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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस आज: बुजुर्गों की देखभाल का मामला हाइकोर्ट में है लंबित

रांची: वृद्ध माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जाता है. यह प्रत्येक वर्ष एक अक्तूबर को मनाया जाता है. भारत में भी वृद्ध दिवस के आयोजन की जरूरत पड़ने लगी है. संयुक्त परिवार के बिखरने के बाद एकल परिवार में बुजुर्ग उपेक्षित होने लगे है. […]

रांची: वृद्ध माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जाता है. यह प्रत्येक वर्ष एक अक्तूबर को मनाया जाता है. भारत में भी वृद्ध दिवस के आयोजन की जरूरत पड़ने लगी है. संयुक्त परिवार के बिखरने के बाद एकल परिवार में बुजुर्ग उपेक्षित होने लगे है.

उनकी उचित व नियमित देखभाल नहीं हो पाती. कई परिवार अपने बुजुर्ग माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ देते है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2007 में माता-पिता व वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम बनाया. झारखंड सरकार ने हाइकोर्ट में मामला जाने पर सात साल बाद वर्ष 2014 में यह नियमावली तैयार की. उस नियमावली के आलोक में राज्य के बुजुर्गों की नियमित देखभाल नहीं की जा रही है, जबकि कई राज्यों में उस कानून का अनुपालन करते हुए बुजुर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलायी जा रही हैं. इसके लिए राज्य सरकार को केंद्र सरकार से करोड़ों रुपये का अनुदान मिलता है. इस अनुदान से झारखंड अब तक वंचित है.

झारखंड सीनियर सिटीजन एडवोकेट्स सर्विस संस्थान ने वर्ष 2013 में हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कानून का अनुपालन कराने का आग्रह किया था. संस्था के संरक्षक हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता व झारखंड स्टेट बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष पीसी त्रिपाठी ने बताया कि यह मामला हाइकोर्ट में लंबित है. पिछली सुनवाई के दाैरान राज्य सरकार से कोर्ट ने जवाब मांगा है. पूछा है कि बुजुर्गों की देखभाल व अस्पतालों में इलाज के लिए क्या व्यवस्था की गयी है. कोर्ट इस मुद्दे पर गंभीर है. राज्य में बुजुर्गों की देखभाल के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. वृद्धाश्रम भी नहीं बनाया गया है. कानून के आधार पर राज्य में सरकार को कई कल्याणकारी योजनाएं भी चलानी है.
माता-पिता की उपेक्षा पड़ सकती है महंगी
वृद्ध माता-पिता व वरिष्ठ नागरिक (जो सक्षम नहीं है) की उपेक्षा करनी महंगी पड़ सकती है. कानून में प्रावधान है कि उपेक्षा करने पर अधिकतम 10000 रुपये प्रतिमाह मेंटनेंस खर्च देना पड़ सकता है. यह तय करने के लिए मेंटनेंस ट्रिब्यूनल का प्रावधान किया गया है. यह प्रत्येक सब डिवीजन में होगा. इसमें एसडीअो रैंक के अधिकारी रहेंगे. उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने अब तक ट्रिब्यूनल का गठन नहीं किया है, जबकि कानून के अस्तित्व में आने के छह माह बाद ही ट्रिब्यूनल गठन के लिए अधिसूचना जारी कर देनी थी.

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