रांचीः मुंबई से आयी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि आर्थिक कट्टरवाद (निजीकरण) एवं सामाजिक-धार्मिक कट्टरवाद दोनों ही देश के लिए बड़ी चुनौती है. ये दोनों ताकतें जब मिलती हैं, तो तानाशाही सरकार पनपती है और संघर्षशील लोगों को बोलने के कम मौके मिलते हैं. तीस्ता रविवार को एक्सआइएसएस सभागार में आयोजित सिस्टर वालसा जॉन स्मृति व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रही थीं.
व्याख्यान का आयोजन राजमहल पहाड़ बचाओ आंदोलन (समिति) के तत्वावधान में हुआ. तीस्ता ने कहा कि झारखंड में आज भी जिंदा संगठन हैं, जो अपने हक और अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. सिस्टर वालसा की हत्या से संबंधित केस चल रहा है और बहुत कम संभावना है कि दोषियों को सजा मिल पायेगी. पर, इस तरह के हादसे से हम और आप सबक ले सकते हैं. अभी जितने भी आंदोलन चल रहे हैं, इसका तुरंत परिणाम नहीं दिखेगा. पर, आनेवाली पीढ़ियों के लिए इसके परिणाम सकारात्मक होंगे. हमारी लड़ाई सामाजिक और व्यवस्था परिवर्तन की है.
अब जमीन की लड़ाई : बाबूलाल
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सिस्टर वालसा हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं. पचुवाड़ा में जाने पर मुङो भी वहां के लोगों का दर्द समझने का मौका मिला.
झारखंड में 20 से 25 लाख लोग विस्थापित हुए हैं. अब हमारी लड़ाई मुआवजा की नहीं, बल्कि जमीन के बदले जमीन लेने की है. बाबूलाल मरांडी ने कहा कि 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून अंग्रेजों के हित में था, अब जो नया कानून है, वह पूंजीपतियों के हित में बना है. उन्होंने कहा कि झारखंड में चल रहे विभिन्न आंदोलनों को अलग-अलग रह कर नहीं, बल्कि मिल कर लड़ना होगा, तभी जीत हासिल होगी. एक्सआइएसएस के निदेशक फादर एलेक्स एक्का ने कहा कि पहले झारखंड में आदिवासी बहुसंख्यक थे, अब अल्पसंख्यक हो रहे हैं. यहां आदिवासी भूमि और वहां की संपदा को हड़पने की होड़ है और ऐसे ही लोग सत्ता को पाने की भी कोशिश कर रहे हैं. हमें ऐसी ही ताकतों से संघर्ष करना है.
मरियम हेंब्रोम व फादर टॉम कवलाकाट ने भी संबोधित किया. इस अवसर पर आंदोलन के संयोजक डॉ अनिल मुमरू, फादर स्टेन स्वामी, मेघनाथ सहित अन्य उपस्थित थे.