रांची : गुमला के गांवों से नक्सलियों द्वारा 35 बच्चों को ले जाने पर बुधवार को झारखंड हाइकोर्ट ने अधिकारियों के रवैये पर कड़ी नाराजगी जतायी़ स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार की गंभीरता नहीं दिखती़ अधिकारी गंभीर नहीं हैं.
अभी भी 17 बच्चे लापता हैं. बच्चे कहां हैं, उन्हें बरामद करने के लिए क्या कदम उठाये गये. आठ माह से पुलिस बच्चों को खोज रही है, लेकिन उन्हें वापस लाने में विफल रही है. खंडपीठ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा : यदि नक्सल समस्या खत्म नहीं कर सकते हैं, तो डीजीपी वरदी वापस कर दें. काम नहीं कर सकते, तो वरदी पहनने का भी कोई हक नहीं है. खंडपीठ ने महाधिवक्ता विनोद पोद्दार के माध्यम से डीजीपी को हिदायत भी दी.
केंद्र से मिली राशि खर्च क्यों नहीं की गयी : खंडपीठ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा : सरकार ने नक्सलियों को रोकने के लिए क्या कदम उठाये हैं. डीजीपी राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्हें इस मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए. प्रभावित क्षेत्रों में रुक-रुक कर अभियान चलाने का क्या लाभ, जबकि समस्या बरकरार है. नक्सल प्रभावित इलाकों के विकास के लिए कई एक्शन प्लान लागू किये गये हैं. जमीनी स्तर पर एक्शन प्लान की क्या स्थिति है.
केंद्र से राशि मिली, तो खर्च क्यों नहीं की गयी़ सरकार की अोर से अंतिम बार 17 जून को शपथ पत्र दायर किया गया था. इसके बाद की क्या स्थिति है, उसकी जानकारी क्यों नहीं दी गयी.
सरकार गंभीर नहीं : खंडपीठ ने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है. इस बार कोर्ट कोई आदेश पारित नहीं कर रहा है. आगे भी गंभीरता नहीं दिखायी गयी, तो कोर्ट यह मानने को मजबूर हो जायेगा कि सरकार वास्तव में गंभीर नहीं है. ऐसी परिस्थिति में कोर्ट सख्त आदेश पारित करेगा. प्रत्येक सुनवाई के दाैरान वरीय अधिकारी को सशरीर हाजिर रहना होगा.
चार सप्ताह बाद अगली सुनवाई : राज्य में खनिज व अन्य संसाधन की प्रचुरता को देखते हुए खंडपीठ ने सुझाव दिया कि झारखंड, केंद्र सरकार से न तो कुछ मांगे आैर न ही कुछ ले, बल्कि राज्य खुद चलायें. यदि झारखंड रिचेस्ट स्टेट अॉफ कंट्री है, तो सरकार इसे गंभीरता से ले आैर दूसरे पर आश्रित रहने के बदले स्वयं विकास का खाका खींचे. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए चार सप्ताह का समय निर्धारित किया.
क्या कहा एमीकस क्यूरी ने
एमीकस क्यूरी अधिवक्ता सुमित गड़ोदिया ने खंडपीठ को बताया कि 17 जिले नक्सल समस्या से ग्रसित हैं. प्रभावित इलाकों के विकास के लिए सरकार ने कई एक्शन प्लान लागू किये हैं. केंद्र सरकार ने 2013-2014 व 2014-2015 में 520 करोड़ रुपये दिये हैं, लेकिन खर्च नहीं किये गये. ग्रामीण इलाकों में एक इंच सड़क नहीं बन पायी. नक्सली संगठन ठेकेदारों से लेवी वसूलते हैं. उनका खाैफ रहता है. राज्य सरकार के पास सब जानकारी है. सरकार के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है. पुलिस बच्चों को बरामद करने में विफल रही है. नक्सली छोटी लड़कियों का उपयोग खाना बनवाने, बरतन धुलवाने आैर एक जगह से दूसरी जगह जाने के दाैरान सामान ढुलवाने में करते हैं. बड़े होने पर उन्हें भी ट्रेनिंग दी जाती है, जबकि लड़कों को शुरू से ही आर्म्स की ट्रेनिंग दी जाती है.
प्रभात खबर में छपी थी खबर
गुमला के गांवों से नक्सलियों द्वारा बच्चों को उठा ले जाने की खबर सबसे पहले प्रभात खबर में प्रकाशित की गयी थी़ खबर के प्रकाशन के बाद हाइकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया था़ खबर को ही जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.
सरकार का पक्ष
महाधिवक्ता विनोद पोद्दार ने खंडपीठ को बताया कि नक्सली संगठन द्वारा 29 बच्चों को ले जाने की सूचना मिली थी. इनमें 12 लौट गये हैं. 17 बच्चों को खोजने का काम जारी है़