रानीगंज : आधुनिकता के इस दौर में भले ही आकर्षणीय तथा महंगे रेफ्रीजेरेटर तथा शीतल पानी की मशीन लोगों के घर में क्यों न मौजूद हो लेकिन आज भी देशी फ्रिज अर्थात मिट्टी की सुराही, कलशी तथा हांडी का स्थान कोई नहीं ले पाया है. भीषण गरमी में सुराही तथा कलशी बेचने वालों के चेहरों पर अच्छी खासी रौनक है.
हालांकि सुराही तथा कलशी विक्रेताओं का कहना है कि कोयला नहीं मिलने से मिट्टी के इन बर्तनों को पकाने में काफी दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं. बांकुड़ा तथा झारखंड से सुराही, कलशी तथा हांडी लाने पर वाहनों का भाड़ा अधिक पड़ जाता है. इससे उस हिसाब में कमाई नहीं हो पा रही है. उन्होंने बताया कि सुराही 30 रुपया से 80 रुपया जबकि कलशी, छोटे तथा बड़े मुंह वाले हांडी 40 से लेकर दो सौ रुपये के बीच है. मध्यम आकार की कलशी की िबक्री अधिक हो रही है.