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सालाना खर्च 40 लाख से अधिक, पर काम ठप
झारखंड राज्य समाज कल्याण बोर्ड का कामकाज विगत नौ माह से ठप है़ काम ठप होने व फंड नहीं मिलने के कारण राज्य भर के पालना घरों में रह रहे करीब छह हजार बच्चों को पर्याप्त नाश्ता व भोजन नहीं मिल रहा है. इस मद में सरकार पिछले डेढ़ वर्षों से पैसे नहीं दे रही […]
झारखंड राज्य समाज कल्याण बोर्ड का कामकाज विगत नौ माह से ठप है़ काम ठप होने व फंड नहीं मिलने के कारण राज्य भर के पालना घरों में रह रहे करीब छह हजार बच्चों को पर्याप्त नाश्ता व भोजन नहीं मिल रहा है. इस मद में सरकार पिछले डेढ़ वर्षों से पैसे नहीं दे रही है़ ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि क्योंकि अभी बोर्ड में कोई अध्यक्ष नहीं है़ बोर्ड के पैसे इसके अध्यक्ष व सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से ही जारी करने का अधिकार है़ ऐसे में जब तक अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होगी, बोर्ड का कामकाज आगे नहीं बढ़ेगा़.
डेढ़ वर्ष से नहीं मिला योजना का पैसा, नौ महीने से अध्यक्ष नहीं
रांची: झारखंड राज्य समाज कल्याण बोर्ड समाज कल्याण, महिला व बाल विकास विभाग के तहत कार्यरत बोर्ड है. इसका काम समाज कल्याण के क्षेत्र में खासकर बच्चों व महिलाअों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन करना है. पर बोर्ड का काम गत नौ माह से ठप है. वर्तमान में बोर्ड का कोई अध्यक्ष भी नहीं है. निवर्तमान अध्यक्ष प्रतिभा पांडेय का कार्यकाल अक्तूबर-2015 में समाप्त हो गया. तब से यहां की फाइलों का मूवमेंट बंद है. दरअसल बोर्ड के तहत अभी सिर्फ दो योजनाएं ही संचालित हैं. एक बच्चों के लिए पालना घर तथा दूसरा परिवार परामर्श केंद्र. राज्य में कुल 272 पालना घर हैं तथा 28 परामर्श केंद्र. इनमें से 44 पालना घर तथा 20 परामर्श केंद्र को सीधे केंद्र सरकार से पैसा मिलता है. इधर, राज्य योजना वाले 228 पालना घर तथा आठ परामर्श केंद्र को गत डेढ़ वर्ष से फंड नहीं मिल रहा है.
अध्यक्ष के वेतन व भत्ता (करीब 60 हजार प्रतिमाह) को छोड़ बोर्ड का सालाना स्थापना खर्च करीब 40 लाख रुपये है. इस तरह 40 लाख सालाना खर्च कर भी बोर्ड कुछ कर नहीं रहा. बोर्ड के अशोक नगर स्थित कार्यालय में कुल 12 पदाधिकारी-कर्मचारी कार्यरत हैं. इनमें से तीन केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की अोर से तथा शेष नौ राज्य समाज कल्याण बोर्ड से. केंद्रीय कोटे के तीन लोगों का वेतन भुगतान केंद्र से तथा राज्य कोटे के लोगों को राज्य सरकार की अोर से भुगतान किया जाता है. काम के अभाव में बोर्ड कर्मी किसी तरह टाइम पास करते हैं.
पहले बोर्ड के तहत चलती थीं 15-16 योजनाएं, अभी सिर्फ दो का संचालन
पूर्व में बोर्ड के तहत 15-16 योजनाएं संचालित थी. तीन वर्ष पूर्व इनकी संख्या पांच हो गयी. वहीं अभी बोर्ड सिर्फ दो योजनाअों का संचालन गैर सरकारी संस्थाअों के माध्यम से कर रहा है. छह माह से छह वर्ष तक के बच्चों के लिए पालना घर की योजना तथा दूसरा परिवार परामर्श केंद्र (फैमिली काउंसलिंग सेंटर) की योजना. पहली योजना कामकाजी महिलाअों के बच्चों की देखरेख की है. एक पालना घर में अधिकतम 25 बच्चे रखे जा सकते हैं. छह माह से एक वर्ष तक के अधिकतम 10 बच्चे तथा एक वर्ष से छह वर्ष तक के अधिकतम 15 बच्चे. इन बच्चों को कार्यालय अवधि (सात घंटे) में पालना घर में रखा जाता है. यहां एक सेविका तथा एक सहायिका इन बच्चों की देखभाल करती है. वहीं दूसरी योजना परिवार परामर्श केंद्र की है. बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार जामताड़ा, साहेबगंज, लातेहार, चतरा तथा सरायकेला-खरसावां जिले को छोड़ राज्य में कुल 28 परिवार परामर्श केंद्र संचालित हैं. इस परामर्श केंद्र का काम पारिवारिक झगड़े को कोर्ट व थाने के बाहर सुलझाना है. लोग इन केंद्रों के बारे में जाने, इसके लिए संस्थाअों को प्रचार-प्रसार के वास्ते फंड दिये जाते हैं. केंद्र में दो काउंसेलर होते हैं. इनकी योग्यता मास्टर डिग्री इन सोशल वर्क (सामाजिक कार्य) या मास्टर डिग्री इन साइकोलॉजी (मनोविज्ञान) होती है. परामर्श देने या समझाने का काम यही करते हैं.
अध्यक्ष व फंड न होने का असर
राज्य के करीब छह हजार बच्चों को पर्याप्त नाश्ता व भोजन नहीं मिल रहा है. ये बच्चे राज्य भर के पालना घर में दिन भर रहते हैं, पर समाज कल्याण विभाग (समाज कल्याण बोर्ड) के तहत संचालित कुल 228 पालना घर को सरकार गत डेढ़ वर्ष से पैसे नहीं दे रही है. इससे इन बच्चों को दोपहर का भोजन तथा दो वक्त का अल्पाहार किसी तरह दिया जा रहा है, जो इनके लिए पर्याप्त नहीं है. पालना घर में वैसे बच्चे रहते हैं, जिनके मां-बाप दोनों कामकाजी हैं या फिर उन्हें दिन भर घर से बाहर रहने की मजबूरी होती है. गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित इन पालना घरों में छह माह से छह वर्ष तक के ऐसे ही बच्चों को रखा जाता है. एक पालना घर में बच्चों की संख्या कम से कम 25 होनी चाहिए.
क्यों नहीं मिल रहा पैसा
पालना घर की योजना राज्य समाज कल्याण बोर्ड के तहत संचालित है. बोर्ड की निवर्तमान अध्यक्ष प्रतिभा पांडेय का कार्यकाल पांच अक्तूबर 2015 को समाप्त हो गया. इसके पहले भी वह पालना घरों के लिए फंड का आवंटन नहीं कर पायी थीं. वहीं अक्तूबर से अब तक फंड इसलिए जारी नहीं हो पा रहा है, क्योंकि पैसे जारी करने के लिए सिग्नेटरी (अध्यक्ष) नहीं हैं. गौरतलब है कि बोर्ड के पैसे इसके अध्यक्ष व सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से निकलते हैं.
क्या हो रही है समस्या
पालना घरों को फंड नहीं मिलने से इसका संचालन कर रही गैर सरकारी संस्थाएं बच्चों के भोजन के लिए राशन तथा नाश्ते के लिए बिस्कुट तथा खाने-पीने की अन्य चीजों का प्रबंध नहीं कर पा रही है. इससे बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है. वहीं पालना घरों में कार्यरत सहायिका व सेविका को मिलनेवाला मानदेय (एक हजार रुपये प्रति माह) भी नहीं मिल रहा. ऐसे में सहायिका व सेविका सिर्फ आश्वासन पर काम कर रही हैं. उधर, आठ परामर्श केंद्र का भी काम लगभग ठप है.
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