लिट्टीपाड़ा उपचुनाव की मतगणना से यह साफ हो गया कि िलट्टीपाड़ा झामुमो का गढ़ है. इस सीट पर लगातार नौंवी बार झामुमो ने जीत हासिल की है. इस बार भी बड़े फासले से. मतगणना शुरू होते ही झामुमो के प्रत्याशी साइमन मरांडी बढ़त में रहे. 20वें राउंड में 12900 मतों के अंतर के बाद उन्हें विजयी घोषित कर दिया गया. घोषणा के साथ ही संताल परगना में झामुमो खेमे में जश्न का माहौल है. हर तरफ मिठाइयां बंटने लगी. पटाखे फोड़े जाने लगे. वहीं उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रह कर हार का मुंह देखनेवाले भाजपा के प्रत्याशी हेमलाल मुरमू कमियां ढूंढ़ने में लग गये हैं. पूरा भाजपा खेमा उन गलतियों को ढूंढ़ने में लग गया है, जिससे उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. क्योंकि इस उपचुनाव में प्रदेश भाजपा का पूरा कुनबा जी-जान से लगा था. खुद सीएम रघुवर दास चुनाव की समीक्षा कर रहे थे. भाजपा नेताओं ने कहा : हारे जरूर, लेकिन अन्य चुनावों की अपेक्षा वोट बढ़ा है. अब अागे की तैयारी है.
देवघर: लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र शुरू से ही झामुमो का गढ़ रहा है. इस गढ़ पर साइमन मरांडी व उनके परिवार का दबदबा रहा है. लगातार नौवीं बार का परिणाम यह दर्शाता है कि लिट्टीपाड़ा ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां प्रत्याशी की कोई अहमियत नहीं है. पार्टी का सिंबल ही खास है. इसका एक उदाहरण ऐसे देख सकते हैं कि 2014 के चुनाव साइमन ने भाजपा से लड़ा, तो वह हार गये और 2017 में वही साइमन झामुमो से लड़े, तो जीत गये. इस तरह खास सिंबल यहां के वोटरों के दिलो – दिमाग पर छाया हुआ है और वहीं हार-जीत का कारण बना. 1977 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो साइमन मरांडी ने निर्दलीय चुनाव जीता और विधायक बने थे. 1980 से झामुमो की टिकट पर चुनाव लड़े. लगातार दो टर्म 1980 व 1985 में विधानसभा गये.
1995 से 2005 तक हुए तीन चुनाव में उनकी पत्नी ने झामुमो की टिकट पर चुनाव जीता और जीत की हैट्रिक बनायी थी. 2009 में पार्टी ने फिर साइमन मरांडी को उतारा और वे जीते. 2014 में साइमन भाजपा में शामिल हो गये और भाजपा ने इस खयाल से उन्हें लिट्टीपाड़ा से चुनाव लड़ाया था कि इस सीट पर साइमन की अच्छी पकड़ है. क्योंकि कई टर्म वे और उनकी पत्नी वहां से विधायक रहे हैं.
भाजपा को भारी पड़ा गुरुजी का निकलना
पाकुड़.लिट्टीपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में प्रचार के लिए झामुमो सुप्रीमो गुरुजी का निकलना भाजपा को भारी पड़ा. क्योंकि चुनाव प्रचार के लगभग 15 दिनों तक गुरुजी सभा नहीं कर रहे थे. लेकिन मुख्यमंत्री ने सभाओं में जब शिबू सोरेन के चुनाव प्रचार के नहीं निकलने का कारण जनता को बताया तब झामुमो ने रणनीति बदली और गुुरुजी को चुनावी सभा करने के लिए उतारा. मुख्यमंत्री ने
कहा था कि गुरुजी साइमन को टिकट नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं. राजनीति के जानकार मानते हैं कि झामुमो ने गुरुजी की सभा की और यही झामुमो के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. गुरुजी ने जितनी सभा कि सभी में अच्छी भीड़ उमड़ी थी. आज भी गुरुजी का क्रेज संताल में बरकरार है. गुरुजी सर्वमान्य हैं. यह इस चुनाव ने सिद्ध कर दिया है.
किसको कितना वोट मिला
प्रत्याशी पार्टी वोट मिला वोट %
साइमन मरांडी झामुमो 65551 46.39
हेमलाल मुर्मू भाजपा 52651 37.26
किस्टो सोरेन झाविमो 9208 06.51
ज्योतिष बास्की निर्दलीय 2190 01.55
जंतु सोरेन निर्दलीय 2033 01.44
शिवचरण मालतो निर्दलीय 1893 1.34
डॉ श्रीलाल किस्कू निर्दलीय 1652 1.17
हरीश्चंद्र हांसदा निर्दलीय 1634 1.16
गुपीन हेंब्रम निर्दलीय 983 0.70
गयालाल देहरी निर्दलीय 848 0.60
नोटा —- 2646 1. 87
चौथे नंबर पर रहा ‘नोटा’
झामुमो, भाजपा व झाविमो के बाद नोटा
देवघर: लिट्टीपाड़ा विधानसभा उपचुनाव इस मायने में खास रहा कि 10 उम्मीदवारों में चौथे नंबर पर ‘नोटा’ रहा. यानी चुनाव में झामुमो, भाजपा और झाविमो के बाद ‘नोटा’ को अधिक वोट मिले. नोटा नामक उम्मीदवार को 2646 वोट मिले. जो कि कुल वोटिंग प्रतिशत का 1.87% है. इसके कई मायने हैं. एक तो यह कि 2646 वोटरों को जितने भी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, उनमें से उन्हें कोई पसंद नहीं था और दूसरा ये कि अनजाने में इतनी उंगलियां नोटा बटन पर दब गयी.
सात उम्मीदवार नोटा से भी पीछे रहे
चुनाव का जो रिजल्ट आया है. वोट के आंकड़े बताते हैं कि सात उम्मीदवार नोटा से भी पीछे रहे. जिसमें ज्योतिष बास्की को 2190, जंतु सोरेन-2033, शिवचरण मालतो-1893, डॉ श्रीलाल किस्कू-1652, हरिश्चंद्र हांसदा-1634, गुपीन हेंब्रम-983 व गयालाल देहरी को 848 वोट मिले. इस तरह तकरीबन 1.87 फीसदी लिट्टीपाड़ा के वोटरों ने नोटा में अपनी आस्था व्यक्त की है. जो हर उम्मीदवार और हर दल के लिए विचारणीय विषय है.