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कहां से आती हैं गोलियां पुलिस नहीं करती है जांच

रांची : झारखंड में हर साल करीब पांच हजार गोलियां बरामद की जाती हैं. पुलिस इन गोलियों को नक्सलियों, उग्रवादियों और अपराधियों के पास से या उनके ठिकाने से बरामद करती है. वर्ष 2010 से अब तक नक्सलियों व उग्रवादियों के ठिकाने से 25,120 गोलियां बरामद की जा चुकी है. यह आंकड़ा सिर्फ नक्सलियों के […]

रांची : झारखंड में हर साल करीब पांच हजार गोलियां बरामद की जाती हैं. पुलिस इन गोलियों को नक्सलियों, उग्रवादियों और अपराधियों के पास से या उनके ठिकाने से बरामद करती है. वर्ष 2010 से अब तक नक्सलियों व उग्रवादियों के ठिकाने से 25,120 गोलियां बरामद की जा चुकी है. यह आंकड़ा सिर्फ नक्सलियों के ठिकानों से बरामद गोलियों का है. अपराधियों के पास से बरामद गोलियों की संख्या अलग है.
पुलिस के पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि नक्सलियों-अपराधियों के पास गोलियां कहां से आती हैं? इसकी मुख्य वजह यह है कि कभी भी पुलिस ने इस बिंदु पर जांच ही नहीं की. किसी-किसी मामले में जांच तो शुरू हुई, लेकिन जांच अंजाम तक नहीं पहुंची.
एक-दो मामले ऐसे भी हैं, जिसमें गोलियों का सप्लायर सेना, सीआरपीएफ या पुलिस का ही आदमी निकला. उनके खिलाफ कार्रवाई भी हुई. 16 अप्रैल को डीजीपी की बैठक में भी यह मामला सामने आया, जिसमे कहा गया कि गोलियां कहां से आती हैं, इसकी जांच जरूरी है.
रिटायर जवान का बेटा सप्लायर
23 नवंबर 2014 को चुटिया पुलिस ने गोलियों की खरीद-बिक्री के मामले में मनोज कुमार गोप और योगेंद्र राम को गिरफ्तार किया था. दोनों उग्रवादी संगठन पीएलएफआइ से जुड़े हुए थे.
अनुसंधान के दौरान पुलिस ने जैप के एक रिटायर जवान के बेटे को भी गिरफ्तार किया था. युवक ने पुलिस को बताया था कि वह झारखंड और बिहार के पुलिसकर्मियों से गोलियां खरीदता है और उसे पीएलएफआइ के उग्रवादियों को बेचता था.

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