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रांची में अब कम दिखते हैं आदिवासी : हेजेल
रांची : डॉ रामदयाल मुंडा की पहली पत्नी हेजेल अमेरिका से वर्षों बाद रांची आयी है. शनिवार को मोरहाबादी स्थित दीक्षांत मंडप में आयोजित सरहुल पूर्व संध्या समारोह में वह शामिल हुईं. पीले रंग की जनजातीय स्टाइल की साड़ी में. मुंडारी नृत्य में भी शामिल हुई. उन्होंने कहा कि वर्षों बाद यहां आयी हूं, पर […]
रांची : डॉ रामदयाल मुंडा की पहली पत्नी हेजेल अमेरिका से वर्षों बाद रांची आयी है. शनिवार को मोरहाबादी स्थित दीक्षांत मंडप में आयोजित सरहुल पूर्व संध्या समारोह में वह शामिल हुईं. पीले रंग की जनजातीय स्टाइल की साड़ी में. मुंडारी नृत्य में भी शामिल हुई. उन्होंने कहा कि वर्षों बाद यहां आयी हूं, पर कह नहीं सकती कि अच्छा लग रहा है या बुरा.
मेन रोड में बड़ी बड़ी बिल्डिंग दिखती है, पर आदिवासी चेहरे नहीं दिखते. पर यहां सरहुल समारोह में शामिल होकर काफी अच्छा लगा. मैंने सोशल मीडिया में देखा है यहां की सरहुल शोभायात्रा को, काफी भीड़ होती है. मैं बताना चाहती हूं कि मुझे भारत में सबसे अच्छी संस्कृति आदिवासियों की लगी. मुझे ऐसा लगता है कि हमारी (अमेरिकन) संस्कृति अौर आदिवासी संस्कृति में काफी समानता है. खासकर महिलाअों को बराबरी व सम्मान देने के मामले में. दोनों ही जगह पर महिलाएं अौर पुरुष साथ में स्वाभाविक रूप से नृत्य कर सकते हैं. भारत की दूसरी संस्कति में ऐसा नहीं है. वहां लोग सामूहिक रूप से नृत्य नहीं करते. कुछ लोग नृत्य करते हैं अौर बाकी दर्शक होते हैं. मुझे याद है कि जब मैं आयी थी, तो यहां का गैर जन जनजातीय समाज आदिवासी नृत्यों को हेय दृष्टि से देखता था.
उन्हें लगता था यह नृत्य या गीत अच्छा नहीं है. पर मैं ऐसा नहीं समझती. जब मैं रांची में थी (संभवत: 81 या 82 में.) तब डॉ रामदयाल मुंडा के कुछ निकट के लोग अौर जनजातीय तथा क्षेत्रीय भाषा विभाग के कुछ विद्यार्थियों ने सरहुल की शोभायात्रा निकाली. 27 या 28 लोग रहे होंगे. ऐसी ही कई स्मृतियां हैं.
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