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भारतीय कैथोलिक चर्च के लिए गौरव की बात
मदर टेरेसा की संत घोषणा की बात से राजधानी के मसीही अभिभूत है़ं उन्हें देश से सिस्टर अलफोंसा के बाद दूसरी संत मिल रही है़ इनमें से ज्यादातर ने उन्हें कभी अपनी आंखों से नहीं देखा, पर राजधानी में मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित कुष्ठ केंद्र, परित्यक्त लोगों के देखभाल का केंद्र और अनाथाश्रम देखा […]
मदर टेरेसा की संत घोषणा की बात से राजधानी के मसीही अभिभूत है़ं उन्हें देश से सिस्टर अलफोंसा के बाद दूसरी संत मिल रही है़ इनमें से ज्यादातर ने उन्हें कभी अपनी आंखों से नहीं देखा, पर राजधानी में मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित कुष्ठ केंद्र, परित्यक्त लोगों के देखभाल का केंद्र और अनाथाश्रम देखा है़ दुखियारों और परित्यक्त लोगों के लिए उनका स्नेह महसूस किया है़ जब लोगों से उनके बारे में बातचीत की, तो उन्होंने खुल कर अपने हृदय के उद्गार व्यक्त किये़.
उन्हें पहले से ही जीवित संत मानती है दुनिया
मदर टेरेसा को दुनिया पहले से ही जीवित संत मानती रही है़ यदि चर्च उन्हें औपचारिक रूप से संत का दर्जा नहीं भी देता, तब भी आम लोगों में उनके प्रति श्रद्धा में कोई कमी नहीं आती़ वहीं चर्च के लोगों को मदर टेरेसा के माध्यम से देश से ही एक नयी संत मिल रही है़
संत अलफोंसा के बाद वे दूसरी भारतीय महिला संत होंगी़ हमारे लिए दो महिला संत हो जायेंगी, जिनकी मध्यस्थता से हम प्रार्थना कर सकते है़ं चर्च के नियमों के अनुसार किसी को संत का दर्जा देने से पूर्व एक लंबी प्रक्रिया पूरी की जाती है़ इसकी जांच करता है कि क्या वास्तव में उनका जीवन एक संत की तरह था? पहले ईश सेवक, श्रद्धेय धन्य और फिर संत का दर्जा देने के साथ यह प्रक्रिया पूरी होती है़ मदर अपने जीवन काल में भी लोगों का जीवन बदल देती थी. एक बार वह एक धनी व्यक्ति के पास आर्थिक मदद मांगने के लिए गयी थीं, तब उसने दान लेने के लिए मदर के फैले हाथ पर थूक दिया था़ तब मदर ने दूसरा हाथ आगे कर कहा था कि यह मेरे लिए था़ अब मेरे बच्चों के लिए भी कुछ दे दो़ इन चंद शब्दों ने उस धनी व्यक्ति का जीवन हमेशा के लिए बदल दिया़.
सिस्टर ललिता रोशनी लकड़ा, संत अन्ना धर्मसमाज, रांची
मदर टेरेसा युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत
मदर टेरेसा युवाआें के लिए प्रेरणा स्रोत है़ं एक ऐसी जिंदादिल महिला, जिन्होंने जन्म लेने के बाद होश संभालते ही दूसरों के लिए जीना शुरू कर दिया़ जीवन का हर एक पल दूसरों के लिए समर्पित कर दिया़ उनके जीवन में ममता के विराट स्वरूप का दर्शन होता है़ उनका हृदय समुद्र की गहराई लिये और हिमालय की ऊंचाई लिये थे़ सहजता से मानवता की सेवा की़ वे मानती थीं कि दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं, पर उनकी गूंज अनंत होती है़ उनके से शब्द हम युवाओं को लोगों के बीच दया और प्रेम की ज्योति जलाने की प्रेरणा देते है़ं
कुलदीप तिर्की, आरसी चर्च, महाधर्मप्रांतीय युवा संघ के अध्यक्ष
बेबसों की सेवा को अपनी जिंदगी बनायी
स्कोप्जे में 26 अगस्त 1910 को जन्मी एग्नेस गोंक्जा (मदर टेरेसा) ने भारत के जरूरतमंद और बेबस लोगों की सेवा को अपनी जिंदगी बनायी़ यह हमारे लिए खुशी की बात है कि उन्हें संत का दर्जा दिया जा रहा है़ उन्होंने दुनिया के सामने जीने के सही अंदाज का उदाहरण रखा़ अपने लिए तो लिए सभी जीते हैं, लेकिन उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन परोपकार और दूसरों की सेवा के लिए अर्पित कर दिया़ उनके कार्यों के उदाहरण देश के कोने कोने में देखे जा सकते है़ं रांची में भी उनके चार मठ हैं, जहां मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टर्स उसी तन्मयता से सेवा में जुटी है़ं आज हम सभी को मदर से यह सीख लेने की जरुरत है कि हम भी दूसरों की मदद करे़ं आत्मकेंद्रित व्यक्ति नहीं, बल्कि सबके लिए खुशहाली लाने का कारक बने़ं
दीपा मिंज, झारखंड बचाओ अादोलन मंच की अध्यक्ष
उन्हें अपनाया, जिन्हें दुनिया ने छोड़ दिया था
मदर टेरेसा ने जिस तरह सेवा दी वह हर किसी के वश की बात नहीं है़ कुष्ठ रोगियों को घरवाले भी छोड़ देते है़ं मदर ने उन्हें अपनाया़ गरीब, अनाथ, बेसहारा, भूखे और वैसे लोगों के लिए काम किया, जिन्हें समाज ने छोड़ दिया था़ मदर ने उनके चेहरों पर मुस्कान बिखेरी़ अब मदर को संत घोषित किया जा रहा है़ यह पूरी दुनिया के लिए खुशी की बात है़
सिस्टर थियोडोरा एक्का, प्रधानाध्यापिका, संत कुलदीप मध्य विद्यालय
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