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राज्य में 20 से 40 प्रतिशत बच्चों के कुपोषित होने का खतरा

रांची : राज्य के 20-40 प्रतिशत बच्चों के कुपोषित होने का खतरा बना हुआ है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 (एनएफएचएस-4) में 0-5 साल तक के बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों के विश्लेषण से इस बात की जानकारी मिली है. इन बच्चों के कुपोषण के दायरे में शामिल होते ही उनके विभिन्न प्रकार की बीमारियों […]

रांची : राज्य के 20-40 प्रतिशत बच्चों के कुपोषित होने का खतरा बना हुआ है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 (एनएफएचएस-4) में 0-5 साल तक के बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों के विश्लेषण से इस बात की जानकारी मिली है. इन बच्चों के कुपोषण के दायरे में शामिल होते ही उनके विभिन्न प्रकार की बीमारियों की चपेट में फंसने की आशंका है, जबकि कुपोषण से निबटने के लिए सरकार सालाना औसतन करीब 200 करोड़ रुपये खर्च करती रही है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के चार जिलों के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चों के सामने कुपोषण के शिकार होने का खतरा बना हुआ है. इन जिलों में बोकारो, खूंटी, पूर्वी सिंहभूम और दुमका शामिल हैं.
इन जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में 40-43.8 प्रतिशत बच्चों के कुपोषित होने का खतरा बना हुआ है. इन बच्चों का वजन उनकी लंबाई के अनुपात में काफी कम है. एनएचएफएस-4 के आंकड़ों को अनुसार राज्य के नौ जिलों में 30-40 प्रतिशत बच्चों के कुपोषण के शिकार होने का खतरा है. इनमें धनबाद का ग्रामीण क्षेत्र, चाईबासा, रामगढ़, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, गढ़वा और चतरा जिले शामिल हैं. पूरे राज्य में कोडरमा ही एकमात्र ऐसा जिला है, जहां के 20.3 प्रतिशत बच्चों में किसी भी समय कुपोषण का शिकार होने का खतरा बना हुआ है.
राज्य सरकार कुपोषण की स्थिति से निबटने के लिए केंद्रीय सहयोग से एेसे बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से पोषाहार उपलब्ध कराने की योजना चलाती है. इस योजना पर सरकार औसतन करीब 200 करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च करती है.
प्रशासनिक स्तर पर यह माना जाता है कि योजना का क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं होने की वजह से कुपोषण की स्थिति में आवश्यक सुधार नहीं हो रहा है. पिछले दिनों सरकार द्वारा कराये गये सर्वे के नतीजों से इस बात की जानकारी मिली थी कि राजधानी में भी 50 प्रतिशत बच्चों की पहुंच आंगनबाड़ी तक नहीं है.

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