कोलकाता : वयोवृद्ध माकपा नेता और स्वतंत्रता सेनानी समर मुखर्जी का आज यहां उम्र संबंधी बीमारियों के चलते निधन हो गया. वह अपने ओजस्वी भाषणों और नेतृत्व क्षमता के लिए लोकप्रिय थे. वह अविवाहित थे.पिछले साल नवंबर में 100वां जन्मदिन मनाने वाले मुखर्जी माकपा के सबसे बुजुर्ग जीवित सदस्य थे. वह 1940 में पार्टी में शामिल हुए थे. अपने जीवन का अधिकतर समय पार्टी कार्यों में बिताने वाले माकपा नेता का जन्म रुस में ग्रेट अक्तूबर रिवॉल्यूशन से महज चार साल पहले हुआ था और उन्होंने 1991 में सोवियत संघ का विघटन भी देखा.
कम्युनिस्ट आंदोलन की पुरानी और नई, दोनों पीढ़ियों के लोग मुखर्जी का बहुत सम्मान करते थे. उन्होंने हावड़ा में पार्टी का कामकाज देखने के लिए 1940 में अपने परिवार को छोड़ दिया था और अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने थे. जब 1964 में पार्टी सैद्धांतिक मसलों पर अलग हुई तो वह माकपा में शामिल हो गये. मुखर्जी 1957 से 1971 तक पश्चिम बंगाल विधानसभा के सदस्य रहे. उनका जन्म 7 नवंबर, 1913 को हावड़ा जिले के आमटा में हुआ था. माकपा ने उनका सौंवां जन्मदिन धूमधाम से मनाया था. वह 1971 से 84 तक लगातार तीन कार्यकाल के लिए लोकसभा के सदस्य भी रहे. 1986 में वह राज्यसभा में मनोनीत हुए. मुखर्जी ने सीटू महासचिव, माकपा पोलितब्यूरो के सदस्य और केंद्रीय समिति के सदस्य के तौर पर अनेक पदों पर रहते हुए भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन में सहयोग दिया.
वह कई साल तक पार्टी की एक उच्चस्तरीय इकाई के अध्यक्ष रहे. मुखर्जी की पार्थिव देह को जनता के दर्शन के लिए अलीमुद्दीन स्टरीट्स में माकपा के प्रदेश मुख्यालय में रखा जाएगा. पार्टी सूत्रों के मुताबिक उसके बाद मुखर्जी की इच्छानुसार उनकी पार्थिव देह को एक अस्पताल को दान किया जाएगा. माकपा ने कहा, ‘‘हमने इस तरह के लोगों को विरले ही देखा है जिन्होंने अपने निजी हितों का बलिदान कर दिया और पार्टी की सेवा में पूरी जिंदगी बिता दी हो.’’ माकपा पोलित ब्यूरो ने उन्हें भारत में मार्क्सवादी आंदोलन का अत्यधिक समर्पित नेता करार देते हुए कहा कि वह जुझारु स्वतंत्रता सेनानी, सक्षम सांसद और ट्रेड यूनियन आंदोलन के नेता थे.