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सिगार में होगा केंदू पत्ते का उपयोग

देहरादून स्थित इंडिया काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन के महानिदेशक ने कहा रांची : केंदू पत्ते का उपयोग सिगार पीने के लिए किया जा सकता है. पत्ते की गुणवत्ता को इस लायक तैयार करने का काम वन उत्पादकता संस्थान, लालगुटुवा कर रहा है. इससे झारखंड का राजस्व भी बढ़ेगा. अभी राज्य को केंदू पत्ते […]

देहरादून स्थित इंडिया काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन के महानिदेशक ने कहा
रांची : केंदू पत्ते का उपयोग सिगार पीने के लिए किया जा सकता है. पत्ते की गुणवत्ता को इस लायक तैयार करने का काम वन उत्पादकता संस्थान, लालगुटुवा कर रहा है. इससे झारखंड का राजस्व भी बढ़ेगा. अभी राज्य को केंदू पत्ते से करीब 500 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है. सिगार में पीने लायक बनाये जाने पर पत्ते की कीमत 10 से 15 गुणा तक बढ़ सकती है.
ऐसा कहना है देहरादून स्थित इंडिया काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (आइसीएफआरआर) के महानिदेशक डॉ अश्विनी कुमार का. राज्य के तीन दिनों के दौरे के क्रम में बुधवार को उन्होंने प्रेस से ये बात कही. रांची में स्थित वन उत्पादकता संस्थान झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में वनों की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में अनुसंधान का काम करता है. इसका उद्देश्य वनों से जुड़े लोगों की आमदनी बढ़ाना है.
डाबर कंपनी का ऑफर
वन उत्पादकता संस्थान को डाबर कंपनी ने ऑफर दिया है कि वह राज्य में उत्पादित होनेवाले कालमेघ, मिश्रट व कुछ अन्य औषधीय पौधों को खरीदेगी. वन उत्पादकता संस्थान किसानों के खेतों में इसका उत्पादन बढ़ाने का प्रयास कर रहा है.
लाह की खेती के लिए विकसित की गयी फ्लैमुंजिया
श्री कुमार ने बताया कि झारखंड में फ्लैमुंजिया नामक झाड़ी नुमा पौधा लाह की खेती को ध्यान में रख कर विकसित किया गया है. इसका सफलतापूर्वक उपयोग कई इलाकों में हो रहा है. इसमें पौधा छोटा होता है, इस कारण किसानों को लाह तैयार करने और तोड़ने में आसान होता है. झारखंड जैसी उबाड़-खाबड़ जमीन में यह उपयुक्त हो सकता है.
कई किस्म के बांस तैयार होंगे
संस्थान में 47 किस्म की बांस का जर्म प्लाज्म (नया किस्म) तैयार किया जा रहा है. कई देशों में बांस के कईहिस्सों का उपयोग खाने के लिए होता है. इसमें कई औषधीय गुण भी हैं. झारखंड में भी यह परंपरा है. इसको यहां बढ़ावा दिया जा सकता है. इस मौके पर स्थानीय संस्थान के निदेशक शमीम अख्तर अंसारी भी मौजूद थे.

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