रांची: दीपक को पिछले साल दशहरा घूमने के लिए घर से मात्र सौ रुपये मिले थे. इस बार तो उतना भी मयस्सर नहीं होगा. दीपक के पिता ने साफ बता दिया है कि इस वर्ष कुछ भी दे पाने की स्थिति में नहीं हैं. उनको पिछले 19 महीने से वेतन नहीं मिला है. दुर्गा पूजा में नया कपड़ा तो दूर, परिवार को भरपेट भोजन के भी लाले पड़ गये हैं. जैसे-तैसे परिवार का भरण-पोषण हो रहा है. दीपक भी अपने पिता की माली हालत जानता है. नये कपड़े की जिद नहीं करता, लेकिन पूजा में पॉकेट मनी नहीं मिल पाने के बारे में सोच कर ही उदास है.
यह स्थिति केवल दीपक की नहीं. झालको में काम करने वाले 255 परिवारों की स्थिति भी दीपक के परिवार की तरह है. होली का त्योहार भी इनके लिए फीका रहा. जैसे-तैसे मनाया. होली के समय सरकार ने आश्वासन दिया था कि वेतन नियमित कर दिया जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. इनमें से अधिकांश दूसरों के घरों में काम कर रोजी-रोटी चला रहे हैं. कोई पार्ट टाइम सर्विस करता है तो कुछ वेतन पाने की आस में अधिकारियों व मंत्रियों का चक्कर काटने में अपनी चप्पलें घिस रहे हैं. तीज-त्योहार में इनके सामने धर्म संकट उत्पन्न हो जाता है. मुहल्ले की अन्य महिलाओं को दुर्गा पूजा की खरीदारी कर लौटते देख दीपक की मां मन मसोस कर रह जाती है.
इइएफ और हाइटेंशन में काम करनेवाले कर्मियों का भी कमोबेश यही हाल है. दशहरा और दीवाली का त्योहार भी अंधरे में गुजरता है. 16 साल से अधिक समय से वेतन नहीं मिल रहा है. अब तो कंपनी भी बंद हो गयी है. ना काम रहा ना पैसा. अब तो राशन वाले ने भी उधार देना बंद कर दिया है. दोस्त व रिश्तेदारों से भी कर्ज ले चुके हैं. इनके लिए नवरात्र व दुर्गा पूजा उदासी का त्योहार बन गया है. अन्य दिन तो जैसे-तैसे एक समय भोजन कर काट लेते हैं, लेकिन नवरात्र में फलाहार की जगह मजबूरी में उपवास कर रहे हैं. इइएफ और हाइटेंशन के अलावा स्वर्ण रेखा घड़ी कारखाना और मैलुबल कॉस्ट के कर्मचारियों की हालत भी ऐसी ही है.