रांची: प्रधान महालेखाकार (पीएजी) ने कल्याण विभाग में 11.14 करोड़ रुपये के गबन की आशंका जतायी है. केंद्र से मिली अनुदान राशि खर्च किये बिना ही उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजे जाने पर गंभीर टिप्पणी की है. साथ ही छात्रवृत्ति भुगतान में लाभुकों के कम होने और खर्च बढ़ने की घटना पर आश्चर्य व्यक्त किया है.
पीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जून-2009 तक किसी भी योजना से संबंधित कैश बुक आदिवासी कल्याण आयुक्त के कार्यालय में नहीं पायी गयी. जुलाई-2009 में एक नयी कैश बुक खोली गयी. इस कैश का ओपनिंग बैलेंस 39.36 करोड़ रुपये दिखाया गया है. 31 मार्च-2012 को इस कैश बुक का क्लोजिंग बैलेंस 57.75 करोड़ रुपये था. इस राशि में से 11.14 करोड़ रुपये जून-2009 तक कैशियर के पास दिखाये गये हैं. तीन साल बाद भी इस राशि का न तो समायोजन हुआ है और न ही कैशियर के पास से इस राशि की वसूली की गयी है. तीन साल तक इस राशि के बगैर हिसाब के कैशियर के पास पड़े होने से इसके गबन की आशंका है.
पीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत मिली अनुदान राशि खर्च किये बिना ही उपयोगिता प्रमाण पत्र दिये पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह सरकार की घोर अनियमितता है. सितंबर-2011 में केंद्र सरकार ने 275 (1) के तहत 91.18 करोड़ रुपये विमुक्त किये. मार्च में इस राशि की निकासी कर अनुसूचित जाति सहकारिता विकास निगम के पीएल एकाउंट में रख दिया. इसके बाद भारत सरकार को इस राशि के खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र भेज दिया. पीएजी ने 2008-09 से 2011-12 तक आदिवासी छात्रों को दिये गये पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति की जांच की. इस दौरान 2008-10 की अवधि में भारी गड़बड़ी पायी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2008-09 में 8.94 करोड़ रुपये खर्च कर 30782 छात्रों को छात्रवृत्ति दिये जाने की बात फाइलों में दर्ज है. 2009-10 में 18.76 करोड़ रुपये खर्च कर 14550 छात्रों को छात्रवृत्ति देने की बात दर्ज है. दोनों ही वित्तीय वर्षो में छात्रवृत्ति दर समान थी. फिर दूसरे वर्ष छात्रों की संख्या में 53 प्रतिशत कमी हुई, पर खर्च 110 प्रतिशत बढ़ गया. ऐसा कैसे हुआ, यह समझ से परे है.