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कैसी हो हमारी स्‍थानीय नीति

सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज […]

सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज सकते हैं. हमारा पता है : सिटी डेस्क, प्रभात खबर, 15-पी, कोकर इंडस्ट्रीयल एरिया, रांची या फिर हमें मेल करें.

1932 का खतियान या 1951 की जनगणना हो आधार

बसंत महतो

राज्य सरकार 1932 का सर्वे या 1951 की जनगणना को आधार मान कर स्थानीय नीति बनाये. इससे राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर झारखंडी परिवारों को मुख्यधारा में लाना संभव होगा. उनका पलायन रुकेगा और उनके जीवन में खुशहाली आयेगी.

यहां के मूल निवासियों ने नौकरी – पेशा व व्यापार करने बाहर से आये आये छोटे- बड़े व्यवसायियों का खुले दिल से स्वागत किया था. पर आज मूल निवासी ही दोयम दज्रे की स्थिति में आ गये हैं. झारखंड की सरकारी नौकरियों व सरकारी लाभ के कार्यो में बाहर से आये लोगों का पूर्ण दबदबा है. यदि यहां के स्थानीय लोग उनके गलत कार्यो के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो पुलिस – प्रशासन द्वारा उनके आंदोलन को कुचल दिया जाता है.

इस राज्य के गठन के लिए यहां के हजारों लोगों ने कुर्बानियां दी हैं, पर आज उनका या उनके परिजनों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है. स्थानीय नीति के अभाव में यहां के युवाओं को नौकरी नहीं मिलती. स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर नहीं हैं इसलिए वे महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं. अपराध की ओर उन्मुख हो रहे हैं. अत: सरकार यहां के मूलनिवासियों के हितों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय नीति तय करे.

(लेखक आंदोलनकारी सह सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

राज्य गठन की तिथि हो स्थानीयता का आधार

राममूर्ति ठाकुर

राज्य गठन के 15 वर्ष बाद भी स्थानीय नीति का नहीं बन पाना विस्मयकारी है. मेरा मानना है कि देश की संसद द्वारा ही सभी नवगठित राज्य की स्थानीय नीति के लिए खाका निर्धारित किया जाना चाहिए. इसी के दायरे में राज्य अपनी स्थानीय नीति तैयार करे. झारखंड में भी जल्द से जल्द स्थानीय नीति बननी चाहिए. इसे तय करते समय यह विचार करना होगा कि राज्य के मूलवासी के साथ-साथ 15 नवंबर 2015 के पूर्व से जो लोग यहां रह रहे है, वे स्थानीय होने की अर्हता रखते हैं. इसके अलावा सरकारी सेवक उनके आश्रित एवं वैसे लोग जिन्होंने विभिन्न गैर सरकारी प्रतिष्ठानों के माध्यम से इस राज्य के विकास के लिए कार्य किया है, उन सभी को स्थानीयता के दायरे में लाया जाय.

स्थानीय नीति के अभाव में सरकारी नियुक्तियों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. राज्य में जब भी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होती है, स्थानीय नीति बनाने का मामला जोर पकड़ता है. राज्य के जन प्रतिनिधियों से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे सभी मिलकर इस मामले का सर्वमान्य हल निकालेंगे, जिससे राज्य के विकास में तेजी आये. नियुक्ति प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी की जा सके.

(लेखक अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव हैं)

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