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खंगाली जा रही है आपराधिक पृष्ठभूमि
प्रथम दृष्टया राजनीतिक मानने से एडीसीपी (वेस्ट) का इंकार व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा को भी कारण मान कर जांच हो रही केंद्रित बर्नपुर : हीरापुर थाना अंतर्गत पुराना हाट निवासी व माकपा नीत वाममोर्चा के शासनकाल में अजेय बाहुबली रहे सुकुमार विश्वास उर्फ यीशु विश्वास की दिनदहाड़े हत्या के बाद बर्नपुर की माफिया संस्कृति फिर से चर्चा […]
प्रथम दृष्टया राजनीतिक मानने से एडीसीपी (वेस्ट) का इंकार
व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा को भी कारण मान कर जांच हो रही केंद्रित
बर्नपुर : हीरापुर थाना अंतर्गत पुराना हाट निवासी व माकपा नीत वाममोर्चा के शासनकाल में अजेय बाहुबली रहे सुकुमार विश्वास उर्फ यीशु विश्वास की दिनदहाड़े हत्या के बाद बर्नपुर की माफिया संस्कृति फिर से चर्चा में आ गयी है. हाल के कुछ वर्षो में यह कहानी इतिहास बनने लगी थी.
लेकिन इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. कोई भी शख्स इस हत्या के कारण के बारे में बता नहीं पा रहा है. कुछ लोग इसे उनके इतिहास से जोड़ कर देख रहे हैं तो कुछ इसे व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा मान रहे हैं. अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (वेस्ट) विश्वजीत महतो ने कहा कि प्राथमिक स्तर पर मिले साक्ष्यों के अनुसार यह मामला राजनीतिक नहीं लगता. लेकिन यह मामला व्यक्तिगत रंजिश का है या व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा का, इन पहलुओं की जांच की जा रही है.
एएसआइ हत्याकांड में भी जुड़ा था नाम
पुलिस सूत्रों के अनुसार उस समय बर्नपुर इलाके में कांग्रेस की तूंती बोलती थी तथा वामपंथी नेताओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. राज्य में वाममोर्चा की सरकार गठित होने के बाद भी उनका प्रभाव काम नहीं आ रहा था. कांग्रेसी नेता अपने बाहुबली सहयोगियों के साथ उनके हर आंदोलन को विफल कर देते थे. कांग्रेस व माकपा के बीच जारी विवाद के बीच से ही यीशू को राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा. यीशू टॉकीज के साथ-साथ विभिन्न व्यवसाय में भी सक्रियता बढ़ाने लगे. 12 जनवरी, 1984 में सहायक अवर निरीक्षक (एएसआइ) रविलोचन नाथ की हत्या कर दी गयी. इस मामले में भी यीशू को नामजद अभियुक्त बनाया गया. हालांकि कुछ वर्ष पहले ही इस मामले में कोर्ट ने उन्हें निदरेष साबित कर दिया था.
इस मामले में रिहाई होने के बाद यीशू काफी खुश थे. इसके बाद तो उनका रूतबा और बढ़ गया. पहली बार बर्नपुर में वर्ष 1985 में कांग्रेस कर्मियों के जुलूस पर बमबाजी की गयी तथा पहली बार कांग्रेसी बाहुबलियों को खुली चुनौती मिली. इस समय तक माकपा नेताओं के साथ उनके संबंध काफी मधुर व जगजाहिर हो गये थे. इसके बाद तो पूरे शहर में उनकी तूती बोलती थी. छोटे बड़े कई मामले उनके खिलाफ दर्ज होते रहे. उस समय चित्र सिनेमा हॉल मोड़ को केंद्रित कर सिंडिकेट का संचालन होता था. इसका नेतृत्व उस जमाने के त्तकालीन बाहुबली गोरांगो सेन के नेतृत्व में होता था. यह सिंडिकेट माकपा विरोधी था. वर्ष 1989 में बर्न स्टैंडर्ड के सामने दिनदहाड़े सड़क पर गोरांगो सेन की हत्या कर दी गयी. इस हत्याकांड में भी यीशू का नाम जुड़ा. वाममोर्चा के शासनकाल में उनका प्रभाव बढ़ता ही रहा.
सुरक्षा को लेकर रहते थे काफी चौकस हमेशा
अपनी सुरक्षा को लेकर यीशू हमेशा से काफी सतर्क रहते थे. यह अलग बात है कि उन्होंने कोई निजी अंगरक्षक नहीं रखा था. लेकिन उनके सहयोगी उनके आस पास काफी सुरक्षित घेरा बना कर रखते थे. वे घर से भी काफी कम ही निकला करते थे. सार्वजनिक स्थलों पर उनकी उपस्थिति काफी कम होती थी. लेकिन इन दिनों वे नियमित रूप से पार्क जाने लगे थे.
वे नियमित रूप से रोजाना अपनी कार से पार्क तक पहुंचते थे. कार को वे गेट पर ही छोड़ देते थे. कार पार्क में स्थित रेस्टूरेंट तक चली जाती थी. वे पैदल ही पार्क के विभिन्न क्षेत्रों का निरीक्षण करते हुए रेस्टूरेंट तक पहुंचते थे. कुछ समय बिता ने के बाद वे घर को लौटते थे. इस दौरान उनके पुत्र व उनके सहयोगी भी उनके साथ रहते थे. लेकिन शुक्रवार को अपराधियों ने उनकी सि दिनचर्या का लाभ उठा कर उनकी हत्या कर दी. शुक्रवार को भी उन्होंने गेट पर उतर कर अपने चालक को रेस्टूरेंट में भेज दिया और अकेले ही पार्क में घूमने लगे. बोटिंग स्थल के पास उन्हें मौत की नींद सुला दी गयी.
हत्यारों की संख्या को लेकर बना है संशय
अपराधियों की पहचान व उनकी संख्या को लेकर काफी उहापोह की स्थिति है. सिर्फ दो शूटरों ने लगातार फायरिंग की. तय है कि दोनों शूटरों ने आधुनिकतम नाइन एमएम पिस्टल या किसी अन्य रिवाल्वर का उपयोग किया. उनमें से एक शूटर काफी तेज था. उसने ही अकेले यीशू पर लगातार गोलियां चलायी. जबकि दूसरा हवा में फायरिंग कर भगदड़ का माहौल बनाता रहा.
इसका मकसद इसका लाभ उठा कर भागना था. पुलिस को यह भी पता नहीं चल पा रहा है कि आखिर दोनों हत्यारे भागे तो किधर से? कुछ लोगों का कहना है कि दोनों रिभर साइड की तरफ चारदीवारी फांदे. लेकिन उस क्षेत्र में अधिक समय तक छिपना संभव नहीं है. कुछ का कहना है कि दोनों बर्नपुर की तरफ दीवार फांदे. दीवार के पास तीन या चार बाइक लगीं हुयी थी. इन्हें पार्क नहीं किया गया था. घटना के बाद सभी बाइक वहां से गायब हो गयी थी. संभावना यह भी है कि वे बाइक आम युवकों की हो. लेकिन जिस दिलेरी से उनकी हत्या की गयी है, उससे नहीं लगता कि हत्यारों की संख्या दो तक सीमित रही होगी.
सिनेमा टिकट बिक्री से हुई थी शुरुआत
पुलिस अधिकारी हत्या के कारणों को तलाशने के प्रयास में यीशू की आपराधिक पृष्ठभूमि को खंगाल रहे हैं. यीशू के पिता स्व. निरंजन विश्वास इस्को आयरन स्टील कंपनी लिमिटेड (इस्को) के कर्मचारी थे. उनके दो पुत्र थे. पहला रणवीर विश्वास व दूसरा सुकुमार विश्वास उर्फ यीशू. यीशु अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सका तथा उस समय मौजूद बर्नपुर सिनेमा हॉल में टिकट की ब्लैक के धंधे से जुड़ गये. उस जमाने पर में इससे काफी कमाई होती थी.
इसके बाद उन्हें इसी टॉकीज में टिकट काउंटर संचालित करने का कार्य मिल गया. वर्ष 1975 में उनकी शादी कोलकाता निवासी निरूपमा विश्वास उर्फ नारू से हो गयी. टॉकीज में टिकट काउंटर संभालते समय ही उनका विवाद उस समय इलाके के काफी दबंग रहे विष्णु सोनार के साथ हो गया. विष्णु ने उन्हें पारिवारिक सदस्य के सामने काफी अपमानित किया. इस अपमान को वे भूला नहीं पाये. कुछ समय बाद ही सार्वजनिक रूप से विष्णु सोनार की हत्या कर दी गयी. इस हत्या में उनकी संलिप्तता की बात सामने आयी तथा पहली बार अपराध जगत में उनकी धमाकेदार इंट्री मानी गयी. इसके बाद से उनका प्रभाव बढ़ने लगा.
बीते साल ही मिला था पार्क संचालन का कार्य
रिभर साइड में स्थित नेहरू उद्यान के संचालन का दायित्व उन्होंने पिछले साल ही लिया था. इस्को प्रबंधन ने पहली बार इस उद्यान के संचालन का दायित्व यीशू को ही दिया था. कई वर्षो तक उन्होंने इस उद्यान का सफल संचालन किया. बाद में इसका संचालन कभी उनके सहयोगी रहे रितेन बसाक उर्फ फूफा को मिल गया. उन्होंने कमोवेश चार सालों तक इसका संचालन किया. बाद में पिछले वर्ष इस पार्क के लिए नये सिरे से टेंडर जारी किया गया.
लेकिन तकनीकी कारणों से वह पूरी नहीं हो पायी. इसके बाद कुछ समय तक इसका संचालन इस्को प्रबंधन ने अपने स्तर से किया. लेकिन बाद में फिर से इस उद्यान का संचालन यीशू को दे दिया गया था. दायित्व मिलने के बाद से ही वे इस उद्यान को नये सिरे से बेहतर बनाने व सौंदर्यीकरण में जुट गये थे. म्यूजिकल फाउंटेन को वे विशेष रूप से आकर्षक बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कोलकाता की कंपनी को अनुबंधित किया था और यह कार्य चल रहा था.
कालीपूजा के माध्यम से सामाजिक सक्रियता
अपने व्यवसाय के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी सुकुमार विश्वास उर्फ यीशू की सक्रियता बनी रहती थी. पिछले तीन दशकों से वे बर्नपुर पब्लिक फ्रेंडस कमेटी के नाम से भव्य कालीपूजा का आयोजन किया करते थे. उनकी यह पूजा किसी भी मायने में दुर्गापूजा से कम नहीं होती थी.
हजारों की संख्या में श्रद्धालु इसे देखने आते है. पूरे महकमा में इस पूजा का प्रभाव है. बर्नपुर के निवासी काफी शिद्दत से इस कालीपूजा का इंतजार करत ेहैं. उनकी पत्नी निरूपमा विश्वास ने कुछ वर्ष पहले से महिलाओं को गोलबंद कर दुर्गापूजा आयोजित करना शुरू किया है. इस पूजा के आयोजन में सभी महिलाएं ही सक्रिय रहती हैं. इसमें पुरुषों को बाहर से समर्थन व सहयोग करना पड़ता है. यीशू के पास आर्थिक मदद के लिे भी बड़ी संख्या में जरूरतमंद पहुंचते थे और वे यथासंभव सबकी मदद करते थे.
यही कारण है कि आम जनता में उनक ा आतंक बहुत था, लेकिन व्यक्तिगत रूप से कोई उनका आलोचक नहीं था. पारिवारिक मामले में भी वे दो भाई थे. बड़े भाई सेवानिवृत्त हो चुके है. बड़े भाई के दो पुत्र थे. उनमें से एक की मौत किडनी की बीमारी होने के कारण हो गयी. उनके पुत्र की शादी हो चुकी है तथा वह उनके व्यवसाय में सहयोग करता है. जबकि बेटी की शादी हो चुकी है. घटना के समय उनका पुत्र पार्क में ही मौजूद था.
बढ़ते प्रभाव का उपयोग कर कई व्यवसाय
इस प्रभाव का उपयोग यीशू ने अपने व्यवसायिक विस्तार में किया. इस्को कारखाने में ठेका से लेकर स्क्रैप की नीलामी तक उनका प्रभाव चलता था. इसके साथ ही कई विभिन्न व्यवसायों में भी उनका निवेश था.
लेकिन वर्ष 2011 में राज्य से वाममोर्चा सरकार के पतन के बाद यीशू ने खुद को काफी आत्मकेंद्रित कर लिया था. राजनीतिक गतिविधियों में वे पहले भी नहीं दिखते थे, बाद में भी नहीं नजर आये. लेकिन उन्होंने अन्य बाहुबलियों की तरह तृणमूल नेताओं से नजदीकी बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं की थी. इस समय उनका व्यवसाय कारखाने के भीतर व बाहर ठेका, स्क्रैप तथा नेहरू पार्क के संचालन से जुड़ा है. पुलिस अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हत्या का कारण उनका आपराधिक पृष्टभूमि रहा है उनके व्यवसाय पर अधिकार जताना.
माकपा के लिए हो सकता है बड़ा झटका
यीशू की हत्या माकपा के लिए कमर तोड़नेवाली साबित हो सकती है. वर्ष 2011 के बाद से ही बर्नपुर में तथा आइएसपी में माकपा व सीटू पर लगातार हमले हो रहे हैं. सबसे पहले आठ नंबर बस्ती निवासी व माकपा के काफी करीबी रहे रामलखन यादव की दिनदहाड़े हत्या दो जून को हो गयी.
इस हत्याकांड में तीन की मौत हुयी. इससे आइएसपी में दबाब कम हुआ. इसके बाद माकपा कर्मी निगरुन दूबे की हत्या कर दी गयी. इस सदमे से निपटने से पहले ही सीटू के वरीय नेता वामापदो मुखर्जी के इकलौते पुत्र अर्पण मुखर्जी की हत्या कर दी गयी. इससे आइएसपी के बाहर व भीतर पार्टी का प्रभाव अत्यधिक कमजोर हो गया. स्थिति की नजाकत को देखते हुए पार्टी के पूर्व विधायक दिलीप सरकार ने मोर्चा संभाला, लेकिन मॉर्निग वाक के दौरान उनकी भी हत्या कर दी गयी.
रामलखन हत्याकांड व निगरुन हत्याकांड में तो गिरफ्तारी भी हुयी, लेकिन अर्पण व दिलीप सरकार हत्याकांड में कोई गिरफ्तारी नहीं हो सकी है. इसके बाद यीशू की हत्या दिनदहाड़े हो गयी. माकपा के लिए यह करारा झटका है. यही कारण है कि माकपा नेता भले ही उसे अपनी कर्मी नहीं मान रहे हैं, लेकिन पार्टी नेता अशोक मुखर्जी ने इस घटना पर क ड़ा रोष जताते हुए हत्यारों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की है.
व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा भी बन सकता है कारण
यीशू के कुछ करीबी इसे व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा भी मान रहे हैं. उनका कहना है कि यीशू के खिलाफ जितने भी आपराधिक मामले थे, उनमें से अधिसंख्य में वह बरी हो चुका था. उम्र साठ वर्ष के करीब थी.
इस कारण किसी भी शख्स से पुरानी दुश्मनी भी नहीं रह गयी थी. आइएसपी का आधुनिकीक रण होने के बाद संभवत: कॉलोनी विकास व बुनियादी सुविधाओं के लिए बड़े पैमाने पर कार्य हो सकता है. यीशू का प्रभाव इन दिनों भी इन ठेका कार्यो पर था. आशंका है कि उसकी हचत्या कर यह मैसेज देने की कोशिश की गयी है कि इन कार्यो में कुछ खास लोगों की ही चलेगी. सनद रहे कि संप्रीति भवन के निर्माण जैसे कार्य यीशू की देखरेख में ही किये गये थे.
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