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कैसी हो हमारी स्थानीय नीति
सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज […]
सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज सकते हैं. हमारा पता है : सिटी डेस्क, प्रभात खबर, 15-पी, कोकर इंडस्ट्रीयल एरिया, रांची या फिर हमें मेल करें.
राज्य के गठनवाले वर्ष कोआधार माना जाये
अभय कुमार मिश्र
राज्य गठन के पंद्रह साल बाद भी स्थानीयता नीति तय नहीं होना झारखंड के विकास में बाधक है. इस मसले को जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिए. जिस उम्मीद के साथ राज्य का गठन किया गया था, हम आज तक उस पर खरे नहीं उतर पाये हैं. झारखंड के लिए यह बहुत ही ज्वलंत मुद्दा है.
जब भी राज्य में इस बात की चर्चा होती है, कतिपय स्वार्थी लोग इसका अनावश्यक लाभ उठाने की कोशिश प्रारंभ कर देते हैं और हर बार मामला खटाई में चला जाता है. हमारे साथ ही उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ का गठन किया गया था. उन राज्यों को देखें तो वहां सबसे पहले स्थानीयता को परिभाषित किया गया. इस मुद्दे को सर्वसम्मति से प्राथमिकता के साथ हल किया जाना चाहिए. जब तक यह हल नहीं किया जाता है, तब तक राज्य की ठोस प्रगति की बात बेमानी ही होगी.
इस विषय पर झारखंड हाइकोर्ट ने भी कहा था कि सरकार को सर्वमान्य हल निकालना चाहिए. मेरी राय में 1932 के खतियान को आधार बनाना सही नहीं होगा. इसके लिए सर्वमान्य आधार बनाया जाना चाहिए. राज्य के गठनवाले साल को आधार माना जाये, तो किसी को भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए और इस विवाद को समाप्त कर आगे के विकास की दिशा में राज्य को ले जाने का प्रयास सभी को मिल कर करना चाहिए.
राज्य के स्थायी सलाहकार
झारखंडी भाषा संस्कृति जाननेवाला हो स्थानीय
विजय आईंद
झारखंड अलग राज्य का गठन ही इसलिए हुआ क्योंकि बाहर से आये लोगों ने यहां के आदिवासियों एवं मूलवासियों का शोषण किया और उन्हें छला. चाहे जमीन हस्तांतरण का मामला हो, सरकारी लाभ लेने का मामला या फिर कुछ और, बाहरी लोग हावी रहे हैं. बाहर से आये लोगों के लिए झारखंड सिर्फ एक चारागाह रहा है.
वर्ष 2000 में बिहार के बंटवारे के समय अधिसंख्य कर्मचारियों ने अपनी बची हुई नौकरी के लिए झारखंड को चुना. वे यहां इसलिए नहीं आये कि उन्हें झारखंड से प्रेम है, बल्कि यहां जो कुछ भी उपलब्ध है, उसे किसी भी हालत में प्राप्त करना उनका उद्देश्य है.
स्थानीयता के मुद्दे पर चल रही बहस में किसी ने यह सही कहा है कि स्थानीय सिर्फ उन्हें माना जाये, जिसे यहां की भाषा एवं संस्कृति की जानकारी हो. मैं इसमें यह जोड़ना चाहता हूं कि जिनके माता-पिता झारखंड गठन के दस वर्ष पहले से यहां रह रहे हैं, उन्हें स्थानीय माना जा सकता है. इसके लिए उनके पास राज्य गठन से दस वर्ष पहले की जमीन के कागजात अथवा सरकारी पहचान पत्र होना अनिवार्य बनाया जाये. राज्य सरकार की सभी नौकरियों में आरक्षण के लिए झारखंड गठन से पहले 1991 की जनगणना को आधार बनाया जाये. जितनी भी सरकारें अब तक आयी, किसी ने इस मुद्दे पर गंभीरता से प्रयास नहीं किया.
सेवानिवृत्त अवर सचिव, भारत सरकार
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