यह हमारी अपनी पहचान और भविष्य के लिए लड़ाई है. यह मेरा अधिकार है, जिसे मैं लेकर रहूंगा. वह उन हजारों युवाओं में से एक हैं, जो गोरखालैंड के समर्थन में खुल कर सामने आये हैं और लाठीचार्ज होने पर उन्होंने सुरक्षा बलों को चुनौती दी है. अपने चेहरे को काले कपड़े से ढके हुए तृतीय वर्ष के एक छात्र ने कहा : भारत एक लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सभी को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार है.
प्रदर्शन करने से हमें कोई कैसे रोक सकता है? हमने पहले हिंसा नहीं की थी, लेकिन अगर हमें पीटा जायेगा तो हम हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठेंगे. पुलिस को उसी की भाषा में जवाब दिया जायेगा. पथराव करनेवाले ज्यादातर युवा शिक्षित हैं और अच्छे परिवारों से संपर्क रखते हैं. कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में मास्टर्स करनेवाले 25 वर्षीय विनय ने कहा : मैं कोई गुंडा या सड़कछाप लड़का नहीं हूं, जिसे पुलिस जब चाहे पीट ले. मैं अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा हूं. मेरे परिवार के कई सदस्य सेना में रह चुके हैं और उन्होंने देश की सेवा की है.
हम राष्ट्र विरोधी नहीं हैं. हम चाहते हैं तो बस इतना कि हमारा अपना राज्य हो. राज्य के स्कूलों में बंगाल सरकार द्वारा बंगाली भाषा सीखना अनिवार्य किये जाने के बाद दार्जीलिंग के लोग जिनकी मातृभाषा नेपाली है, उन्हें अपने सांस्कृतिक अधिकारों पर अतिक्रमण का खतरा महसूस हो रहा है. दार्जीलिंग के एक जाने माने कॉलेज के एक छात्र ने कहा कि अगर राज्य सरकार ने बयान जारी कर घोषणा की होती कि पहाड़ी क्षेत्र में बंगाली नहीं थोपी जायेगी तो हालात इतने हिंसक ना होते. इलाके के चप्पे-चप्पे से परिचित पत्थरबाज युवक तेजी से अपनी जगह बदल लेते हैं जो पुलिस के लिए मुश्किल खड़ी करने वाला है.
सच कहें तो युवा सेना पर पथराव नहीं कर रहे, क्योंकि रक्षा बलों के लिए उनके दिलों में खास जगह है और दार्जीलिंग में लगभग 90 फीसदी परिवारों में कोई ना कोई सेवारत या सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी हैं. बीस वर्षीय एक युवक ने कहा : भारतीय सेना के लिए हमारे दिलों में खास जगह है. पहाड़ों में आपको एक भी ऐसा परिवार नहीं मिलेगा जिसमें कोई सेवारत या सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी या कर्मी ना हो.