रांची: राज्य सरकार दो साल में भी गरीब बच्चों के नाम 425 रुपये फीस देने पर फैसला नहीं कर सकी. निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के नाम शुरू हुई फाइल दो साल तक इधर-उधर घूमती रही. राष्ट्रपति शासन में इस मुद्दे पर अंतिम रूप से कोई फैसला नहीं हो सका. शिक्षा अधिकार अधिनियम में गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का प्रावधान है. इसके तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों का नामांकन किया जाना है.
गरीब बच्चों की फीस सरकार (केंद्र 65} व राज्य 35}) द्वारा दी जानी है. शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 को वर्ष 2010 में लागू किया गया. जून 2011 में निजी स्कूलों में पढ़नेवाले गरीब बच्चों के लिए फीस तय करने और भुगतान करने पर सरकार की सहमति लेने की प्रक्रिया शुरू हुई. शिक्षा अधिकार अधिनियम में कक्षा आठ तक की शिक्षा का प्रावधान है, इसलिए प्राथमिक शिक्षा निदेशालय ने जून 2011 में इससे संबंधित प्रस्ताव तैयार किया. राज्य में लागू नियमों परिनियमों के तहत इस प्रस्ताव पर मंत्रिपरिषद की सहमति के बाद निजी स्कूलों को उसमें पढ़नेवाले गरीब बच्चों के हिसाब से पैसों का भुगतान करना है.
इस बात के मद्देनजर जून 2011 में शुरू हुई यह फाइल विभिन्न प्रकार की आपत्तियों का निराकरण करते हुए अधिकारियों व मंत्रियों के बीच घूमती रही. काफी कोशिश के बाद अगस्त 2012 में निजी स्कूलों में पढ़नेवाले गरीब बच्चों के लिए प्रति बच्च प्रतिमाह 425 रुपये फीस तय किया गया. इस नतीजे पर पहुंचने के लिए सर्व शिक्षा अभियान में बच्चों की पढ़ाई पर होनेवाले खर्च को आधार बनाया गया.
फीस की रकम तय होने के बाद राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल कायम होने लगा. इससे फाइल की गति धीमी हो गयी और इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं हो सका. जनवरी 2013 में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद इससे जुड़ी फाइल फिर से चल पड़ी. हालांकि करीब छह माह की राष्ट्रपति शासन की अवधि में भी इस पर कोई फैसला नहीं हो सका. राज्यपाल के सलाहकार ने भी इससे जुड़ी फाइल बिना सहमति के ही लौटा दी है. अब इस मुद्दे पर फिर से चुनी हुई सरकार ही विचार करेगी.