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मसजिद, मैयत व सैयदों को जकात नहीं दे सकते

चक्रधरपुर : जकात के बारे में कम जानकारी होने के कारण अक्सर हम गलतियां कर बैठते हैं. इसलिए गरीबों के हक में जितनी रकम जानी चाहिए, कभी कभी नहीं जा पाती है. अल्लाह के रसूल ने जकात के मामले में बिल्कुल साफ साफ बयान फरमाया है. जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन […]

चक्रधरपुर : जकात के बारे में कम जानकारी होने के कारण अक्सर हम गलतियां कर बैठते हैं. इसलिए गरीबों के हक में जितनी रकम जानी चाहिए, कभी कभी नहीं जा पाती है. अल्लाह के रसूल ने जकात के मामले में बिल्कुल साफ साफ बयान फरमाया है. जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी या इसके बराबर की रकम पर साल गुजर गया तो जकात फर्ज हो गयी.

(फतावा आलमगीरी, जिल्द 1,सफह 168). औरतों के पास जो जेवर होते हैं उनकी मालिक औरत खुद है तो अगर सोना चांदी मिलकर साढ़े बावन तोला चांदी की कीमत बनती है तो उसपर जकात फर्ज है (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 62). ज़क़ात 2.5% यानि 100 रुपए में 2.50 रुपये होते हैं. बाप अपनी बालिग औलाद की तरफ से या शौहर बीवी की तरफ से जकात या सदकए फित्र देना चाहे तो बगैर उनकी इजाजत के नहीं दे सकता (फतावा अफजलुल मदारिस, सफह 88). हाजते असलिया यानि रहने का घर, पहनने के कपड़े, किताबें, सफर के लिए सवारियां, घरेलू सामान पर जकात फर्ज नहीं है
(फतावा आलमगीरी, जिल्द 1, सफह 160). सगे भाई-बहन, चाचा, मामू, खाला, फूफी, सास-ससुर, बहु-दामाद या सौतेले मां-बाप को जकात की रकम दी जा सकती है (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 60-64). जकात, फित्रा या कफ्फारह का रुपया अपने असली मां-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी, बेटा-बेटी, पोता-पोती, नवासा-नवासी को नहीं दे सकते (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 60). कफन दफन में तामीरे मसजिद में मिलादे पाक की महफिल में जकात के रुपये खर्च नहीं कर सकते, किया तो जकात अदा नहीं होगी (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 24). अफजल है कि जकात पहले अपने अजीज हाजतमंदों को दें दिल में नियत जकात हो और उन्हें तोहफा या ईदी कहकर भी देंगे तो जकात अदा हो जायेगी (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 24). अफजल है कि जकात व फितरे की रकम जिसको भी दें तो कम से कम इतना दें कि उसे उस दिन किसी और से सवाल की हाजत न पड़े (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 66). हदीस में है कि रब तआला उसके सदके को कुबूल नहीं करता जिसके रिश्तेदार मोहताज हों और वो दूसरों पर खर्च करे (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 65). तंदरुस्त कमाने वाले शख्स को अगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे जकात दे सकते हैं, पर उसे खुद मांगना जायज नहीं (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 61). किसी पर 1 लाख रुपए कर्ज हैं उसको कहीं से 1 लाख रुपये मिल गये अगर वो अपना कर्ज नहीं चूकाता तो बुरा करता है मगर अब भी उसपर जकात फर्ज नहीं है (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 15). जिसके पास खुद का मकान, दुकान, खेत या खाने का गल्ला साल भर के लिए मौजूद हो मगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे जकात व फित्रा दे सकते हैं (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 62). बदमजहब को जकात फित्रा हदिया तोहफा कुछ भी देना नाजायज़ है अगर उनको जकात व फितरे की रकम दी तो अदा न होगी (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 63-65). पालिसी या एफडी अपने नाम है तो जकात फर्ज है लेकिन अपनी नाबालिग औलाद को देकर उनको मालिक बना दिया या उनके नाम से फिक्स किया तो जकात नहीं (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 11). जकात व फित्रा बनी हाशिम यानि की सय्यदों को नहीं दे सकते (बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 63). अगर कोई सय्यद साहब परेशान हाल हैं तो उनकी मदद करना मुसलमान पर जरूरी है उनकी मदद अपने असली माल से करें जकात व फित्रा से नहीं.
प्रस्तुतकर्ता : मो नजीब, सचिव अहले
हदीस मसजिद, चक्रधरपुर

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