कोलकाता / नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राज्य के ‘नौकरशाहों के रवैये’ पर नाराजगी व्यक्त करते हुये मंगलवार को कहा कि अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं के अभाव में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण सहित तमाम न्यायाधिकरणों का कामकाज दयनीय हालत में हैं. न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने न्यायाधिकरणों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि यह दयनीय है. समझ में नहीं आता कि न्यायाधीश ऐसे काम स्वीकार करने के लिये कैसे तैयार हो जाते हैं.
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बुनियादी सुविधाओं और कर्मचारी मुहैया कराने के लिये इस न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है. न्यायाधीशों ने कहा कि नौकरशाही का यह कैसा रवैया है. हम आहत हैं कि भारतीय प्रेस परिषद तक के पास अपना कार्यालय नहीं है. हम विस्मित हैं कि विधि आयोग कनाट प्लेस में कहीं पर है. कितना किराया है? एक करोड़ रुपये. विधि आयोग का पुस्तकालय उच्चतम न्यायालय के सामने स्थित भारतीय विधि संस्था की इमारत में है. न्यायाधीशों ने कोलकाता में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के लिये अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं और इसके सदस्यों के आवास की स्थिति से संबंधित मसले पर विचार के दौरान तीखी टिप्पणियां कीं.
न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यावरण) त्रिलोचन सिंह को स्पष्ट चेतावनी देते हुये कहा कि यदि राज्य सरकार अच्छी बुनियादी सुविधाएं और सदस्यों को उचित आवास मुहैया कराने में असफल रही तो फिर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को रांची या गुवाहाटी स्थानांतरित करने का आदेश देने के लिये उसे बाध्य होना पड़ेगा.
न्यायालय ने त्रिलोचन सिंह से कहा कि वे राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के साथ विचार-विमर्श करके न्यायाधिकरण की पीठ को क्रियाशील बनाने के प्रयास करें. न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई दो अगस्त के लिये स्थगित कर दी. उस दिन पश्चिम बंगाल सरकार कोलकाता के न्यू टाउन इलाके में न्यायाधिकरण के सदस्यों के लिये आवासीय सुविधा मुहैया कराने के सुझाव पर गौर करेगी. न्यायालय ने पुणो स्थित हरित न्यायाधिकरण की पीठ में भी एक अगस्त से काम शुरु करने का निर्देश दिया है.
शीर्ष अदालत ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिये उपलब्ध आवासीय सुविधा और उनके लिये कामकाज के माहौल पर भी अप्रसन्नता व्यक्त की. न्यायाधीशों ने कहा कि स्टेनोग्राफर न्यायाधीश के घर नहीं आते हैं. वे दो टूक शब्दों में कहते हैं कि न्यायाधीशों के घर आना उनका काम नहीं है. इस बीच, केंद्र ने कोर्ट को सूचित किया कि पूर्वी भारत में हरित न्यायाधिकरण की पीठ स्थापित करने में आठ से 12 महीने का और विलंब होगा. शीर्ष अदालत ने 15 मार्च के आदेश में भोपाल, पुणो और कोलकाता में हरित न्यायाधिकरणों में 30 अप्रैल से काम शुरु करने का निर्देश दिया था.