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मक्खी-मच्छरों का प्रकोप बढ़ा, शो पीस बन कर रह गयी फॉगिंग मशीनें

रांची : गरमी के आते ही राजधानी में मक्खी व मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है. रात को जहां मच्छर बिना मच्छरदानी के सोने नहीं देते. वहीं दिन में भी चैन से बैठने नहीं देते. दूसरी ओर मक्खी का प्रकोप भी बढ़ता ही जा रहा है. वहीं रांची नगर निगम द्वारा खरीदी गयी फॉगिंग मशीन […]

रांची : गरमी के आते ही राजधानी में मक्खी व मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है. रात को जहां मच्छर बिना मच्छरदानी के सोने नहीं देते. वहीं दिन में भी चैन से बैठने नहीं देते. दूसरी ओर मक्खी का प्रकोप भी बढ़ता ही जा रहा है. वहीं रांची नगर निगम द्वारा खरीदी गयी फॉगिंग मशीन महज शो-पीस बन कर रह गये हैं.
17 मशीनें निगम के पास नहीं होता शहर में दर्शन
रांची नगर निगम के पास वर्तमान में 17 फॉगिंग मशीनें हैं. इनमें से तीन बड़ी मशीनें हैं, जिनका संचालन ट्रैक्टर से होता है. इसके अलावा 11 फॉगिंग मशीनें ऐसी है, जिनका संचालन ऑटो (टेंपो) से किया जाता है. वहीं तीन पोर्टेबुल फॉगिंग मशीनें हैं, जिनसे जरूरत पड़ने पर शहर के महत्वपूर्ण स्थलों पर फॉगिंग की जाती है.
टिकिया-लिक्विड सब हो जा रहे हैं बेअसर
घरों में मक्खी व मच्छरों के बढ़ते हुए प्रकोप को देखते हुए रात को सोने से पहले घरों में टिकिया से लेकर क्वाइल तक जलायी जाती है. इस वर्ष ये मच्छर न तो टिकिया से मर रहे हैं और न ही लिक्विड का असर इन पर हो रहा है. निगम के ही एक पदाधिकारी की मानें तो मच्छर भी अब इम्यून हो गये हैं. इसलिए इन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है.
हर साल खर्च होता है 12 लाख से अधिक
नगर निगम के स्वास्थ्य शाखा से प्राप्त सूचना के अनुसार नगर निगम द्वारा फॉगिंग मद में हर साल 12 से 15 लाख रुपये के तेल व केमिकल की खरीदारी की जाती है. इतनी राशि खर्च होने के बाद भी मच्छरों की संख्या मे कोई कमी नहीं आयी. कई मुहल्ले के लोगों ने कहा कि उनके मुहल्ले में कभी फॉगिंग नहीं हुई. कुछ लोगों ने कहा कि सिर्फ वीआइपी मुहल्लों में फाॅगिंग की जाती है. दूसरी ओर नगर निगम द्वारा यह दावा किया जाता है कि रोस्टर वाइज फॉगिंग किया जाता है.

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