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नौ सौ करोड़ का बकाया
इसीएल का 95 फीसदी कोयला बिजली कंपनियों को सांकतोड़िया : इस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड (इसीएल) का नौ सौ करोड़ रुपया विभिन्न बिजली उत्पादक कंपनियों पर बकाया है. जिसमें सबसे ज्यादा बकाया वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड पर है. यह राशि 660 करोड़ रुपये की है. इस राशि के भुगतान के लिए कंपंनी लगातार पत्रचार कर […]
इसीएल का 95 फीसदी कोयला बिजली कंपनियों को
सांकतोड़िया : इस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड (इसीएल) का नौ सौ करोड़ रुपया विभिन्न बिजली उत्पादक कंपनियों पर बकाया है. जिसमें सबसे ज्यादा बकाया वेस्ट बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड पर है. यह राशि 660 करोड़ रुपये की है. इस राशि के भुगतान के लिए कंपंनी लगातार पत्रचार कर रही है.
कंपनी के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक के तकनीकी सचिव निलाद्री राय ने कहा कि कंपनी 29 बिजली उत्पादक कंपनियों को कोयले की आपूर्त्ति करती है.
कंपनी के उत्पादन का 95 फीसदी कोयला बिजली उत्पादक कंपनियों को ही आपूर्त्ति की जाती है.
शेष पांच फीसदी कोयला स्टील, सीमेंट व छोटे छोटे कारखानों को आपूर्त्ति होती है. उन्होंने कहा कि अगर नौ सौ करोड़ रुपये की राशि कंपनी के पास आ जाती तो कंपनी की वित्तीय स्थिति में और ज्यादा सुधार होता. हालांकि वित्तीय वर्ष 2013-14 की अपेक्षा वित्तीय वर्ष 2014-15 में बकाया राशि काफी कम किया गया है.
इस समय वेस्ट बंगाल स्टेट इलेक्ट्रीसिटी सप्लाई कंपनी के पास 660 करोड़ रुपया बकाया है. इस बकाया राशि की वसूली के लिए कंपनी ने अनुबंध कर रखा है. बिजली कंपनी द्वारा जमा की गयी राशि की 30 फीसदी राशि बकाया में समायोजित होती है तथा 70 फीसदी राशि का कोयला भेजा जाता है.
श्री राय ने कहा कि दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) पर कंपनी का 250 करोड़, दुर्गापुर पावर लिमिटेड (डीपीएल) पर 70 करोड़, बिहार राज्य विद्युत बोर्ड पर 20 करोड़, टीएनबी पर 80 करोड़ रुपये की राशि बकाया है. एनटीपीसी नियमित रूप से भुगतान कर रहा है. इस कारण इस पर कोई बकाया नहीं है.
वित्तीय वर्ष 2013-14 में एनटीपीसी के पास सबसे ज्यादा 12 सौ करोड़ रु पये का बकाया हो गया था. परंतु सारे विवाद समाप्त हो गये और बकाया राशि का भुगतान भी हो गया है. जिन- जिन कंपनियों पर बकाया राशि है, उनसे लगातार पत्रचार कर बकाया भुगतान के लिए दबाव बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कुछ माह पहले ही कंपनी बीआइएफआर से बाहर निकली है. इसके बाद कंपनी की जिम्मेदारियां और भी बढ़ गयी है.
इस चुनौती का सामना करने के लिए कंपनी की वित्तीय स्थिति को मजबूत रखना होगा. इसके लिये प्रयास जारी है. श्री राय ने कहा कि बीआइएफआर से बाहर निकलने के बाद कंपनी प्रबंधन ने कोल इंडिया प्रबंधन के माध्यम से केंद्र सरका को मिनी रत्न कंपनी का दर्जा देने के लिए आग्रह किया गया है. कंपनी इसके लिए निर्धारित सभी शत्त्रे पूरी करती है.
यदि यह दर्जा मिल गया तो कंपनी पांच सौ करोड़ रूपये की लागतवाली परियोजना को मंजूरी अपने निदेशक बोर्ड की बैठक में दे पायेगी. अभी इस तरह की परियोजना के लिए कोल इंडिया बोर्ड के ऊपर निर्भर करना पड़ता है. कोल इंडिया से परियोजना को मंजूरी मिलने में काफी समय लग जाता है. कंपनी के हाथ में रहेगा तो किसी भी समस्या का निदान तुरंत हो जायेगा.
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