शहर की थियेटर परंपरा को नया आयाम दे रहे ऋषि और साथी प्रवीण मुंडा, रांची रांची में नाट्य मंचन का एक लंबा इतिहास रहा है. शुरुआत में यूनियन क्लब, मजलिस, हस्ताक्षर जैसी संस्थाअों ने शहर को नाट्य मंचन के क्षेत्र में अखिल भारतीय स्तर पर पहचान दिलायी. इस परंपरा को युवा रंगमंच, रंग दर्पण, बसुंधरा आर्ट्स सहित कई अौर संस्थाअों ने आगे बढ़ाने का काम किया है. लेकिन पिछले करीब एक वर्ष से रांची के युवाओं ने लगातार नाट्य मंचन कर एक माहौल बनाने का काम किया. इसमें युवा नाट्य संगीत अकादमी का प्रयास खास रहा. अत्यंत अल्प संसाधन के साथ अकादमी के कलाकारों ने लगातार नाटक मंचन का संकल्प लिया और मौसम, दर्शक, लाइट-साउंड जैसी तमाम दुश्वारियों को झेलते लगातार 25 रविवार नाट्य मंचन कर एक उदाहरण प्रस्तुत करने में सफल रहा. पर यह सब इतना आसान भी नहीं था. खास कर तब, जबकि शहर के कलाप्रेमियों को टिकट खरीद कर थियेटर देखने की आदत ना हो. ना कोई प्रायोजक ना किसी तरह की सरकारी मदद. फिर भी लगातार थियेटर करते रहना वाकई काबिले तारीफ है. आम तौर पर माना जाता है कि एक नाटक के मंचन में हॉल, प्रकाश व्यवस्था, साउंड सिस्टम वगैरह मिला कर कम से कम 25 से 30 हजार रुपये का खर्च आता है. जबकि आय सिफर. ज्यादातर नाट्य संस्थाएं इसीलिए दम तोड़ती रही हैं. लेकिन ऋषिकेष लाल और उनके साथियों ने इस स्थिति को चुनौती के रूप में लिया और शहर में थियेटर संस्कृति के विकास में एक मानदंड स्थापित किया. ऋषि का घर ही बना थियेटर युवा नाट्य संगीत अकादमी के कर्ताधर्ता अपर बाजार स्थित गोरखनाथ लेन निवासी ऋषिकेष लाल ने अपने आवास कांति कृष्ण कला भवन को नाटकों के मंचन के लिए समर्पित कर दिया. कर्ज लेकर छत में कुछ सुविधाएं जुगाड़ी, एक मंच और लाइट-साउंड के जरूरी उपकरण लगाये. यहां पर हर रविवार को शाम में नाटकों का मंचन किया जाता है. इस जगह की अब नाटक ही पहचान हो गयी है. पहला नाटक इस वर्ष पांच अप्रैल को मंचित किया गया. इसका नाम था द इंड ऑफ लव स्टोरी. अभी कुछ समय पूर्व 11 अक्तूबर को 25 वां नाटक-मुन्ना का मंचन किया गया. यह बड़ी बात थी और इस प्रयास को वरिष्ठ रंगकर्मियों व रांची के नाटयप्रेमियों ने सराहा भी. कला कृष्ण कांति भवन में लगभग सौ दर्शक बैठ सकते हैं. यहां पर कई थियेटर ग्रुप अमूमन हर दिन नाटकों का मंचन या रिहर्सल करते रहते हैं. पूरी व्यवस्था नि:शुल्क है. रविवार की शाम तो खास होती है. कला कृष्ण कांति भवन कलाप्रेमियों से गुलजार रहता है. रांची के अलावा जमशेदपुर अौर धनबाद से संस्थाएं यहां आकर नाटकों का मंचन कर चुकी है. जल्दी ही जयपुर अौर पटना से भी नाट्य संस्थाएं यहां आकर नाटकों का मंचन करेगी. ऋषिकेष लाल पिछले एक दशक से ज्यादा समय से रंगमंच के क्षेत्र में सक्रिय हैं. इस दौरान उन्होंने रंगकर्मियों के दर्द को शिद्दत से महसूस किया है. वे कहते हैं रंगकर्म से जुड़े लोग नाटक तो तैयार कर लेते हैं, पर उन्हें प्रदर्शित नहीं कर पाते हैं. अाखिर सरकार के समक्ष कितनी बार गुहार लगायें. इसलिए मैंने अपने आवास को ही रंगमंच बनाने की बात सोची. कई संस्थाएं यहां आकर नाटकों का मंचन कर रही हैं. अब उम्मीद है कि यह सिलसिला आगे चलता रहेगा.
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शहर की थियेटर परंपरा को नया आयाम दे रहे ऋषि और साथी
शहर की थियेटर परंपरा को नया आयाम दे रहे ऋषि और साथी प्रवीण मुंडा, रांची रांची में नाट्य मंचन का एक लंबा इतिहास रहा है. शुरुआत में यूनियन क्लब, मजलिस, हस्ताक्षर जैसी संस्थाअों ने शहर को नाट्य मंचन के क्षेत्र में अखिल भारतीय स्तर पर पहचान दिलायी. इस परंपरा को युवा रंगमंच, रंग दर्पण, बसुंधरा […]
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