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यूपी इलेक्शन 2017 : भाजपा के पास नहीं है ‘सीएम कैंडिडेट’ के लिए कोई प्रभावशाली चेहरा

लखनऊ :अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है. हालांकि अभी चुनाव की तिथि घोषित नहीं की गयी है, लेकिन संभव है कि फरवरी-मार्च तक चुनाव होंगे. लेकिन यूपी इलेक्शन को लेकर एबीपी न्यूज के लिए लोकनीति और सीएसडीएस के सर्वे में जो बातें सामने आयीं है, वह भाजपा के कान खड़े कर सकती […]

लखनऊ :अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है. हालांकि अभी चुनाव की तिथि घोषित नहीं की गयी है, लेकिन संभव है कि फरवरी-मार्च तक चुनाव होंगे. लेकिन यूपी इलेक्शन को लेकर एबीपी न्यूज के लिए लोकनीति और सीएसडीएस के सर्वे में जो बातें सामने आयीं है, वह भाजपा के कान खड़े कर सकती है. सर्वे में यह बात उभरकर आयी है कि अगर अभी की स्थिति में चुनाव हुए तो किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी. समाजवादी पार्टी को 30 प्रतिशत और भाजपा को 27 प्रतिशत वोट मिलेंगे. ऐसे में अमित शाह के सामने यह चुनौती है कि किस तरह वह यूपी में कमल खिलायेंगे.

भाजपा के पास नहीं है मुख्यमंत्री के लिए कोई चर्चित चेहरा
भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसे वो प्रदेश में ‘सीएम कैंडिडेट’ के रूप में प्रस्तुत करे. जबकि समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस तीनों के पास मुख्यमंत्री पदके लिए प्रभावी चेहराहै. अखिलेश यादव युवा चेहरा हैं उनकी छवि भी स्वच्छ है, इसलिए उनके काफी समर्थक हैं, जबकि मायावती को भी मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया जाता है. वो अखिलेश यादव को टक्कर देती प्रतीत होती हैं क्योंकि दोनों को ही मुख्यमंत्री के रूप में देखने वालों की संख्या 24 प्रतिशत है. जबकि भाजपा के उम्मीदवार माने जाने वाले राजनाथ सिंह को सात, आदित्यनाथ को पांच और वरुण गांधी को तीन प्रतिशत लोग ही पसंद कर रहे हैं. हालांकि
शीला दीक्षित के रूप मेंकांग्रेस के पास एक अच्छा और ताकतवर उम्मीदवार है, लेकिन प्रदेश में पार्टी की स्थिति खराब है.
सवर्ण तो साथ हैं लेकिन दलित का समर्थन नहीं
सर्वे के अनुसार प्रदेश में बहुसंख्यक सवर्ण जातियां लगभग 55 प्रतिशत भाजपा के साथ हैं, लेकिन दलित वोट पर मायावती का ही कब्जा है. उनके साथ लगभग 75 प्रतिशत दलित खड़े हैं. वहीं पिछड़ों का वोट भी भाजपा को मिलता नहीं दिख रहा है. यादव वोटर अभी भी समाजवादी पार्टी के साथ ही है. हालांकि अमित शाह दलितों को साथ लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वो सफल होते नहीं दिख रहे. वैसे भी अब दलितों के यहां खाना खाने का पैंतरा काम नहीं कर रहा है. इधर देश में जिस तरह दलितों पर अत्याचार की घटनाएं हुई हैं उससे यूपी का दलित वोटर भी प्रभावित हैं.
आदित्यनाथ और साध्वी प्राची के बयान आग में घी डालते हैं
उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ और साध्वी प्राची के बयान भाजपा की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं और वोटर पर तात्कालिक प्रभाव डालते हैं. मुसलमान भाजपा के कट्टर विरोधी बन जाते हैं और उसी पार्टी के साथ जाते हैं, जो प्रदेश में भाजपा को रोक सके. ऐसे में सपा का पलड़ा भारी ही रहेगा. वह सर्वे में भी भाजपा से आगे है. हालांकि साध्वी प्राची बागपत के दलित समुदाय से आती हैं, लेकिन वे दलितों को भाजपा के साथ लाने मेंअक्षमहैं.

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