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केज में उत्पादित 1300 टन मछलियों की हुई बिक्री

नौ जिलों के जलाशयों में डाला गया है 1500 केज 40,000 टन उत्पादन का रखा गया लक्ष्य राणा प्रताप रांची : जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से मछली उत्पादन में झारखंड पूरे देश में अव्वल हो गया है. इसके पहले महाराष्ट्र में सर्वाधिक 350 केज में मछली का उत्पादन किया जा रहा था. इसके […]

नौ जिलों के जलाशयों में डाला गया है 1500 केज
40,000 टन उत्पादन का रखा गया लक्ष्य
राणा प्रताप
रांची : जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से मछली उत्पादन में झारखंड पूरे देश में अव्वल हो गया है. इसके पहले महाराष्ट्र में सर्वाधिक 350 केज में मछली का उत्पादन किया जा रहा था. इसके ठीक उलट झारखंड में 1500 केज में मछली का उत्पादन लगातार किया जा रहा है.
केज में उत्पादित लगभग 1300 टन मछली की बक्री हुई है. नौ जिलों के जलाशयों में 1500 केज डाला जा चुका है. इसमें 2,000 टन मछली केज में पाली जा रही है. गौरतलब है कि केज के माध्यम से झारखंड में 40,000 एमटी उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए 5000 केज की जरूरत पड़ेगी. मुख्य सचिव राजीव गौबा ने मत्स्य निदेशक राजीव कुमार को इस योजना को और अधिक विस्तार करने का निर्देश दिया है.
कोडरमा के सरयू यादव, वीरेंद्र पासवान ने विभाग को बताया है कि उन्होंने केज में पाल कर 12 से 14 लाख रुपये तक की मछली की बिक्री की है. कम से कम एक केज में साल भर में 4000 टन का उत्पादन मिला है.
योजना आयोग के सदस्य रहे वैज्ञानिक डॉ के कस्तूरीरंगन ने पूर्व में चांडिल डैम का भ्रमण कर केज मछलीपालन को देखा था. उन्होंने विस्थापित परिवारों के बेरोजगार युवकों को केज मछलीपालन योजना से जोड़ने के लिए झारखंड की सराहना की थी.
बिहार में छह केज में मछली पालन : बिहार में भी केज मछली पालन शुरू किया गया है. शुरुआत में गंगा नदी में छह केज लगाया गया है. इसके अलावा देश के अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र में 350, छत्तीसगढ़ में 96, ओड़िशा में 96 केज जलाशयों अथवा नदी में डाला गया है. वहीं तेलंगाना व हिमाचल राज्य में इसकी शुरुआत की जा रही है.
पहले सिर्फ पंगास मछली का होता था उत्पादन : केज में पहले सिर्फ पंगास (पंगेसियस) मछली पाली जा रही थी. पंगेसियस से अब ब्रिडिंग भी होने लगी है. केज में पंगेसियस के अलावा रेहू, नाइलो टिका, कवई मछली भी पाली जा रही है.
केज बनाने में सरकार देती है लागत का 90 प्रतिशत : जीआइ पाइप से केज बनाने पर 70,000 रुपये की लागत आती है. इसमें 10 प्रतिशत राशि लाभुक को तथा शेष 90 प्रतिशत राशि राज्य सरकार अपनी योजना के तहत प्रदान करती है.
यदि मॉडय़ूलर केज बनाया जाता है, तो उसके निर्माण पर 1.30 लाख रुपये का खर्च आता है. जलाशय में सिर्फ एक केज नहीं डाला जाता है, बल्कि एक बैटरी, जिसमें चार केज शामिल होते हैं, डाली जाती है. उसमें साल भर में कम से कम 15-16 एमटी मछली का उत्पादन संभव है.

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