राजधानी में कई जगहों पर होती है परंपरागत पूजा दुर्गाबाटी : बंगाली रीति से होती है पूजा, इस बार मनेगा 133वां दुर्गोत्सववरीय संवाददाता, रांची श्रीश्री हरिसभा समिति दुर्गा बाटी में अब भी मां दुर्गा की परंपरागत रूप से पूजा की जाती है. यहां की पूजा में कोई दिखावापन नहीं होता. यहां आज भी समय को प्रधानता दी जाती है. जिस घटी पला में मां की पूजा-अर्चना शुरू की गयी थी, उसी में आज भी पूजा होती है. पूजा के लिए पंडित जी के साथ एक टीम रहती है, जो पूरी व्यवस्था की देखरेख करती है अौर समय पर उन्हें सब कुछ उपलब्ध कराया जाता है. दुर्गा बाटी में इस बार 133वां दुर्गोत्सव मनाया जा रहा है. व्यस्थापक शांतनु भट्टाचार्य की देखरेख में पूजा की जायेगी. पूरे बांग्ला रीति-रिवाज से यहां पूजा-अर्चना की जाती है. यहां हर साल कन्या कुमारी पूजन से लेकर भोग निवेदन व संधि पूजा में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. यहां पूरे नियम-निष्ठा के साथ मां का भोग व प्रसाद तैयार किया जाता है. मां को भोग चढ़ाने के बाद प्रसाद स्वरूप भक्तों के बीच इसका वितरण किया जाता है. 22 अक्तूबर को श्री श्री विजयादशमी पूजा 7.04 बजे के बाद होगा. पूजा समापन एवं मंत्रागिक विसर्जन प्रात: 9.40 बजे के अंदर होगा. प्रतिमा निरंजन (विसर्जन) – शाम 5.16 बजे के बाद होगा. सचिव गोपाल भट्टाचार्य ने कहा कि यहां की पूजा में कभी कोई कमी नहीं आयी है. हरिमति मंदिर वर्द्धमान कंपाउंड : पिछले 80 सालों से हो रही पूजा यहां पिछले 80 साल से लगातार परंपरागत पूजा की जा रही है. यहां पुरोहित कृष्णधन चक्रवर्ती पूजा-अर्चना संपन्न कराते हैं. उनकी देखरेख में एक टीम रहती है, जो पूरे समय की देखरेख व कौन सी पूजा कब होती है, इसकी तैयारी करते हैं. उसी के अनुरूप मां का भोग व प्रसाद तैयार किया जाता है. आज भी यहां बंगाल का ढाक आता है अौर यही लोग पूरे पूजा के दौरान ढाक बजाते हैं. पूरे बांग्ला रीति-रिवाज के अनुसार मां को बलि से लेकर भोग निवेदन किया जाता है. यहां शांति जल लेने से लेकर पुष्पांजलि देने तक के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं. सदस्य प्रदीप कुमार घोष दस्तीदार ने कहा कि यहां आज भी भोग परंपरागत तरीके से तैयार होता है. यहां तीनों दिन सप्तमी, अष्टमी व नवमी को 400 किलो भोग तैयार किया जाता है अौर इसका वितरण किया जाता है. देशप्रिय क्लब थड़पखना : 55 साल से हो रही है पूजा देशप्रिय क्लब थड़पखना में पिछले 55 सालों से पूजा हो रही है. यहां परंपरागत पूजा में शामिल होने के लिए न सिर्फ बांग्ला भाषा-भाषी बल्कि अन्य समुदाय के लोग भी आते हैं. 19 अक्तूबर को शाम में देवी के आगमन के साथ मां का पट खोल दिया जायेगा. वहीं 20 अक्तूबर को नवपत्रिका प्रवेश के साथ मां की विधिवत आराधना की जायेगी. पंडित दिलीप कुमार देवघरिया व प्रदीप कुमार गोस्वामी यहां पूजा-अर्चना कराते हैं. सदस्य असीम बनर्जी ने बताया कि तीन दिनों तक न सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष व बच्चे भी परंपरागत वेश भूषा में पूजा-अर्चना में शामिल होने आते हैं. बंगाल से ढाकी आते हैं. यही ढाकी पूजा से लेकर विसर्जन तक ढाक बजाते हैं. यहां कई कार्यक्रम भी होते हैं. उलूक ध्वनि व शंख बजाने से लेकर धुनची तक के कार्यक्रम होते हैं. इसके अलावा भोग वितरण भी किया जाता है, जिसे ग्रहण करने के लिए काफी संख्या में दूर-दूर से भक्त आते हैं. हिनू पूजा कमेटी : 103 वर्षों से चली आ रही है पूजा हिनू पूजा कमेटी हिनू (बांग्ला मंडप ) की अोर से इस बार पूजा का 103वां आयोजन किया जा रहा है. यहां पूरे बांग्ला रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना की जाती है अौर इसी के अनुरूप मंडप भी सजाया जाता है. बेलवरण के दिन यहां मां का पट खुल जाता है. यहां पूजा में शामिल होने के लिए डोरंडा, हिनू के अलावा एचइसी से लेकर बिरसा चौक, हटिया सहित अन्य जगहों के बांग्ला भाषा-भाषी लोग पूरे परंपरागत वेशभूषा में आते हैं. यहां हर दिन मां को विशेष भोग अर्पित किया जाता है. 20 व 21 को भोग का वितरण किया जायेगा. यहां भोग में खिचड़ी के अलावा सब्जी से लेकर खीर तक बनाया जाता है. यहां वीरभूम से ढाकी बजानेवाले आते हैं. इस पंडाल में पंडित अशोक कुमार चटर्जी पूजा-अर्चना करायेंगे, जो पटना से आये हैं. मां भवानी मंडप, जैप वन : गाजे-बाजे व सैनिक सम्मान के साथ होती है मां की आराधना जैप वन स्थित मां भवानी मंडप में पूरे सैनिक सम्मान के साथ मां की आराधना की जा रही है. यहां वर्ष 1880 से लगातार दुर्गा पूजा किया जा रहा है. यहां पांरपरिक पूजा देखने को मिलती है. आज भी यहां बलि प्रथा कायम है. पाठा की बलि दी जाती है. कई लोग दूर -दूर से बलि देने के लिए यहां आते हैं. पंडित भीमलाल पाठक यहां पूजा कराते हैं. पूजा पूरे नियम-निष्ठा व समय के साथ हो, इसके लिए पंडितजी के साथ सहायक भी रहते हैं. यहां समादेष्टा अमोल वेणुकांत होमकर व उनकी पत्नी प्रीति होमकर सहित पूरे जैप परिवार के सदस्य पूजा में शामिल हुए. यहां 85 किलो जौ का रोपण किया गया है, जिसे दशमी के दिन सभी को दिया जायेगा. 19 अक्तूबर की सुबह साढ़े सात बजे फुलपाती शोभायात्रा निकाली जाएगी, जिसमें बैंड, फायरिंग पार्टी व काफी संख्या में श्रद्वालु शामिल होंगे. इसके अलावा भी शहर में विभिन्न बांग्ला मंडप सहित अन्य पूजा पंडालों में भी पूरे रीति-रिवाज के साथ परंपरागत पूजा की जाती है.
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राजधानी में कई जगहों पर होती है परंपरागत पूजा
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