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बड़े अफसर हमेशा से रहे हैं निशाने पर

रांची: पुलिस के बड़े अफसर हमेशा से ही नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं. एकीकृत बिहार के समय वर्ष 2000 में नक्सलियों ने लोहरदगा के पेशरार जंगल में वहां के एसपी अजय सिंह की हत्या कर दी थी. राज्य गठन के बाद वर्ष 2001 में गढ़वा के डीएसपी अमलेश कुमार को निशाना बनाया गया था. […]

रांची: पुलिस के बड़े अफसर हमेशा से ही नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं. एकीकृत बिहार के समय वर्ष 2000 में नक्सलियों ने लोहरदगा के पेशरार जंगल में वहां के एसपी अजय सिंह की हत्या कर दी थी. राज्य गठन के बाद वर्ष 2001 में गढ़वा के डीएसपी अमलेश कुमार को निशाना बनाया गया था. 2002 में पलामू के छत्तरपुर में लैंड माइन ब्लास्ट कर डीएसपी देवेंद्र कुमार राय समेत एक इंस्पेक्टर की हत्या कर दी गयी थी.

वर्ष 2006 में चतरा के प्रतापपुर में योजनाबद्ध तरीके से डीएसपी विनय भारती की हत्या की गयी थी. 30 जून को माओवादियों ने बुंडू के डीएसपी प्रमोद कुमार की हत्या कर दी थी. वहीं चार मई 2004 को चाईबासा के तत्कालीन एसपी प्रवीण सिंह को भी नक्सलियों ने घेरा था. उस घटना में प्रवीण सिंह घायल हुए थे, जबकि 26 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे.

आइपीएस मुरारी लाल मीणा ने गिरिडीह में एसपी के कार्यकाल के दौरान नक्सलियों के खिलाफ मोरचा खोला था. पारसनाथ पहाड़ी पर नक्सलियों ने उनकी घेराबंदी की थी. इस दौरान रात भर मुठभेड़ चली थी. बाद में नक्सली पीछे हटे थे.

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