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कोटा बढ़ता गया राजस्व घटता गया
शराब का खेल: 5 शराब माफिया के कारण हो रहा है राजस्व का नुकसान रांची : झारखंड में नकली और अवैध शराब का धंधा खूब फल-फूल रहा है. बिना लाइसेंस के शराब का व्यापार करने वाले माफिया करोड़ों कमा रहे हैं. शराब माफिया के कारण सरकार को लगातार राजस्व का नुकसान सहना पड़ रहा है. […]
शराब का खेल: 5
शराब माफिया के कारण हो रहा है राजस्व का नुकसान
रांची : झारखंड में नकली और अवैध शराब का धंधा खूब फल-फूल रहा है. बिना लाइसेंस के शराब का व्यापार करने वाले माफिया करोड़ों कमा रहे हैं. शराब माफिया के कारण सरकार को लगातार राजस्व का नुकसान सहना पड़ रहा है. वित्तीय वर्ष 2014-15 में शराब से मिलने वाले राजस्व में गिरावट आ गयी है. वित्तीय वर्ष 2013-14 में निर्धारित लक्ष्य के विरुद्ध 91.96 प्रतिशत राजस्व वसूली की गयी थी. जबकि, 2014-15 में निर्धारित लक्ष्य का 89.95 फीसदी ही राजस्व सरकार को प्राप्त हुआ.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011-12 के बाद गत वित्तीय वर्ष ही शराब के निर्धारित वार्षिक लक्ष्य में बढ़ोतरी की गयी थी. यानी, लगातार तीन वर्षो तक शराब के राजस्व का लक्ष्य पुनरीक्षित नहीं किया गया था. उन वर्षो में भी निर्धारित लक्ष्य का सौ फीसदी नहीं पूरा किया गया. वर्ष 2014-15 में सरकार ने राजस्व वसूली का लक्ष्य 15 फीसदी बढ़ाते हुए 850 करोड़ रुपये रखा था, जिसके बाद पूर्व के वित्तीय वर्ष की तुलना मे राजस्व वसूली के निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति में गिरावट आ गयी.
हर साल 10 प्रतिशत बढ़ जाता है कोटा
राज्य सरकार यह मान कर चलती है कि शराब पीने वालों की संख्या में हर साल 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है. इसी वजह से शराब के निर्धारित कोटा में 10 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी जाती है. अभी, राजधानी के एक शराब दुकान के लिए विदेशी शराब का निर्धारित कोटा 19,15,291 एलपीएल है. 6.77 एलपीएल का अर्थ शराब की 12 बड़ी बातलें हैं. इसका मतलब रांची में शराब की एक दुकान को एक साल में 2,82,908 बोतलों पर राजस्व चुकाना पड़ता है. वर्तमान में रांची में विदेशी शराब की कुल 115 दुकानों से 3.25 करोड़ शराब की बोतलों पर सरकार को राजस्व मिलता है.
अव्यावहारिक है शराब का कोटा
सरकार द्वारा निर्धारित कोटा अव्यावहारिक है. उत्पाद विभाग राजधानी से 3.25 करोड़ बोतलों पर राजस्व निश्चित रूप से वसूलता है. वर्तमान में रांची की कुल आबादी 15 लाख है. जितनी बोतल शराब का कोटा सरकार ने फिक्स किया है, उसका अर्थ है कि शहर का हर आदमी हर साल कम से कम 216 बोतल शराब जरूर पीता है. सरकार के अव्यावहारिक कोटे की वजह से दुकानों की बंदोबस्ती भी प्रभावित हो रही है.
शराब की दृष्टि से बड़े जिलों में रांची को छोड़ कर शेष जगहों पर सौ फीसदी दुकानें बंदोबस्त नहीं की जा सकी हैं. रामगढ़, बोकारो और पूर्वी सिंहभूम जैसे जिलों में 70 फीसदी दुकानें ही बंदोबस्त की जा सकी हैं. धनबाद में भी सौ फीसदी दुकानें बंदोबस्त नहीं की जा सकी. दुकानों की बंदोबस्ती नहीं होने का सीधा असर शराब से मिलने वाले राजस्व पर पड़ता है.
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