सरायकेला : सरायकेला की रथयात्रा बाहुड़ा यात्रा के साथ संपन्न हो गयी. भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ नौ दिनों तक अपने घर से दूर मौसी के घर रहने के पश्चात वापस श्री मंदिर को पहुंच गये.
प्रभु मौसी के घर गुडींचा मंदिर से सोमवार को निकले थे. पहले दिन बडदांड में विश्रम करने के पश्चात मंगलवार को लगभग चार बजे जय जगन्नाथ के उदघोष के साथ रथ को भक्तों ने खींचना शुरू किया. जैसे ही बडदांड यानी कालुराम चौक से रथ खींचना शुरू हुआ, पूरा क्षेत्र जय जगन्नाथ के उदघोष से गूंज उठा. इससे पहले स्थानीय पुजारी द्वारा वैदिक मंत्रोच्चर के साथ पूजा अर्चना की गयी.
भक्तों ने रथ को द्ववानसाही तक पहुंचाया, जहां पुजारी द्वारा विग्रहों को कंधे में उठाकर मंदिर के सिंहासन पर आसीन कराया गया. पुरी की तर्ज पर आयोजित सरायकेला रथ यात्रा में भगवान दो दिनों में अपने घर पहुंचते हैं. पहले दिन वह बडदांड में रह जाते हैं. मान्यता है कि रथ पर सवार प्रभु जगन्नाथ के दर्शन मात्र से जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति होती है.