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तेलंगा का मुरगू नहीं बन सका आदर्श गांव
संजय/दुजर्य, रांची/गुमला : तेलंगा खड़िया ने अंगरेजों-जमींदारों के जुल्म व शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. वह इनके खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए. झारखंड सरकार ने तेलंगा के गांव मुरगू को आदर्श गांव बनाने का घोषणा की थी. तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो ने 17 अगस्त 2012 को मुरगू में ही इसे आदर्श गांव […]
संजय/दुजर्य,
रांची/गुमला : तेलंगा खड़िया ने अंगरेजों-जमींदारों के जुल्म व शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. वह इनके खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए. झारखंड सरकार ने तेलंगा के गांव मुरगू को आदर्श गांव बनाने का घोषणा की थी. तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो ने 17 अगस्त 2012 को मुरगू में ही इसे आदर्श गांव बनाने की घोषणा की थी. पर शहीद के गांव को पर्याप्त सम्मान व सुविधाएं नहीं मिली.
मुरगू आज भी विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है. इधर गुमला मुख्यालय से 20 किमी तथा सिसई प्रखंड से सिर्फ 10 किमी दूर स्थित मुरगू गांव के मुखिया बाल किशुन महली, उप मुखिया प्रेमचंद उरांव, महावीर साहु, बसंत गुप्ता, मुकेश साहू, पवन जायसवाल, मेघनाथ साहू व हरिहर जायसवाल ने कहा कि शहीद का गांव होने के बावजूद यह गांव विकास के लिए तरस रहा है. अधिकारी कभी गांव नहीं आते. नेता सिर्फ वोट मांगने आते हैं. यहां तक कि जिला प्रशासन ने तेलंगा की जयंती मनाने की भी पहल नहीं की है.
स्थानीय म्यूरी क्लब को ही शहीद की जयंती व पुण्यतिथि याद है. वह इसे आयोजित भी करती है. क्लब की सचिव चैताली सेनगुप्ता व अन्य ग्रामीणों ने गांव के विकास के लिए आंदोलन करने की घोषणा की है.
अंगरेजों ने करवायी हत्या : तेलंगा खड़िया का जन्म नौ फरवरी 1806 को गुमला जिले के सिसई थाना अंतर्गत मुरगू गांव में हुआ था. बचपन में ये काफी नटखट व बड़बोले थे. बड़बोले को खड़िया भाषा में तेबलंगा कहा जाता है. शायद इसी कारण इनका नाम तेलंगा रखा गया होगा. तेलंगा के पिता ढ़ुइया खड़िया गांव के पाहन तथा नागवंशी शासक के भंडारपाल थे.
इस रूप में वह गांव के प्रधान पुजारी तो थे ही, राजा की फसलों का भंडारण भी इनकी जिम्मेवारी थी. इस रूप में पूरे इलाके में इस परिवार का अच्छा रुतबा था. तेलंगा की मां का नाम पेतो खड़िया था. मजबूत कद-काठी के पांच फीट नौ इंच लंबे तेलंगा की कसरत में खूब रुचि थी. सरना धर्मावलंबी तेलंगा अपने गांव भर के सुख-दुख में शामिल रहते थे. अन्याय व अत्याचार बर्दाश्त करना इनका स्वभाव नहीं था.
तेलंगा का विवाह वर्ष 1846 में रतनी नामक युवती से हुआ था. अस्त्र-शस्त्र चलाने में माहिर तेलंगा गुमला के कई गांवों नीमटोली, नाथपुर, कोलेबिरा, महाबुआंग, जूरा, डोइसा, मुरगू, दुंदरिया व सोसो युवाओं के संपर्क में रहते थे. एक दिन बसिया थाना अंतर्गत कुम्हारी गांव में अपने समर्थकों को संबोधित कर रहे तेलंगा को गिरफ्तार कर कोलकाता जेल भेज दिया गया. प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन 1857 की समाप्ति के बाद तेलंगा जेल से रिहा हो कर जब अपने गांव पहुंचे, तो देखा कि अंगरेजों का जुल्म उनकी अनुपस्थिति में और बढ़ गया था. रैयतों पर नया भू-कर लगा दिया गया था. इसके बाद तेलंगा ने अंगरेजों व जमींदारों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी. इसके बाद 23 अप्रैल 1880 को हर रोज की तरह अपने अखाड़े में साथियों व प्रशिक्षुओं के अभ्यास से पूर्व प्रार्थना के लिए तेलंगा ने जैसे ही सिर झुकाया, बोधन सिंह ने उन पर गोली चला दी. तेलंगा ने वहीं प्राण त्याग दिये.
अंगरेजों व जमींदारों ने तेलंगा के शव को जंगली के रास्ते से कोयल नदी के पार सोसो गांव पहुंचाया. वहां तेलंगा की लाश टांड़ में दफना दी गयी, जिसे आज भी तेलंगा तोपा टांड़ कहा जाता है. तेलंगा की मौत के बाद उनका पुत्र जोजिया खड़िया अपने परिवार सहित दूसरे गांव बिरकेरा घाघरा (जमगाई पंचायत, सिसई थाना) जाकर बस गया. झारखंड के लोग वीर, साहसी व देशभक्त तेलंगा को आज भी बड़ी श्रद्धा से याद करते हैं.
(कला संस्कृति विभाग के प्रकाशन सपूत से साभार)
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