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झारखंड में चार वर्षों से नहीं बंटी अौषधीय मच्छरदानी
झारखंड में वर्ष 2011 के बाद से मलेरिया प्रभावित इलाके में मेडिकेटेड (अौषधीय) मच्छरदानी का वितरण ही नहीं हुआ है. अब राज्य के मलेरिया प्रभावित इलाके के ग्रामीणों को बरसात बाद मच्छरदानी का वितरण हो सकता है. राज्य मलेरिया नियंत्रण कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार झारखंड को 16 लाख मच्छरदानी की आपूर्ति […]
झारखंड में वर्ष 2011 के बाद से मलेरिया प्रभावित इलाके में मेडिकेटेड (अौषधीय) मच्छरदानी का वितरण ही नहीं हुआ है. अब राज्य के मलेरिया प्रभावित इलाके के ग्रामीणों को बरसात बाद मच्छरदानी का वितरण हो सकता है. राज्य मलेरिया नियंत्रण कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार झारखंड को 16 लाख मच्छरदानी की आपूर्ति करेगी. इससे संबंधित पत्र राज्य को मिल गया है. वहीं मच्छरदानी खरीद के लिए राज्य सरकार के अपने 10 करोड़ रुपये का भी इस बार इस्तेमाल होगा.
गत तीन वर्षों से मच्छरदानी खरीद के लिए आवंटन तो होता रहा, पर खरीद नहीं हो सकी. अब स्वास्थ्य विभाग के प्रोक्योरमेंट कॉरपोरेशन ने इस रकम से चार लाख मच्छरदानी खरीदने का आदेश दिया है. इस तरह कुल 20 लाख मच्छरदानी के अगले एक से दो माह में मिल जाने की संभावना है.
अब तक 15 लाख लोग हो चुकै हैं प्रभावित
गौरतलब है कि गत 10 वर्षों (वर्ष 2004 से 2015 तक) में 15 लाख से अधिक लोग मलेरिया से पीड़ित हुए हैं. यानी हर वर्ष औसतन डेढ़ लाख लोग मलेरिया का शिकार हो रहे हैं. इनमें से औसतन 50 हजार मरीज ब्रेन मलेरिया (प्लाजमोडियम फॉल्सिफेरम या पीएफ) के होते हैं. ब्रेन मलेरिया के मरीजों को गहन चिकित्सा की जरूरत होती है. कारगर इलाज न होने पर मरीज की मौत तक हो जाती है. राज्य मलेरिया पदाधिकारी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार गत 10 वर्षों में पूरे राज्य में मलेरिया की वजह से 118 लोगों की मौत हुई है. हालांकि गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार यह संख्या कहीं अधिक होगी.
पश्चिमी सिंहभूम का सारंडा है अति प्रभावित इलाका
मलेरिया प्रभावित राज्य के कुल 17 जिलों में पश्चिमी सिंहभूम का सारंडा इलाका मलेरिया से अति प्रभावित माना जाता है. विभागीय सूत्रों के अनुसार इस इलाके में हर वर्ष 10 हजार से अधिक लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं. नक्सल प्रभावित इस इलाके में सुरक्षा बलों व नक्सलियों को एक-दूसरे के अलावा मलेरिया मच्छरों से भी जूझना पड़ता है. मलेरिया की चपेट में आने से कई जवानों की मौत भी हो चुकी है़ इससे जवानों को ऑपरेशन में भी परेशानी होती है़
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