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सीबीआई की पूछताछ के बाद प. बंगाल के राज्यपाल ने दिया इस्तीफा

कोलकाताः अगस्तावेस्टलैंड के साथ 3600 करोड़ के वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे में कथित घूस के आरोपों को लेकर सीबीआई से पूछताछ के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन ने आज इस्तपीफा दे दिया. नारायणन को कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए-2 सरकार में गवर्नर बनाया गया था. बीजेपी की अगुवाई वाली मौजूदा एनडीए सरकार राज्यपालों […]

कोलकाताः अगस्तावेस्टलैंड के साथ 3600 करोड़ के वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे में कथित घूस के आरोपों को लेकर सीबीआई से पूछताछ के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन ने आज इस्तपीफा दे दिया.

नारायणन को कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए-2 सरकार में गवर्नर बनाया गया था. बीजेपी की अगुवाई वाली मौजूदा एनडीए सरकार राज्यपालों को बदलना चाहती थी. इधर अगस्तावेस्टलैंड मामले ने एम के नारायणन की मुश्किलें और बढ़ा दी और उनके इस्तीफे की अटकले तेज हो गयी थी.

अगस्तावेस्टलैंड डील मामले में सीबीआइ नारायणन समेत दो राज्यपालों से पूछताछ करने की तैयारी कर रही थी. सीबीआइ इस मामले में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन और गोवा के राज्यपाल बी वी वांचू से पूछताछ करना चाहती थी. किन्तु कानून विशेषज्ञों के राय में राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए नारायणन से पूछताछ करने में थोडी कानूनी बाध्यता थी. इस कारण से नारायणन पर इस्तीफे का दबाव था.

क्या है आरोप

अगस्तावेस्टलैंड डील मामले में पूर्व वायुसेना प्रमुख के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने खरीदे जाने वाले हेलीकॉप्टर के लिए उड़ान-ऊंचाई की सीमा कम कर दी थी, ताकि अगस्ता वेस्टलैंड भी बोली में शामिल हो सके. वह निर्णय एसपीजी तथा नारायणन समेत तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय से विचार-विमर्श के बाद किया गया था.

सीबीआई का दावा है कि हेलीकॉप्टर की उड़ान की ऊंचाई के साथ उड़ान मूल्यांकन में इस रूप से बदलाव किया गया जिससे अगस्ता वेस्टलैंड सौदा हासिल कर सके.

गौरतलब है कि जिस वक्त यह अगस्तालैंड सौदा हुआ था उस वक्त एम के नारायणन यूपीए सरकार मेंराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर आसीन थे.

नयी सरकार बनते ही शुरु हो गयी थी राज्यपालों पर राजनीति

एनडीए की सरकार बनने के बाद से सरकार ने सभी पुराने नुमाईदों को हटाने का काम शुरु कर दिया. इसी क्रम में सरकार ने राज्यपालों से इस्तीफे की पेशकश की जिसके बाद कुछ ने तो स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया लेकिन कुछ अपनी जिद पर अड़े रहे.

अपने पूर्ववर्ती गवर्नरों को हटाने का यह सिलसिला नया नहीं है

अपने सरकार से पहले के सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपालों को हटाने का यह सिलसिला नया नहीं है. 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल को बदल दिया था. 1980 में तमिलनाडु के राज्यपाल प्रभुदास पटवारी को यह कहते हुए हटा दिया गया था कि संविधान की धारा 156(1) के तहत राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत बने रहते हैं और इसी संवैधानिक प्रावधान के तहत प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से राज्यपाल को हटाने का आग्रह कर सकते हैं.

आधुनिक समय में इस प्रक्रिया ने जोर पकडा. यूपीए सरकार ने भी 2004 में जब उनकी सरकार बनी तो यूपीए ने हरियाणा के राज्यपाल बाबु परमानंद, यूपी के राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री, गोवा के राज्यपाल केदार नाथ साहनी और गुजरात के राज्यपाल कैलाशपति मिश्र को बदल दिया था.

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