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हर मनोकामना होती है पूरी

हर मनोकामना होती है पूरी इटखाेरी में स्थापित है मां भद्रकाली की प्रतिमा विजय शर्मा ‍@ इटखोरीचतरा जिला अंतर्गत इटखोरी सुप्रसिद्ध पौराणिक एतिहासिक धरोहर है. पुरातात्विक महत्व का यह स्थल प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण है. इसके कण-कण में गौरवशाली अतीत की अनुगूंज सुनायी पड़ती है. सनातन, बौद्ध और जैन धर्मावलंबियों का यह स्थान धार्मिक विविधता, […]

हर मनोकामना होती है पूरी इटखाेरी में स्थापित है मां भद्रकाली की प्रतिमा विजय शर्मा ‍@ इटखोरीचतरा जिला अंतर्गत इटखोरी सुप्रसिद्ध पौराणिक एतिहासिक धरोहर है. पुरातात्विक महत्व का यह स्थल प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण है. इसके कण-कण में गौरवशाली अतीत की अनुगूंज सुनायी पड़ती है. सनातन, बौद्ध और जैन धर्मावलंबियों का यह स्थान धार्मिक विविधता, सहिष्णुता और सांस्कृतिक एकता का दर्शन कराता है. मां भद्रकाली की स्थापना नौवीं सदी में पालवंश के शासक महेंद्र पाल ने की थी. मान्यता है कि मां भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती है. साक्षात दर्शन की अनुभूति होती है. यहां नवरात्र में सबसे ज्यादा अष्ठमी के दिन भीड़ जुटती है. इस दिन संधि बली (पांच फल) की प्रथा है. इसके अलावा सावन पूर्णिमा, मकर संक्रांति के दिन भी काफी भक्त जुटते हैं. मां भद्रकाली मंदिर से कुछ दूर टाल के एक खंडहर भवन में भगवान शंकर और पार्वती की अर्धनारीश्वर प्रतिमा स्थापित है. यह प्रतिमा काले रंग की और प्राचीन कालीन है. मंदिर परिसर में विशाल सहस्त्र शिवलिंगम स्थापित है, जिससे 1004 छोटी और चार बड़ी भगवान शिव की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं. जानकारों का मानना है भारत में शायद ही ऐसा सहस्त्र शिवलिंगम होगा. यह शिवलिंगम प्राचीन कालीन है. चरण पादुकाजैन धर्म के 10वें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ जी का चरण पादुका भी स्थापित है. इटखोरी का नाम बुद्धकाल से जुड़ा है इटखोरी का प्राचीन नाम इतखोई है. ऐसी मान्यता है कि शाक्य युवराज सिद्धार्थ जीवन के सत्य की खोज में दक्षिण-पूर्व दिशा में बढ़ते हुए मोहाने और बक्सा नदी के संगम स्थल पर पहुंच कर साधना में लीन हो गये. उनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी वात्सल्यवश वापस लेने आयीं. विवश ममतामई माता के मुख से सहसा इत-खोई (यहां खोई) शब्द निकला. संयोग है कि माता ने जिस पुत्र को यहां खोया वहीं सिद्धार्थ आगे धर्मचक्र प्रवर्तन के लिए गौत्तम बुद्ध के नाम से विख्यात हुए, जिसकी प्रथम शिष्या माता गौतमी बनीं. कहा जाता है कि बोद्ध गया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध चार बार इटखोरी आये थे. सम्राट अशोक ने पहला बौद्ध विहार इटखोरी में बनाया था.इटखोरी का इतिहास काफी पुराना है. इतिहासकारों का मानना है कि यह नागप्रिय भगवान शिव की भूमि रही है. नाग भूमि में ही भगवान बुद्ध का प्रवेश हुआ था. इसका साक्ष्य सहस्त्र शिवलिंगम है. कुछ पुरातत्वविदों का मानना है कि यह मूर्ति कला का केंद्र भी रहा है. यही कारण है कि इसके अगल-बगल प्राचीन कालीन प्रतिमाएं पड़ी हैं. इटखोरी प्राचीन मंदिरों का सेटेलाइट स्थल रहा है…………………………………..पांच मुद्राओं की बुद्ध प्रतिमा : बौद्ध स्तूप में भगवान गौतम बुद्ध की पांच मुद्रा में प्रतिमाएं स्थापित हैं. इनमें अभय मुद्रा, ध्यान मुद्रा, धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा, भूमिस्पर्श मुद्रा, परिनिर्वाण मुद्रा शामिल हैं. बजरायण संप्रदाय के लोग रहते थे : बौद्ध के अवशेषों से यह पता चलता है कि बजरायण समाज के लोग यहां निवास करते थे. वे बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे. अपने धर्म का काफी प्रचार प्रसार किया था……………………………….मंदिर खुलने का समयसुबह चार से दोपहर 12 बजे तक.दोपहर एक बजे से रात नौ बजे तक.

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