रांची: झारखंड के चाड़िद गांव खूंटी के रहनेवाले अनुपम पूर्ति एक ऐसे युवा ग्राफिक डिजाइनर है, जिन्होंने दुबई में अपनी पहचान कायम करने के बावजूद झारखंडी संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम किया है. इन्होंने साल 2013 में नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद से ग्रेजुएट डिप्लोमा इन डिजाइन (ग्राफिक डिजाइन) की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई पूरा करने के तुरंत बाद उन्हें दुबई स्थित एक डिजाइन स्टूडियो में काम करने का मौका मिला. पिछले कुछ महीने से वे दुबई में हैं.
अच्छी शिक्षा और नौकरी के बाद भी अनुपम ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को नहीं छोड़ा. इस युवा की डिग्रियां और उनके काम का झारखंडी संस्कृति के साथ संबंध भले ही कम हो, पर अनुपम को अपनी आदिवासी विरासत पर गर्व है. पढ़ाई करते हुए उन्होंने इंडिजिनस मुद्दों से अपना सरोकार बनाये रखा. अनुपम ने कुछ समय पहले एक शॉर्ट डॉक्यूमेंटरी का लेखन एवं डायरेक्शन किया. बागेयाकन सोना नामक यह फिल्म परंपरागत आदिवासी गहनों पर आधारित है. धीरे धीरे आदिवासी समाज में गहने बनाने की यह कला लुप्त हो रही है.
कुछ समय पहले उन्होंने टी शर्ट पर बिरसा मुंडा की इमेज डिजाइन की, जिसकी काफी सराहना की गयी. उन्होंने सरहुल फेस्टिवल के बुकलेट की डिजाइनिंग भी की. इसके अलावा आदिवासी संस्कृति व कला पर काम करने वाले एक एनजीओ की वेबसाइट भी डिजाइन की. अनुपम के अनुसार: आदिवासी संस्कृति और कला को आगे बढ़ाना हम जैसे शिक्षित युवाओं की ही जिम्मेदारी है.
आदिवासी मुद्दों से सदैव जुड़े रहेंगे : अनुपम पूर्ति
एक छोटे से शहर से लेकर दुबई तक पहुंचना और अलग काम करना मुश्किलों भरा सफर जरूर था, पर यह असंभव नहीं था. बाहर आने के बाद खुद को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी. अनुपम ने कहा कि विदेशों में रहकर काम सीखना अच्छा है. अनुपम का मानना है कि वे स्वयं को आदिवासी मुद्दों से सदैव जोड़े रखेंगे.