नयी दिल्ली. दिल्ली की एक अदालत ने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को अंतरिम गुजाराभत्ता के रुप में 25 हजार रुपये प्रति माह देने का निर्देश देते हुए कहा कि एक पति अपनी पत्नी का भरण पोषण करने के अपने दायित्व से इस आधार पर नहीं बच सकता कि वह योग्य है और धन कमाने में सक्षम है. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट मोना तारदी करकेता ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अंतरिम मौद्रिक राहत मंजूर करने का अनुरोध करने वाली महिला की अंतरिम याचिका का निबटारा करते हुए दिल्ली के रहने वाले एक डॉक्टर से उसकी बेरोजगार पत्नी को 25 हजार रुपये प्रति माह देने के लिए कहा. अदालत ने कहा कि उसका विचार यह है कि प्रतिवादी संख्या एक पति होने के नाते शिकायतकर्ता को गुजाराभत्ता देने के अपने दायित्व से इस आधार पर नहीं बच सकता कि उसकी पत्नी योग्य है और जीवन गुजारने के लिए धन कमाने में सक्षम है. अदालत ने कहा कि शादी के बाद, पति का उसे उपलब्ध तरीकों तथा संसाधनों के अनुसार अपनी पत्नी का भरण पोषण करने का कर्तव्य है.अदालत ने कहा कि आज की स्थिति यह है कि घर चलाने तथा भरण पोषण करने के लिए धन कमाने के लिए महिलाओं से जिम्मेदारी का बराबरी के साथ निर्वाह करने की उम्मीद की जाती है लेकिन तथ्य यह है कि वर्तमान मामले की शिकायतकर्ता बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है.महिला ने अदालत में याचिका दायर करके उससे अलग रह रहे पति को अंतरिम गुजाराभत्ता के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था.
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कमाऊ पत्नी भी गुजाराभत्ते की हकदार: अदालत
नयी दिल्ली. दिल्ली की एक अदालत ने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को अंतरिम गुजाराभत्ता के रुप में 25 हजार रुपये प्रति माह देने का निर्देश देते हुए कहा कि एक पति अपनी पत्नी का भरण पोषण करने के अपने दायित्व से इस आधार पर नहीं बच सकता कि वह योग्य है और धन कमाने […]
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