमान का यह फरमान अलीपुरद्वार के छह ब्लाॅक के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए है. इन्हें निर्देश दिया गया है कि अपने-अपने ब्लाॅक में स्थानीय स्तर पर शहीद दिवस मनायें और भारी संख्या में लोगों की मौजूदगी सुनिश्चित करें. नतीजतन कोलकाता आने के लिए अलीपुरद्वार के तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने रेलवे के छह कोच जो रिजर्व किये थे, उन्हें कैंसिल करवा दिये हैं.
मिली जानकारी के मुताबिक तृणमूल आलाकमान का यह फैसला संगठन को बचाये रखने की कवायद की रणनीति के तहत किया गया है. तृणमूल सूत्रों की मानें, तो उत्तर बंगाल में तृणमूल की हालत दिनों-दिन पतली होती जा रही है. राजनीति की धुरी दो छोर में बंट गयी है. एक-सत्ता पक्ष यानी तृणमूल कांग्रेस है, तो दूसरा विपक्ष है. जिसकी कमान भाजपा के पास है. विरोधी दलों खासकर कांग्रेस व वाममोरचा के कार्यकर्ता जो तृणमूल की नीतियों से नाराज चल रहे हैं, उनके सामने भरोसा के रूप में भारतीय जनता पार्टी विकल्प के रूप में सामने आ रही है. इसके अलावा गोरखालैंड आंदोलन की आंच अब पहाड़ से उतरकर समतल पर भी आनी शुरू हो गयी है. गोरखा आंदोलन से जुड़े दलों की महिला विंग की सदस्य और छात्र संगठन अलीपुरद्वार में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. इसके अलावा भाजपा की शह पर अलीपुरद्वार जिला परिषद में तृणमूल कांग्रेस के बोर्ड अध्यक्ष के खिलाफ विरोधी अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं. इसके लिए 20 जुलाई को परिषद की बैठक है. इसके अलावा, भाजपा की विस्तारक योजना को साकार करने के लिए जिस तरह भाजपाई नेता जिले के विभिन्न ब्लाॅकों में लोगों के घरों में जा रहे हैं. उससे तृणमूल को सर्तक होना जरूरी है. ऐसे में अगर 21 जुलाई को शहीद दिवस की सभा में शामिल होने के लिए वहां से कार्यकर्ता कोलकाता आ रहे हैं, तो जिले में तृणमूल का कोई नाम लेनेवाला नहीं रहेगा. इस खाली जगह का फायदा उठाने में भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
तृणमूल की सबसे बड़ी चिंता 20 जुलाई को होनेवाली जिला परिषद की मीटिंग है. अगर तृणमूल के नेता और कार्यकर्ता नहीं रहे, तो भाजपा विरोधियों के साथ मिलकर बोर्ड को हथियाने की कोशिश करेगी. अगर वे अपने मंसूबों में कामयाब होते हैं, तो तृणमूल की राजनीति पर इसका दूरगामी असर पड़ेगा. तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक फिलहाल विरोध दर्ज कराने के लिए पार्टी ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में मीरा कुमार को अपना समर्थन दिया है. उप राष्ट्रपति पद पर वैंकया नायडू की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है. ऐसे में अगर जिला परिषद भी हाथ से निकल गया, तो भाजपा आमलोगों को यह समझाने में सफल रहेगी कि चारों तरफ तृणमूल हार रही है. उसके हाथ से जमीन खिसकती जा रही है. गोरखालैंड पहले से ही ममता से अलग है. लगातार हो रहे नकारात्मक प्रचार का जवाब देने में तृणमूल पूरी तरह सफल नहीं हो पा रही है. लिहाजा घर बचाये रखने के लिए आलाकमान ने अलीपुरद्वार के कार्यकर्ताओं को जिला नहीं छोड़ने का फरमान दिया है.
नतीजतन शहीद दिवस की सभा में घूम घूमकर लोगों से धर्मतल्ला आने की अपील कर रहे तृणमूल के नेता जिलावार दौरा कर पसीना बहा रहे हैं. प्रचार में जमकर पैसा फूंका जा रहा है. बावजूद इसके अलीपुरद्वार के नेता और कार्यकर्ताओं को कोलकाता आने से मना किया जा रहा है.
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