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सावधान: डॉक्टरों की परची ले सकती है जान!
रांची : अगर आपकाे मलेरिया है आैर डॉक्टर की परची देख कर दुकानदार आपकाे डायरिया की दवा दे दे, ताे आप कभी ठीक हाे सकते हैं क्या? या फिर परची लेकर शहर घूम जाइये, डॉक्टर का नाम देखते ही दुकानदार कहेंगे… नहीं है? यह गलती किसकी? डॉक्टर की या फिर फार्मासिस्ट की? दरअसल राज्य में […]
रांची : अगर आपकाे मलेरिया है आैर डॉक्टर की परची देख कर दुकानदार आपकाे डायरिया की दवा दे दे, ताे आप कभी ठीक हाे सकते हैं क्या? या फिर परची लेकर शहर घूम जाइये, डॉक्टर का नाम देखते ही दुकानदार कहेंगे… नहीं है? यह गलती किसकी? डॉक्टर की या फिर फार्मासिस्ट की? दरअसल राज्य में कई ऐसे डॉक्टर हैं, जिनकी लिखावट न आप पढ़ सकते हैं आैर न ही फार्मासिस्ट. डॉक्टर्स साफ-साफ दवाइयाें के नाम क्याें नहीं लिखते, इसके ताे कई कारण हैं, पर यह मेडिकल काउंसिल अॉफ इंडिया (एमसीआइ) के निर्देशाें का उल्लंघन है. अदालत के निर्देशाें की अवमानना भी है. भारत में दवाइयाें के 90 हजार से अधिक ब्रांड हैं, जबकि अमेरिका में यह संख्या करीब 30 हजार के आसपास है. दवा के पैकेट पर ब्रांड के नाम साफ-साफ लिखे रहते हैं. कंबिनेशन का भी उल्लेख रहता है.
पर कई डॉक्टर ऐसे हैं, जाे परची पर दवा का नाम साफ-साफ नहीं लिखते. चाहे वह सरकारी अस्पतालाें के डॉक्टर हाें या फिर निजी. जानकार बताते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह कंपनियाें से डॉक्टराें की सांठ-गांठ है. डॉक्टर की लिखावट ऐसी हाेती है कि दूसरे दवा दुकानदार उसे पढ़ ही नहीं सकते. राेगियाें की मजबूरी हाेती है कि वह डॉक्टराें की सेटिंगवाली दुकान से ही दवा लें. प्रभात खबर के पास कुछ सरकारी अस्पतालाें की परची है, जिसे कई डॉक्टराें काे भी पढ़ाया गया, पर वह पढ़ नहीं सके. ऐसी कई परची निजी अस्पतालाें के डॉक्टराें की भी है.
अस्पष्ट परची है खतरनाक : डॉक्टराें द्वारा लिखी गयीं अस्पष्ट परची से दुकानदार कैसे जूझते हैं, उसके बारे में प्रभात खबर ने फार्मासिस्टाें से बात की. कुछ का कहना था… कई परची काे हम लाेग नकार देते हैं, जबकि कई का कहना था… राेगी या उनके परिजनाें से ही पूछते हैं, हुआ क्या है…इसी आधार पर दवाई दे देते हैं. डॉक्टराें की अस्पष्ट परची राेगियाें के लिए जानलेवा साबित हाे सकती है.
कैपिटल लेटर में लिखने का है एमसीआइ का निर्देश
एमसीआइ ने 28 मार्च, 2014 को जेनरल और एग्जिक्यूटिव बॉडी की मीटिंग के बाद दवाओं के नाम व डोज कैपिटल लेटर में लिखने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये थे. एमसीआइ ने डॉक्टराें काे दवा का जेनरिक नाम ही लिखने का निर्देश दिया है. एमसीआइ के निर्देश के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी ऐसा ही निर्देश जारी किया है, जाे पूरे देश में प्रभावी है.
कुछ नहीं करती संस्थाएं
एमसीआइ ने निर्देश जारी कर दिया है, पर यह लागू कैसे हाेगा, स्पष्ट नहीं है. इंडियन मेडिकल एसाेसिएशन ने इस बारे में आंखें बंद कर रखी हैं. वहां काेई सुनवाई नहीं हाेती है. आइएमए के कई सदस्य, पदधारी भी खुद इस निर्देश का पालन नहीं करते.
कुछ डॉक्टर करते हैं पालन
राजधानी रांची में कुछ डॉक्टर आैर अस्पताल ऐसे हैं, जाे एमसीआइ के रूल काे फॉलाे करते हैं. इन अस्पतालाें में डॉक्टर अपनी परची कंप्यूटराइज्ड देते हैं, जिसमें दवा का नाम आैर डाेज साफ-साफ लिखा हाेता है, पर यहां भी जेनरिक नाम नहीं लिखा जाता.
केस स्टडी : रांची के एक मशहूर चिकित्सक ने एक मामूली दवा कुछ इस अंदाज में लिखी कि मरीज के परिजनों को शहर के चक्कर लगा कर उनके ही अस्पताल में आना पड़ा. दरअसल अस्पताल में उनकी अपनी दवा दुकान है. पर यह दवा वहां उपलब्ध नहीं थी, शेष दवाइयां दे दी गयी थी. जब मरीज के परिजन थक हार कर उसी अस्पताल की दवा दुकान पहुंचे, तो वहां बताया गया कि भाई साहब यह बहुत मामूली दवा है, जो कहीं भी मिल जाती है, आपको शहर क्यों घूमना पड़ा. दरअसल वह गैस की दवा थी, जिसका नाम रेनटैक था.
हाे चुकी हैं घटनाएं : आंध्र प्रदेश के नालगोंडा के एक फार्मासिस्ट चिलुकुरी परमात्मा ने हैदराबाद हाइकोर्ट में जनहित याचिका दर्ज की थी. परमात्मा ने करीब सौ टैबलेट व अन्य मिलती-जुलती दवाओं के नाम का विवरण पेश कर कोर्ट से आग्रह किया था कि चिकित्सकों को दवाओं के नाम बड़े व साफ अक्षरों में ही लिखने चाहिए. परमात्मा ने हैदराबाद के विद्यानगर की एक दवा दुकान के फार्मासिस्ट का बाकायदा उदाहरण दिया था, जिसने दवा का नाम ठीक से न पढ़ पाने के कारण एक गर्भवती महिला को ट्रेनटल के बजाय टेरगिटल दवा दे दी थी. ट्रेनटल रक्त प्रवाह (ब्लड सर्कुलेशन) को बेहतर बनाने की दवा है, जबकि टेरगिटल गर्भपात की. अंतत: उक्त महिला का गर्भपात हो गया था, जिससे यह बड़ा मुद्दा बना था. हैदराबाद हाइकोर्ट ने परमात्मा की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान एमसीआइ को निर्देश दिया था कि वह इसके लिए कारगर कदम उठाये.
‘‘हम तो चिकित्सकों से आग्रह करते हैं कि वे दवाओं के नाम कैपिटल लेटर में लिखें, जिससे मरीज व दवा दुकानदारों को आसानी से दवा का नाम समझ में आ जाये. एक गलत शब्द से दवा का नाम बदल सकता है, मरीज को नुकसान पहुंच सकता है. हमें नहीं लगता है कि अपनी दवा दुकान से दवा खरीदवाने के लिए ऐसा किया जाता होगा. अगर कोई चिकित्सक ऐसा करता है, तो यह गलत है.
डॉ एके सिंह, स्टेट प्रेसिडेंट, आइएमए
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