कोलकाता: औद्योगिक विकास के क्षेत्र में भले ही पश्चिम बंगाल देश के टॉप टेन राज्यों में भी शामिल नहीं है, पर महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अपराध के मामले में उसने पहला स्थान हासिल कर लिया है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से मिले आंकड़े के अनुसार वर्ष 2012 में पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 30,942 मामले दर्ज हुए, जिनमें महानगर में 2079 मामले दर्ज हुए थे. महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में दूसरा स्थान आंध्र प्रदेश (28171), तीसरा उत्तर प्रदेश (23569) और चौथा स्थान राजस्थान (21106) का है. वहीं, बिहार में 11229 व झारखंड में 4536 मामले दर्ज किये गये. इन आंकड़ों का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इनमें अधिकतर मामले कानून की धारा 498 ए के तहत दर्ज हुए हैं. जो किसी महिला पर उसके ससुरालवालों द्वारा अत्याचार करने पर लागू होता है. एनसीआरबी से मिले आंकड़े के अनुसार 498 ए के अंतर्गत दर्ज होनेवाले मामलों में भी बंगाल पहले स्थान पर है. 2112 में बंगाल में महिलाओं के खिलाफ दर्ज हुए कुल 30942 मामले में अकेले 498 ए के तहत 19865 मामले दर्ज हुए थे. जो महिलाओं के खिलाफ दायर अपराध के कुल मामलों का 64 प्रतिशत है. वहीं, देश भर में 498 ए के 106000 मामले दर्ज किये गये थे. इसके तहत दो लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें 45 हजार महिलाएं थीं.
पश्चिम बंगाल में 498 ए के तहत 2012 में गिरफ्तार होनेवालों की तादाद 50 हजार बतायी जाती है. आंध्र प्रदेश में 13389, राजस्थान में 13312 व उत्तर प्रदेश में 7661 मामले 498 ए के थे. वहीं, बिहार में 3686 और झारखंड में 1261 मामले दर्ज किये गये. महिलाओं के खिलाफ होनेवाले गंभीर अपराधों की संख्या काफी कम है. 2012 में बंगाल में दुष्कर्म के 2046, अपहरण के 5117, हत्या के 2252 व हत्या की कोशिश के 2854 मामले ही दर्ज हुए. इन आंकड़ों का एक और मजेदार पहलू यह है कि 498 ए के मामलों में पश्चिम बंगाल में दोष साबित होने का प्रतिशत महज 4.4 प्रतिशत है. जो देश में सबसे कम है. इस में लगातार कमी आती जा रही है. 2010 में यह 6.3 प्रतिशत था. 2011 में 498 ए के 19772 मामले दर्ज हुए थे.
नहीं मान रहे सकरुलर
केंद्रीय गृह मंत्रलय के जूडिशियल सेल ने एक सकरुलर जारी कर इस संशोधन के संबंध में सभी राज्य सरकारों को इस संशोधन की जानकारी दे दी है. पर पश्चिम बंगाल समेत देश की कोई भी राज्य सरकार इस कानून का पालन नहीं कर रही है. छोटे-छोटे मामले में आरोप दायर होते ही पुलिस फौरन आरोपी को गिरफ्तार कर लेती है, जो सरासर अन्याय है.